इसिपत्तन
इसिपत्तन वर्तमान सारनाथ का प्राचीन नाम था। वाराणसी, बौद्ध और पालि साहित्य में सारनाथ इसी नाम से प्रसिद्ध है। बुद्धत्व लाभ करने के पश्चात भगवान महात्मा बुद्ध ने इसिपत्तन आकर अपना सर्वप्रथम उपदेश दिया था, जो 'धर्मचक्रप्रवर्तन' के नाम से प्रसिद्ध है।
- महात्मा बुद्ध से सम्बन्ध के कारण ही यह पुनीत भूमि आज भी सारे बौद्ध जगत के लिए तीर्थ स्थान बनी हुई है।
- इस स्थान का नाम 'इसिपत्तन' क्यों पड़ा, इस पर कई व्याख्याएँ प्राप्त होती हैं। कहा जाता है कि पूर्व काल में आकाशमार्ग से जाते कुछ सिद्ध योगी निर्वाण प्राप्त कर यहीं गिर पड़े, जिससे इस स्थान का नाम 'ऋषि के गिरने का स्थान' अर्थात् 'इसिपत्तन' पड़ा।
- यह भी सम्भव है कि ऋषिओं का 'पत्तन' (नगर) होने के कारण यह 'इसिपत्तन' के नाम से विख्यात हुआ हो।
- इसिपत्तन से सम्बंधित एक 'जातक कथा' में यहाँ निवास करने वाले मृगाधिपति सुवर्ण-शरीर-धारी बोधिसत्व का उल्लेख मिलता है, जिन्होंने अपने ज्ञान से वाराणसी के राजा को धर्मोपदेश कर जीवहिंसा का परित्याग कराया। फिर उन्हीं के नाम से यह स्थान 'सारंगनाथ' या 'सारनाथ' के नाम से प्रसिद्ध हुआ।[१]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भिक्षु जगदीश काश्यप, हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2, पृष्ठ संख्या 10