ठाकुर गदाधर सिंह
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सिंह, ठाकुर गदाधर का जन्म सन् 1869 ई. में एक मध्यमवर्गीय राजपूत परिवार में हुआ था। आरंभ में इन्होंने एक सफल सैनिक का जीवन व्यतीत किया। बाद में यात्रावृत्तांतलेखन की ओर प्रवृत्त हुए। 1900 में इन्होंने एक सैनिक अधिकारी के रूप में चीन की यात्रा की। उसी समय चीन में 'बाक्सर विद्रोह' हुआ था। ब्रिटिश सरकार ने 'बाक्सर विद्रोह' का दमन करने के लिए राजपूत सेना की एक टुकड़ी चीन भेजी थी, ठाकुर साहब उसके एक विशिष्ट सदस्य थे। सम्राट्, एडवर्ड के तिलकोत्सव के समारोह में आपको ग्लैंड जाने का अवसर प्राप्त हुआ। वहाँ जाकर ठाकुर साहब ने जो कुछ देखा, उसे अपनी लेखनी द्वारा व्यक्त किया। ठाकुर साहब से पहले शायद ही किसी ने यात्रासंस्मरण लिखे हों। सन् 1918 ई. में उनचास वर्ष की अल्पायु में इनका स्वर्गवास हो गया।
ठाकुर गदाधर सिंह की यात्रासंस्मरण की दो कृतियाँ विशेष उल्लेखनीय हैं, 1. 'चीन में तेरह मास' और 2. 'हमारी एडवर्डतिलक-यात्रा।'
'चीन में तेरह मास' नामक ग्रंथ 319 पृष्ठों में है और काशीनागरीप्रचारिणी सभा के आर्यभाषा पुस्तकालय में इसकी एक प्रति सुरक्षित है। लेखक ने इस पुस्तक में अपनी चीनयात्रा का मनोहर वृत्तांत एवं अपने सैनिक जीवन की साहसपूर्ण कहानी जिस रोचक ढंग से लिखी है वह अत्यंत मनमोहक तथा सुरुचिपूर्ण सामग्री कही जा सकती है। पुस्तक में जहाँ चीन के साधारण जीवन की कहानी है वहाँ उनके सैनिक जीवन का साहसपूर्ण ब्यौरा भी है। उससे उस समय की चीनी जनता की मनोदशा, रहन-सहन और आचार-व्यवहार पर पूरा प्रकाश पड़ता है।
'एडवर्ड-तिलक-यात्रा' नामक कृति में लेखक ने इंग्लैंडयात्रा का रोचक वर्णन किया है। इन पुस्तक में यात्राविवरण के साथ साथ उनके संस्मरण भी हैं।
बीसवीं शताब्दी के आरंभिक दशक में ठाकुर गदाधर सिंह हिंदीगद्य के विशिष्ट लेखकों में माने जाते हैं। यह द्रष्टव्य है कि उस समय तक हिंदी गद्य का कोई स्वरूप निश्चित नहीं हो पाया था। भाषा के परिष्कार और उसकी व्यंजनाशक्ति को बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा था। गदाधर सिंह की कृतियों ने हिंदी गद्य के निर्माणयुग में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इनकी भाषा का स्वरूप सरल, सहज, स्वाभाविक था। इनकी हास्य व्यंग्यपूर्ण शैली पाठकों के मन को मोह लेती थी। यही कारण है कि गदाधर सिंह उस समय में यात्रा संस्मरण लिखकर ही प्रसिद्ध हो गए।