अग्निमित्र

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लेख सूचना
अग्निमित्र
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 76
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1973 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक चन्द्रचूड़ मणि।।

अग्निमित्र शुगंवंश का दूसरा प्रतापी सम्राट जो सेनापति पुष्यमित्र का पुत्र था और उसके पश्चात्‌ 155 ई. पू. में राजसिंहासन पर बैठा। पुष्यमित्र के राजत्वकाल में ही यह विदिशा का गोप्ता बनाया गया था और वहाँ के शासन का सारा कार्य यही देखता था।

अग्निमित्र के विषय में जो कुछ ऐतिहासिक तथ्य सामने आए हैं उनका आधार पुराण तथा कालिदास की सुप्रसिद्ध रचना मालविकाग्निमित्र और उत्तरी पंचाल (रुहेलखंड) तथा उत्तरकोशल आदि से प्राप्त मुद्राएँ हैं। मालविकाग्निमित्र से पता चलता है कि विदर्भ की राजकुमारी मालविका से अग्निमित्र ने विवाह किया था। यह उसकी तीसरी पत्नी थी। उसकी पहली दो पत्नियाँ धारिणी और इरावती थीं। इस नाटक से यवन शासकों के साथ एक युद्ध का भी पता चलता है जिसका नायकत्व अग्निमित्र के पुत्र वसुमित्र ने किया था।

पुराणों में अग्निमित्र का राज्यकाल आठ वर्ष दिया हुआ है। यह सम्राट साहित्य प्रेमी एवं कलाविलासी था। कुछ विद्वानों ने कालिदास को अग्निमित्र का समकालीन माना है, यद्यपि यह मत ग्राह्य नहीं है। अग्निमित्र ने विदिशा को अपनी राजधानी बनाया था और इसमें संदेह नहीं कि उसने अपने समय में अधिक से अधिक ललित कलाओं को प्रश्रय दिया।

जिन मुद्राओं में अग्निमित्र का उल्लेख हुआ है वे प्रारंभ में केवल उत्तरी पंचाल में पाई गई थीं जिससे रैप्सन और कनिंघम आदि विद्वानों ने यह निष्कर्ष निकाला था कि वे मुद्राएँ शुंगकालीन किसी सामंत नरेश की होंगी, परंतु उत्तर कोशल में भी काफी मात्रा में इन मुद्राओं की प्राप्ति ने यह सिद्ध कर दिया है कि ये मुद्राएँ वस्तुत अग्निमित्र की ही हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

सं. ग्रं.- पार्जिटर डायनैस्टीज़ ऑव द कलि एज; कनिंघम एंशेंट इंडियन क्वाइंस; रैप्सन क्वाइंस ऑव एंशेंट इंडिया; कालिदास मालविकाग्निमित्र; तथा पुराण साहित्य।