अंतर्वेद

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित १२:०८, १९ फ़रवरी २०१४ का अवतरण
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
चित्र:Tranfer-icon.png यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें
लेख सूचना
अंतर्वेद
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 51
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1973 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक चन्द्रचूड़ मणि

अंतर्वेद से अभिप्राय गंगा और यमुना के बीच के उस विस्तृत भूखंड से था जो हरिद्वार से प्रयाग तक फैला हुआ है। इस द्वाब में वैदिक काल से बहुत पीछे तक निरंतर यज्ञादि होते आए हैं। वैदिक काल में वहाँ उशीनर, पंचाल तथा वत्स अथवा वंश बसते थे। इसी से पूर्व की ओर लगे कोसल तथा काशी जनपद थे। अंतर्वेद को पश्चिमी तथा दक्षिणी सीमाओं पर कुरु, शूरसेन, चेदि आदि का आवास था। ऐतिहासिक युग में इस प्रदेश में कई अश्वमेघ यज्ञ हुए जिनमें समुद्र गुप्त का यज्ञ बड़े महत्व का था।

गुप्तकालीन शासन व्यवस्था के अनुसार अंतर्वेद साम्राज्य का विषय या जिला था। स्कंद गुप्त के समय उसका विषयपति शर्वनाग स्वयं सम्राट द्वारा नियुक्त किया गया था।

पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध



टीका टिप्पणी और संदर्भ