अकलंक
अकलंक
| |
पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 65 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1973 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | दलसुख डी.मालवणिया। |
अकलंक जैन न्यायशास्त्र के अनेक मौलिक ग्रंथों के लेखक आचार्य अकलंक समय ई. 720-780 है। अकलंक ने भर्तृहरि, कुमारिल, धर्मकीर्ति और उनके अनेक टीकाकारों के मतों की समालोचना करके जैन न्याय को सुप्रतिष्ठित किया है। उनके बाद होने वाले जैन आचार्यों ने अकलंक का ही अनुगमन किया है। उनके ग्रंथ निम्नलिखित हैं:
1.उमास्वाति तत्वार्थ सूत्र की टीका तत्वार्थवार्तिक जो राजवार्तिक के नाम से प्रसिद्ध है। इस वार्तिक के भाष्य की रचना भी स्वयं अकलंक ने की है।
2.आप्त मीमांसा की टीका अष्टशती।
3.प्रमाण प्रवेश, नयप्रवेश और प्रवचन प्रवेश के संग्रह रूप लछीयस्रय।
4.न्याय विनिश्चय और उसकी वृत्ति।
5.सिद्धि विनिश्चय और उसकी वृत्ति।
6.प्रमाण संग्रह। इन सभी ग्रंथों में जैन संमत अनेकांतवाद के आधार पर प्रमाण और प्रमेय की विवेचना की गई है और जैनों के अनेकांतवाद को सदृढ़ भूमि पर सुस्थित किया गया है। विशेष विवरण के लिए देखिए, सिद्धि विनिश्चय टीका की प्रस्तावना। (द. मा.)
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ