बालू

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बालू चट्टानें और अन्य धात्विक पदार्थ विविध प्राकृतिक और अप्राकृतिक साधनों से टूट फूटकर बजरी, बालू, गाद या चिकनी मिट्टी का रूप ले लेते हैं। यदि टुकड़े बड़े हुए तो बजरी, और यदि छोटे हुए तो कणों, के विस्तार के हिसाब से उन्हें क्रमश: बालू, गाद या चिकनी मिट्टी कहते हैं। अमरीका में ०.०६ से २ मिमी. तक के और यूरोप में ०.०२ से २ मिमी. तक के कण बालू कहलाते हैं। भारतीय मानकों के अनुसार भारतीय मानक छननी सं. ४८० (०.२ इंच) से गुजर जानेवाले कण बालू में हो सकते हैं। इस सीमा के अंदर छोटे बड़े सभी प्रकार के कण उसमें होने चाहिए। इंजीनियरी में ऐसा बालू महत्वपूर्ण है। छोटे बड़े कणों का अनुमान सूक्ष्मता मापांक द्वारा लगाया जाता है। बालू की एक निश्चित तोल भारतीय मानक छननी सं. ४८०, २७०, १२०, ६०, ३० और १५ (अर्थात्‌ ब्रिटिश मानक छननी ०.२ इंच, और सं. ७, १४, २५, ५२ १००) में से छानी जाती है। प्रत्येक छननी से न निकल सकनेवाला अंश जोड़ लिया जाता है, जो सूक्ष्मता मापांक कहलाता है। महीन बालू का सूक्ष्मता मापांक १.० से २.५ के बीच होना चाहिए। इससे अधिक हो तो वह मोटा बालू कहलाता है।

यद्यपि पृथ्वी की पपड़ी में पाए जानेवाले सभी प्रकार के पदार्थ, जिनमें चट्टानें बना करती हैं, बालू में पाए जाते हैं, किंतु प्राय: उनमें से थोड़े पदार्थों की ही बहुलता बालू में रहती है। अत्यंत व्यापक रूप से मिलनेवाला पदार्थ स्फटिक़ है, क्योंकि यह चट्टानों में बहुत होता है और अत्यंत कठोर एवं विदरणरहित होता है, जिससे इसके कण सरलता से पिसकर बहुत बारीक नहीं हो पाते। इसके अतिरिक्त यह पानी में घुलता नहीं, न विघटित ही होता है। कहीं कहीं बालू में अन्य अनेक पदार्थों के साथ फेल्स्पार, चूनेदार पदार्थ, खनिज लौह और ज्वालामुखी काच आदि भी बहुतायत से पाए जाते हैं। अधिकांश स्फटिक-बालू में थोड़ा बहुत फेल्स्पार तो होता ही है। श्वेत अभ्रक के छोटे छोटे टुकड़े भी प्राय: बालू में मिलते हैं क्योंकि यह नरम तथा भंगुर होते हुए भी बहुत धीरे धीरे विघटित होता है।

इन सामान्य पदार्थों के अतिरिक्त कुछ भारी पदार्थ भी, जिनसे चट्टानें बना करती हैं, जैसे तामड़ा, टूरमैलिन, जर्कन, रूटाइल, पुखराज, पाइरॉक्सीन और ऐंफिबोल आदि थोड़ी बहुत मात्रा में सभी प्रकार की बालू में रहते हैं। कहीं कहीं समुद्रतट पर, या नदियों में, धारा प्रवाह के कारण हलके पदार्थ बह जाते हैं और ये भारी पदार्थ अधिक मात्रा में एकत्र हो जाते हैं। ये आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण निक्षेप कहलाते हैं। इन्हीं में नियारिये तथा हीरे या अन्य मणियाँ सोना, प्लैटिनम, राँगा, मौनजाइट या अन्य खनिज जिनके मिलने की संभावना होती है, खोजा करते हैं।

मृद्भांड

काँच और सिलिकेट उद्योग में सिलिका के रूप में अत्यंत शुद्ध स्फटिक-बालू की बड़ी मात्रा में आवश्यकता होती है। विविध प्रकार की भट्ठियों में अस्तर करने के लिए भी ऐसा ही बालू लगता है। ढलाई के कारखाने में जिस मिट्टी से साँचे बनाये जाते हैं, उनमें भी यही बालू मिला रहता है और इसके कण चिकनी मिट्टी द्वारा परस्पर बँधे रहते हैं।

स्फटिक कण कठोर और विवरण रहित होते हैं। अत: स्फटिकबालू अपघर्षक बनाने के लिए भी बहुत काम आता है। तामड़ा बालू भी इस काम के लिए अत्यंत उपयुक्त है, यद्यपि यह बहुत अधिक नहीं पाया जाता।

साधारण बालू के और भी अनेक उपयोग हैं, जिनमें मुख्यतया चिनाईं का मसाला और कंक्रीट के उपादान के रूप में इसका उपयोग उल्लेखनीय है। चूना या सीमेंट बालू के कणों को परस्पर जोड़कर, एक कठोर संहति बना देते हैं, जिसपर मसाला या कंक्रीट की सामर्थ्य बहुत अंशों तक निर्भर होती है। निर्माण सामग्री के रूप में बालू का और भी उपयोग है, जैसे फर्शों या नीवों के नीचे बिछाना, छत पर चूना कंक्रीट के नीचे अलगाव परत के रूप में बिछाना तथा सड़कों पर छाना देना आदि। ईटें बनाने के लिए भी मिट्टी में बारीक बालू होना चाहिए।

धरती की पपड़ी में बालू की परतें एक और दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। अंतभौंम जल इन्हीं परतों में भरा रहता है, जो कुएँ खोदने पर, या नलकूप गलाने पर, उपलब्ध होता है और हमारी जल संभरण समस्या का समाधान संभव बनाता है। मिट्टी के साथ मिला हुआ बालू ही उसका जल शोषण क्षमता का आधार है, क्योंकि चिकनी मिट्टी की परत पानी नहीं धारण कर सकती। खेतों में थोड़ी ही गहराई पर चिकनी मिट्टी होने से भूमि ऊसर हो जाती है। कुछ परिमाण में बालू मिश्रित मिट्टी, जो दुमट कहलाती है, खेती के लिए अच्छी होती

टीका टिप्पणी और संदर्भ