जॉन फिट्जेराल्ड केनेडी
जॉन फिट्जेराल्ड केनेडी
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 116-117 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
जॉन फिट्जेराल्ड केनेडी (1917-1963 ई.)। अमरीका के पैंतीसवें राष्ट्रपति। 29 मई, सन 1917 ई. को बोस्टन के ब्रुकलिन उपनगर में जन्म। बोस्टन में शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् उन्होंने लंदन स्कूल ऑव इकानामिक्स में विद्याध्ययन किया। तदनंतर हारवर्ड और मैसाचुसेट्स विश्वविद्यालयों में अपना अध्ययन प्राप्त किया।
नौसेना में कमीशन प्राप्त अधिकारी के रूप में भर्ती हुए; उन्हें कार्यालय में बैठकर कार्य करने का आदेश मिला जो उन्हें रु चिकर न था। अत: उन्होंने अनुरोध कर अपनी ड्यूटी गश्त लगानेवाली टारपीडो नौका पर लगवाई और प्रशांत महासागर क्षेत्र में भेजे गए। वे गश्त करनेवाली टारपीडो नौका पी. टी. 109 को, जिसके वे लेफ्टिनेंट थे, 2 अगस्त, 1943 ई. को एक जापानी विध्वंसक ने खंडित कर दिया। इस दुर्घटना में उनकी पीठ पर चोट लगी; इसके बावजूद ये समुद्र में कूद गए और अपने कई साथियों के प्राणों की रक्षा की। डूबती हुई टारपीडो नौका से बुरी तरह घायल एक साथी को जीवनपेटी की सहायता से बचाकर एक द्वीप पर ले गए। शत्रु अधिकृत उस क्षेत्र में एक सप्ताह का कष्टमय जीवन व्यतीत करने के पश्चात अपनी टुकड़ी को सुरक्षित क्षेत्र में ले आए। इस प्रकार इन्होंने अपने अदम्य साहस का परिचय दिया। फलस्वरूप उन्हें नौसेना एवं मैरिन कोर का पदक देकर सम्मानित किया गया।
1945 ई. में नौसेना से अवकाश ग्रहण करने पर पत्रसंपादक के रूप में कार्य आरंभ किया और 1946 ई. में राजनीति की ओर उन्मुख हुए। 1948 ई. में बोस्टन क्षेत्र से प्रतिनिधि सभा के सदस्य निर्वाचित हुए। 1960 ई. में डेमोक्रेटिक दल की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हुए और प्रथम रोमन कैथोलिक राष्ट्रपति बने।
राष्ट्रपति की हैसियत से अपनी कार्यावधि के प्रथम सौ दिनों के भीतर उन्होंने कांग्रेस के समक्ष शिक्षा के हेतु संघीय सहायता के लिये एक कार्यक्रम और अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन देने के लिये अनेक प्रस्ताव प्रस्तुत किए। अपने प्रशासन के अंतगर्त विद्वानों और बुद्धिजीवियों को विभिन्न पदों पर नियुक्त किया। ह्वाइट हाउस (राष्ट्रपति भवन) में बहुसंख्यक कलाकारों को निरंतर आमंत्रित कर सांस्कृत्रिक क्षेत्र को राजकीय मान्यता प्रदान की।
देश के आंतरिक पक्ष में, इन्होंने करों में कटौती, औद्योगिक ढाँचे के परिवर्तनों से प्रभावित होकर आर्थिक दृष्टि से क्षतिग्रस्त होनेवाले क्षेत्रों के लिये सहायता, एक विस्तृत आवास-व्यवस्था-कार्यक्रम, वृद्धजनों के लिये चिकित्सा व्यवस्था, नागरिक अधिकार कानूनों के दृढ़ीकरण जैसे कार्यों और उपायों पर बल दिया।
अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में बर्लिन के तनाव को कम करने के लिये अपने देश की ओर से प्रयास जारी रखा; स्वतंत्र एवं तटस्थ लाओस के निर्माण पर बल दिया; प्रभावकारी आणविक परीक्षा प्रतिबंध संधि के लिये आहवान किया; सर्वव्यापक नि:स्त्रीकरण संधि संपन्न करने के लिये प्रयत्न किया तथा एशिया के विकासोन्मुख राष्ट्रों को सहायता का वचन दिया।
अक्टूबर, सन् 1962 ई. में अमरीकी राष्ट्र संघटन (आर्गनाइज़ेशन ऑव अमरीकन स्टेट्स) के सर्वसंमतिपूर्ण समर्थन से तथा मेनरो सिद्धांत की धारणा के अनुसार उन्होंने सोवियत आक्रामक शस्त्रास्त्र के चोरी चोरी क्यूबा में हो रहे आयात को रोकने तथा उन्हें वहाँ से हटाने के लिये तत्काल कार्रवाई की।
22 नवंबर, 1963 ई. को डलास में, जब वे अपनी कार में जा रहे थे, गोली मार कर उनकी हत्या कर दी गई।