क़ुतुबशाही वंश

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कुतुबशाही दक्षिण का एक प्रख्यात मुस्लिम राजवंश के थे। इस वंश के संस्थापक सुलतान कुली कुतुबशाह हमदान (फारस) के राजवंश के थे। उस राजवंश के ्ह्रास के पश्चात वे अपने चचा अल्ला कुली के साथ भारत आए और दक्षिण में बहमनी सुल्तान मुहम्मदशाह (तृतीय) के दरबार में पहुँचे और अपनी योग्यता और कार्यकुशलता से सुल्तान के प्रियपात्र बन गए। जब १४९३ ई. में तेलंगाना के सूबेदार की मृत्यु हुई तो सुल्तान ने उन्हें कुतुब-उल-मुल्क की उपाधि देकर उसके स्थान पर वहाँ का सूबेदार नियुक्त कर दिया। उन्होंने अपने सूबेदारी के दिनों में गोलकुंडा और वारंगल को अधिकार में कर लिया।

उन दिनों बहमनी राज्य अवनति की ओर जा रहा था और उसके अहमद नगर, बीजापुर और बरार के सूबेदारों ने धीरे-धीरे अपने को स्वतंत्र कर अपना राज्य स्थापित किया। मुहम्मद शाह के जीवनकाल तक तो कुली कुतुबशाह सुल्तान के प्रति भक्त बने रहे। किंतु उनकी मृत्यु के बाद उन्होंने भी अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया। इस प्रकार कुतुबशाही राजवंश की स्थापना १५१८ ई. के आसपास हुई और यह राजवंश गोलकुंडा को राजधानी बनाकर लगभग पौने दौ सौ वर्ष तक राज्य करता रहा। १६८७ ई. में औरगंजेब ने उसे अपने साम्राज्य में आत्मसात्‌ कर लिया।

इस अवधि में इस वंश में निम्नलिखित शासक हुए थे।

  • सुल्तान कुली कुतुबशाह (१५१८-१५४३ ई.);
  • जमशेद कुतुबशाह (१५४३-१५५० ई.;)
  • सुभान कुली कुतुबशाह (१५५० ई.)
  • इब्राहिम कुतुबशाह (१५५०-१५८० ई.)
  • मुहम्मद कुली कुतुबशाह (१५८०-१६१२ ई.)
  • सुल्तान मुहम्मद कुतुबशाह (१६१२-१६२६ इ.)
  • अब्दुल्ला कुतुबशाह (१६२६-१६७२ ई.)
  • अबुल हसन तानाशा (१६७२-२६८७ ई.)।


टीका टिप्पणी और संदर्भ