विलियम जेम्स

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लेख सूचना
विलियम जेम्स
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 5
पृष्ठ संख्या 40-41
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक फूलदेवसहाय वर्मा
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1965 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक चारुचंद्र त्रिपाठ

विलियम जेम्स अमरीकी दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक। ११ जनवरी १८४२ को न्यूयार्क में उत्पन्न हुआ। इसका भाई हेनरी जेम्स प्रख्यात उपन्यासकार था। हार्वर्ड में जेम्स ने शरीरविज्ञान का अध्ययन किया और वहीं १८७२ से १९०७ तक क्रमश: शरीरविज्ञान, मनोविज्ञान और दर्शन का प्राध्यापक रहा। १८९९ से १९०१ तक एडिनबरा विश्वविद्यालय में प्राकृतिक धर्म पर और १९०८ में ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय में दर्शन पर व्याख्यान दिए। २६ अगस्त, १९१० को उसकी मृत्यु हो गई।

१८९० में उसकी पुस्तक 'प्रिंसिपिल्स ऑव्‌ साइकॉलाजी' प्रकाशित हुई, जिसने मनोविज्ञान के क्षेत्र में क्रांति सी मचा दी, और जेम्स को उसी एक पुस्तक से जागतिक ख्याति मिल गई। अपनी अन्य रचनाओं में उसने दर्शन तथा धर्म की समस्याओं को सुलझाने में अपनी मनोवैज्ञानिक मान्यताओं का उपयोग किया और उनका समाधान उसने अपने फलानुमेयप्रामाणवाद (Pragmatism) और आधारभूत अनुभववाद (Radical Empiricism) में पाया। फलानुमेयप्रामाणवादी जेम्स ने 'ज्ञान' को बृहत्तर व्यावहारिक स्थिति का जिससे व्यक्ति स्वयं को संसार में प्रतिष्ठित करता है--भाग मानते हुए 'ज्ञाता' और 'ज्ञेय' को जीवी (Organism) और परिवेश (Environment) के रूप में स्थापित किया है। इस प्रकार सत्य कोई पूर्ववृत्त वास्तविकता (Antecedent Reality) नहीं है, अपितु वह प्रत्यय की व्यावहारिक सफलता के अंशों पर आधारित है। सभी बौद्धिक क्रियाओं का महत्व उनकी व्यावहारिक उद्देश्यों की पूर्ति की क्षमता में निहित है।

आधारभूत अनुभववाद जेम्स ने पहले मनोवैज्ञानिक सिद्धांत के रूप में प्रस्तुत किया। लॉक और बर्कले के मतों से भिन्न उसकी मान्यता थी कि चेतना की परिवर्तनशील स्थितियाँ परस्पर संबंधित रहती हैं; तदनुसार समग्र अनुभव की स्थितियों में संबंध स्थापित हो जाता है; मस्तिष्क आदि कोई बाह्य शक्ति उसमें सहायक नहीं होती। मस्तिष्क प्रत्यक्ष अनुभव की समग्रता में भेद करता है। फलानुमेय प्रामाण्यवाद और आधारभूत अनुभववाद पर ही जेम्स की धार्मिक मान्यताएँ आघृत हैं। फलानुमेय प्रामाण्यवाद सत्य की अपेक्षा धार्मिक विश्वासों की व्याख्या में अधिक सहायक था; क्योंकि विश्वास प्राय: व्यावहारिक होते हैं यहाँ तक कि तर्कों के प्रमाण के अभाव में भी मान्य होते हैं; किंतु परिणामवादीदृष्टिकोण से सत्य की, परिभाषा स्थिर करना संदिग्ध है। 'द विल टु बिलीव' में जेम्स ने अंत:करण के या संवेगजन्य प्रमाणों पर बल दिया है और सिद्ध किया है कि उद्देश्य (Purpose) और संकल्प (Will) ही व्यक्ति के दृष्टिकोण का निर्माण करते हैं। 'द वेराइटीज़ ऑव रिलीजस एक्सपीरियेंस' में जेम्स ने व्यक्ति को निष्क्रिय और शक्तिहीन दिखलाया है तथा यह भी प्रदर्शित किया है कि उसकी रक्षा कोई बाह्य शक्ति करती है। जेम्स के अनुभववाद से धार्मिक अनुभूति की व्याख्या इसलिये असंभव है कि इन अनुभूतियों का व्यक्ति के अवचेनत से सीधा संबंध होता है। जेम्स के धर्मदर्शन में तीन बातें मुख्य हैं (१) अंत:करण या संवेगजन्य प्रमाणों की सत्यता पर बल (२) धर्म की संदिग्ध सर्वोत्कृष्टता और ईश्वर की सीमितता का आग्रह और (१) बाह्य अनुभव को यथावत्‌ ग्रहण करने की आतुरता। आकर्षक लेखनशैली और अभिव्यक्ति की कुशलता के लिये जेम्स विख्यात हैं।

जेम्स की अन्य प्रकाशित पुस्तकें 'साइकॉलजी', ब्रीफर कोर्स' (१८९२), 'ह्यूमन इम्मारटलिटी' (१८९८), टाक्स टु टीचर्स आन साइकॉलजी' (१८९९), 'प्राग्मैटिज्म' (१९०७), 'अ प्ल्यूरलिस्टिक यूनिवर्स' (१९०९), 'द मीनिंग ऑव ट्रूथ (१९०९), 'मेमोरीज एंड स्टडीज' (१९११), 'सम प्राब्लेम्स ऑव फिलासफी' (१९११), 'एसेज इन रेडिकल एंपिरिसिज्म' (१९१२) है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ