ग्रेनेड

अद्‌भुत भारत की खोज
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लेख सूचना
ग्रेनेड
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4
पृष्ठ संख्या 67
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक फूलदेव सहाय वर्मा
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक आनंद सिंह सजवान

ग्रेनेड (हाथ का गोला) विस्फोटक पदार्थ से भरा गोला है, जो हाथ से फेंका जाता है। इसका प्रारंभिक प्रयोग मशीनगनों के मोरचों और आड़ के पीछे छिपे शत्रु को नष्ट करने के लिये किया जाता था। द्वितीय विश्वयुद्ध में इन्हें रूढ़िगत लक्ष्यों के अतिरिक्त कवचधारी यानों (टैंकों) के विरुद्ध आग्नेय विस्फोटक समान तथा धूम्र आवरण निर्माण करने एवं संकेत प्रसारण आदि के लिये प्रयोग किया जाने लगा। इनकी निर्माणविधि में भी प्रगति हुई। अधिक प्रभावी बनाने के लिये इनमें खंडों की संख्या बढ़ा दी गई और भेद्यता बढ़ाने के लिये टी.एन.टी, पेंटोलाईट और आर.डी.एक्स. का प्रयोग होने लगा। प्रज्वलित करने के लिये नए प्रकार के फ्यूज का प्रयोग होने लगा।

इनका महत्तम भार व आकार ऐसा रखना पड़ता है कि हाथ से ३०-३५ गज तक आसानी से फेंका जा सके। हथगेलों में ऐसी व्यवस्था रहती है कि हाथ से छूटते ही एक उत्तोलक (Hand lever) छूट जाता है और फ्यूज से संलग्न कारतूस की टोपी को उड़ा देता है, जो विस्फोटक पदार्थ को प्रज्वलित कर देती है और गोला फट जाता है। कुछ फ्यूज तुरंत विस्फोट उत्पन्न करते हैं और कुछ ४-५ सेकंड के पश्चात्‌। हथगोले चार वर्गों में विभाजित किए जा सकते हैं :

खंडों से निर्मित विस्फोटक

ये हथगोले अधिकतर ढलवाँ लोहे के दाँतेदार पिंडवाले बनाए जाते हैं। इनका आकार एक बड़े नीबू के आकार जैसा, अंडाकार, होता है। इनका भार लगभग २२ औस रहता है। इनमें शक्तिशली विस्फोटक पदार्थ भरा रहता है। खंडों का सामान्य प्रभावी अर्धव्यास ३० गज होता है।

रासायनिक हथगोले

ये साधारणत: हलकी धातुओं से बनाए जाते हैं। इनमें क्लोरऐसीटोफीनोन या अश्रुगैस, एडीनीसाइट अथवा किसी अन्य उपयुक्त रासायनिक पदार्थ का प्रयोग किया जाता है। फ्यूज ज्वलनीय प्रकार का रहता है। ये गोले फेंकने के लगभग दो सेकेंड के पश्चात्‌ फट जाते हैं। ज्वलनशील हथगोले भी रासायनिक हथगोलों की भाँति होते हैं। इनमें कोई ज्वलनशील मिश्रण भरा रहता है।

धूम्रसर्जक हथगोले

इनके द्वारा धूम्र आवरण निर्माण कर सेना की गतिविधि को शत्रुदल से छिपाने की व्यवस्था की जाती है। इन हथगोलों में या तो हेक्सक्लोरोईथेन, ऐमोनियम क्लोरेट और ऐमोनियम क्लोराइड का मिश्रण जलाया जाता है या श्वेत फास्फोरस का विस्फोटन किया जाता अथवा कोई अन्य मिश्रण जलाया जाता है।

सभी प्रकार के धूम्रसर्जक हथगोले एक ही प्रकार से बनाए जाते हैं। बाल्टी के आकार के बाह्य भाग की दीवारों और शीर्ष पर छिद्र रहते है।, जिनसे धुआँ बाहर निकल सके। ऐसे धुम्रगोलों से हरे, लाल, बैंगनी, पीले, नीले, नारंगी, और काले रंग का धुआँ निकलता है। इन हथगोलों का प्रयोग संकेतप्रसारण के लिये होता है। एक हथगोले में ६.९ औस मिश्रण रहता है, जो ०.४५ सेकेंड में जल जाता है। अभ्यास के लिये उपयुक्त हथगोले - अभ्यास के लिये जिन हथगोलों का प्रयेग किया जाता है वे साधारण हथगोले के समान होते है, किंतु उनमें विस्फोटक और फ्यूज नहीं रहते। इन हथगोलों का प्रयोग प्रशिक्षण के लिये किया जाता है।

हथगोलों का परास बढ़ाने के लिये इन्हें ऐसा बनाया गया है कि ये राईफल से भी फेंके जा सकें। इस सुविधा से अब हथगोले राइफल की सहायता से लगभग २०० गज तक फेंके जाते हैं। राइफल से फेंके जानेवाले हथगोले तीन प्रकार के होते हैं। पहले प्रकार के हथगोले स्थायी रूप से एक स्थायित्वकारी नली में फँसे रहते हैं। दूसरे प्रकार के हथगोले साधरण हथगोले होते हैं, जिनमें प्रक्षेपक अनुकूलक लगा रहता है। तीसरे प्रकार के हथगोलों में उच्च शक्तिवाला विस्फोटक भरा रहता है और इनका उपयोग टैंक प्रतिरोध के लिये किया जाता है। ये टैंक प्रतिरोधी हथगोले विशेष प्रकार के कारतूसों द्वारा चलाए जाते हैं। इनमें एक सायातिक फ्यूज रहता है। इस गोले का भार १.१३ पाउंड और लंबाई ११° २ इंच होती है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ