अद्वय
चित्र:Tranfer-icon.png | यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें |
अद्वय
| |
पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 98 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1973 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | रामचंद्र पांडेय। |
अद्वय द्वित्व भाव से रहित। महायान बौद्ध दर्शन में भाव और अभाव की दृष्टि से परे ज्ञान को अद्वय कहते हैं। इसमें अभेद का स्थान नहीं होता। इसके विपरीत अद्वैत भेदरहित सत्ता का बोध कराता है। अद्वैत में ज्ञान सत्ता की प्रधानता होती है और अद्वय में चतुष्कोटिविनिर्मुक्त ज्ञान की प्रधानता मानी जाती है। माध्यमिक दर्शन अद्वयवाद्वी और शांकर वेदांत तथा विज्ञानवाद अद्वैतवादी दर्शन माने जाते हैं।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
सं. ग्रं.- भट्टाचार्य, विधुशेखर: आगमशास्त्र मूर्ति, टी.आर. बी: सेंट्रल फ़िलासफ़ी ऑव बुद्धिज्म।