गोल्दोनी कार्लो
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गोल्दोनी कार्लो
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4 |
पृष्ठ संख्या | 39 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | फूलदेव सहाय वर्मा |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | राम सिंह तोमर |
गोल्दोनी कार्लो (1707-1793) इतालीय नाटककार कार्लो गोल्दोनी का जन्म वेनिस में हुआ। इन्होंने पेरुज्या, रमिनी में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की तथा पादोवा में कानून की उपाधि प्राप्त कर वेनसि में वकालत करना शुरु किया। आरंभ से ही गोल्दोनी की रुचि रंगमंच की ओर थी। 13 वर्ष की अवस्था में इन्होंने 'सोरेल्लीना दी दोन पीलोने' (दोन पीलोने की बहन) नामक नाट्य कृति के अभिनय में भाग लिया। ग्रीक, लैटिन, इतालीय तथा फ्रांसीसी नाट्य साहित्यों तथा नाट्य शास्त्रों का इन्होंने विस्तृत अध्ययन किया। सन् 1732 में इन्होंने, 'अमालासूंता', गतिनाट्य कृति लिखो और फिर मिलान, वेरोना और वेनिस के रंगमंचों पर अभिनीत किए जाने के लिये अनेक प्रहसन तथा नाटक लिखे। धीरे धीरे ये दर्शकों की मनोवत्ति को परिष्कृत¢ करने का प्रयत्न भी कर रहे थे। मोमोला कोर्तेसान (1738) तथा 'दोन्ना दी गारबोर्वो' (1743) कृतियों ने इन्हें प्रसिद्ध कर दिया और जीरोसामो मेदेबाक नामक नाटकमंडली ने नाट्य कृतियाँ लिखने के लिये इन्हें नौकर रख लिया। गोल्दोनी इस बीच काफी प्रसिद्धि पा चुके थे। किंतु गोल्दोनी का विरोध करनेवाले भी थे। उनसे तंग आकर 1762 में ये पेरिस चले गए। वहाँ इतालीय नाट्यकृतियों के अभिनय के लिये इन्हें आमंत्रित किया गया था। अथक प्रयास के फलस्वरूप पेरिस के दर्शक भी गोल्दोनी के प्रशंसक बन गए। वहीं 1771 में गोल्दोनी में फ्रांसीसी में 'बूर्रू ब्यप्रे' नाटक लिखा और 76 वर्ष की अवस्था में फ्रेंच में ही अपने मेम्वायर्स[१] लिखे। 18वीं शती के इतालीय साहित्यिक जगत् का बहुत ही रोचक चित्रण गोल्दोनी के संस्मरणों में मिलता है। अपने जीवन की घटनाओं का बड़े निरपेक्ष ढंग से इन्होंने वर्णन किया है।
गोल्दोनी की प्रवृत्ति बहिर्मुखी थी। उन्होंने शताधिक नाटक कृतियाँ लिखीं जिनमें तत्कालीन समाज, विशेषकर वेनिस के जीवन के बड़े ही सटीक चित्र प्रस्तुत किए गए हैं। नाटकों में सधार की दृष्टि स भी गोल्दोनी का स्थान महत्वपूर्ण है। नाटकों के कृत्रिम तथा कुरुचिपूर्ण रूप को उन्होंने सँवारा। इनक प्रारंभिक कृतियाँ दु:ख-सुख-मिश्रित हैं- बेलिसारियो, रोसमुंद्रा, दोन ज्योवान्नी नाटक, कुछ प्रहसन- वास्न, ओर्रोते, जेरमोंदो आदि, कुछ इंतरमेज्जो[२] ला पेल्डारीना, ला पुपील्ला आदि हैं। इनकी महत्वपूर्ण नाटक कृतियों का काल सन् 1748 के बाद प्रारंभ होता है- ला वेदोवा स्कल्त्रा (चालाक विधवा), बोत्तेगा देल कफ्फे (कॉफी की दुकन), इल वूज्यार्दो (झूठा), रचनाओं में रूढ़िवादी कल्पित निष्प्राण पात्रों के स्थान पर वास्तविक जीवन को प्रस्तुत करने का प्रयत्न लक्षित होता है। बुऔना मोल्ये (अच्छी पत्नी), पेत्तेगोलेज्जी देल्ले दोन्ने (औरतों के झगड़े) जैसी कृतियों में गोल्दोनी ने वास्तविक जीवन के दृश्य चित्रित किए है। उनकी सुंदरतम कृतियाँ हैं-लोकांदिएरा (होटलवाली), इन्नमोरती (प्रेमी), ई रूस्तेगी, कासा नोवा (नया घर), बारूफ्फे क्योज्जोत्ते[३]। पात्रों का मनोवैज्ञानिक चित्रण, तथा वातावरण गोल्दोनी के सूक्ष्म जीवनअध्ययन का परिचायक है। इन्होंने यात्रा के अनुभवों को लेकर 'ले स्मानीए देल्ला वीसेज्जातूराद्' (प्रवास की चोटें) जैसी कृतियाँ भी लिखी हैं। अंत में दुखित होकर जब गोल्दोनी अपने जन्मस्थान वेनिस को छोड़कर पेरिस जा रहे थे तो मानो विदा लेने के लिये उन्होंने रूपकनाट्य 'ऊना देल्ले उल्तिमे सेरे देल कानेंवाले दि वेनेत्सिया'[४] लिखी। गोल्दोनी ने वेनिस की बोली को साहित्यिक रूप प्रदान किया। वेनिस की बोली का ही उन्होंने अपनी कृतियों में प्रयोग किया और इस प्रकार अलग साहित्यिक शैली का निर्माण किया। इतालीय नाटक की अनवरत स्थिति को सुधारने का श्रेय गोल्दोनी को है।