महाभारत आदि पर्व अध्याय 4 श्लोक 1-12
चतुर्थ अध्याय: आदिपर्व (पौलोमपर्व)
कथा प्रवेश नैमिषारण्य में कुलपति शौनक के बारह वर्षो तक चालू रहने वाले सत्र में उपस्थित महर्षियों के समीप एक दिन लोमहर्षण पुत्र सूतनन्दन उग्रश्रवा आयें। वे पुराणों की कथा कहने में कुशल थे। वे पुराणों के ज्ञाता थे। उन्होंने पुराणविद्या में बहुत परिश्रम किया था। वे नैमिषारण्यवासी महर्षियों से हाथ जोड़कर बोले-‘पूज्यपाद महर्षिगण! आप लोग क्या सुनना चाहते हैं? मैं किस प्रसंग पर बोलूँ?’। तब ऋषियों ने उनसे कहा लोमहर्षण कुमार ! हम आपको उत्तम प्रसंग बतलायेंगे और कथा प्रसंग प्रारम्भ होने पर सुनने की इच्छा रखने वाले हम लोगों के समक्ष आप बहुत सी कथाएँ कहेंगे। किंतु पूज्यपात कुलपति भगवान् शौनक अभी अग्नि की उपासना में संलग्न हैं।।4।। वे देवताओं और असुरों से सम्बन्ध रखने वाली बहुत सी दिव्य कथाएँ जानते हैं। मनुष्य, नागों तथा गनधवों की कथाओं से भी वे सर्वथा परिचित हैं। सूतनन्दन ! वे विद्वान् कुलपति विप्रवर शौनक जी भी इस यज्ञ में उपस्थित हैं। वे चतुर, उत्तम व्रतधारी तथा बुद्धिमान! हैं। शास्त्र (श्रुति, स्मृति, इतिहास, पुराण) तथा आरण्यक (बृहदारण्यक आदि) के तो वे आचार्य ही हैं। वे सदा सत्य बोलने वाले, मन और इन्द्रियों के संयम में तत्पर, तपस्वी और नियम पूवर्क व्रत को निवाहने वाले हैं। वे हम सभी लोगों के लिये सम्माननीय है; अतः जब तक उनका आना न हो, तब तक प्रतीक्षा कीजिये। गुरूदेव शौनक जब यहाँ उत्तम आसन पर विराजमान हो जायँ उस समय वे द्विजश्रेष्ठ आपसे जो कुछ पूछें, उसी प्रसंग को लेकर आप बोलियेगा। उग्रश्रवाजी ने कहा-एवमस्तु (एसा ही होगा), गुरूदेव महात्मा शौनक जी के बैठ जाने पर उन्हीं के पूछने के अनुसार मैं नाना प्रकार की पुण्यदायिनी कथाएँ कहूँगा। तदनन्तर विप्राशिरोमणि शौनक जी क्रमशः सब कार्यो का विधि पूर्वक सम्पादन करके वैदिक स्तुतियों द्वारा देवताओं को और जल की अंजलि द्वारा पितरों को तृप्त करने के पश्चात् उस स्थान पर आये, जहाँ उत्तम व्रतधारी सिद्ध ब्रह्मर्षि गण यज्ञ मण्डप में सूतजी को आगे विराजमान करके सुख पूर्वक बैठे थे। ऋत्चिजों और सदस्यों के बैठ जाने पर कुलपति शौनक जी भी वहाँ बैठे और इस प्रकार बोले।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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