महाभारत आदि पर्व अध्याय 15 श्लोक 1-11

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पंचदशो अध्‍याय: आदिपर्व (आस्तीकपर्व)

महाभारत: आदिपर्व: पंचदशो अध्‍याय: श्लोक 1- 11 का हिन्दी अनुवाद

आस्तीक का जन्म तथा मातृ शाप से सर्पसत्र में नष्ट होने वाले नाग वंश की उनके द्वारा रक्षा उग्रश्रवाजी कहते हैं-ब्रह्मवेत्ताओं में श्रेष्ठ शौनक ! पूर्वकाल में नाग माता कद्रू ने सर्पों को यह शाप दिया था कि तुम्हें जनमेजय के यज्ञ में अग्नि भस्म कर डालेगी। उसी शाप की शान्ति के लिये नाग प्रवर वासुकि ने सदाचार का पालन करने वाले महात्मा जरत्कारू को अपनी बहिन ब्याह दी थी। महामना जरत्कारू ने शास्त्रीय विधि के अनुसार उस नाग कन्या का पाणिग्रहण किया और उसके गर्भ से आस्तीक नाम पुत्र को जन्म दिया। आस्तीक वेद-वेदांगों के पारगत विद्वान, तपस्वी, महात्मा, सब लोगों के प्रति समान भाव रखने वाले तथा पितृकुल और मातृकुल के भय को दूर करने वाले थे। तदनन्तर दीर्घकाल के पश्चात् पाण्डव वंशीय दरेश जनमेजय ने सर्पसत्र नामक महान् यज्ञ का आयोजन किया, ऐसा सुनने में आता हैं। सर्पो के संहार के लिये आरम्भ किये हुए उस सत्र में आकर महातपस्वी आस्तीक ने नागों को मौत से छुड़ाया। उन्होंने मामा तथा ममेरे भाईयों को एवं अन्यान्य सम्बन्धों में आने वाले सब नागों को संकट मुक्त किया। इसी प्रकार तपस्या तथा संतानोत्पादन द्वारा उन्होंने पितरों का भी उद्धार किया। ब्रह्मन् ! भाँति-भाँति के व्रतों और स्वाध्यायों का अनुष्ठान करके वे सब प्रकार के ऋ़णों से उऋ़ण हो गये।अनेक प्रकार की दक्षिणा वाले यज्ञों का अनुष्ठान करके उन्होंने देवताओं, ब्रह्मचर्य व्रत के, पालन से ऋषियों और संतान की उत्पत्ति द्वारा पितरों को तृप्त कियां कठोर व्रत का पालन करने वाले जरत्कारू मुनि पितरों के साथ स्वर्ग लोक को चले गये। आस्तीक जैसे पुत्र तथा परम धर्म की प्राप्ति करके मुनिवर जरत्कारू ने दीर्घकाल के पश्चात् स्वर्गलोक की यात्रा की। भृगु कुल शिरोमणे ! इस प्रकार मैंने आस्तीक के उपाख्यान का यथावत् वर्णन किया है। बताइये, अब और क्या कहा जाय?


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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