गंगाबाई

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गंगाबाई पेशवा नारायण की पत्नी थी। अठारह वर्ष की अवस्था में ही जब नारायण राव को 30 अगस्त, 1773 ई. को समय से वेतन प्राप्त न होने के कारण क्रोधोन्मत्त सिपाहियों ने मार डाला तब रघुनाथ राव पेशवा बनकर राजकाज देखने लगे। किंतु यह बात अनेक लोगों को अप्रिय थी। अत: रघुनाथ राव के विरोधी लोगों ने नाना फड़नवीस और हरिंपथ फड़के के नेतृत्व में एक परिषद् की स्थापना की। उस समय गंगाबाई गर्भवती थीं। अत: इन लोगों ने रघुनाथ राव को पदच्युत करने की योजना बनाई जिसके अनुसार गंगाबाई के गर्भ से बालक का जन्म होने पर उसे पदच्युत करना सहज था। अत: उन लोगों ने गंगा बाई को पुरंदर भेजने की व्यवस्था की ताकि उनका कोई अनिष्ट न कर सके। और वे लोग इस भावी पेशवा के जन्म की प्रतीक्षा में गंगाबाई के नाम से पेशवा का काम चलाने लगे। 18 मई, 1774 ई. को गंगाबाई के पुत्र हुआ जिसे माधवराव नारायण के नाम से अभिहित किया गया और जन्म के चालीसवें दिन उसे लोगों ने पेशवा घोषित कर दिया। पीछे यही सवाई माधवराव के नाम से प्रख्यात हुआ। उसके बड़े होने तक गंगाबाई उसके नाम पर शासनकार्य देखती रहीं और वे नाना फड़नवीस के परामर्श के अनुसार ही चलती थीं। इससे परिषद् में मतभेद उत्पन्न हो गया और लोगों ने यह अपवाद फैलाना आरंभ किया कि गंगाबाई का फड़नवीस के साथ अवैध संबंध है और उससे उन्हें गर्भ है। वे इस लोकापवाद को सहन न कर सकीं और विष खाकर उन्होंने अपना प्राणांत कर लिया।[१]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3| लेखक-परमेश्वरीलाल गुप्त |पृष्ठ संख्या- 343