इकतालीसवाँ अध्याय: उद्योगपर्व (सेनोद्योग पर्व)
महाभारत उद्योगपर्व: इकतालीसवाँ अध्याय: श्लोक 35- 57 का हिन्दी अनुवाद
मधुसूदन ! शंख मुरज तथा भेरियोंके शब्द और उच्च स्वरसे किये हुए सिंहनाद ही सुब्रह्मण्यनाद होंगे। माद्रीके यशस्वी पुत्र महापराक्रमी नकुल-सहदेव उसमें भलीभाँति शामित्रकर्म का सम्पादन करेंगे। गोविन्द ! जनार्दन ! विचित्र ध्वजदण्डोंसे सुशोभित निर्मल रथ-पक्तियाँ ही इस रणयज्ञमें यूपोंका काम करेगी। कर्णि, नालीक, नाराच और वत्सदन्त आदि बाण उपबृंहण (सोमाहुतिके साधनभूत चमस आदि पात्र) होंगे । तोमर सोमकलशका और धनुष पवित्रीका काम करेंगे। श्रीकृष्ण ! उस यज्ञमें खंड ही कपाल, शत्रुओं के मस्तक ही पुरोडाश तथा रूधिर ही हृविष्य होंगे। निर्मल शक्तियां और गदाएँ सब ओर बिखरी हुई समिधाएँ होगी । द्रोण और कृपाचार्यके शिष्य ही सदस्यका कार्य करेंगे ।गाण्डीवधारी अर्जुनके छोड़े हुए तथा द्रोणाचार्य, अश्रत्थामा एवं अन्य महारथियोंके चलाये हुए बाण यज्ञ-कुण्डके सब ओर बिछाये जानेवाले कुशोंका काम देंगे। सात्यकि प्रतिस्थाता (अध्वर्युके दूसरे सहयोगी) का कार्य करेंगे । धृतराष्ट्रपुत्र दुर्योधन इस रणयज्ञकी दीक्षा लेगा और उसकी विशाल सेना ही यजमानपत्नीका काम करेगी। महाबाहो ! इस महायज्ञका अनुष्ठान आरम्भ हो जानेपर इसके अतिरात्रयागमें (अथवा आधी रात के समय) महाबली घटोत्कच शामित्रकर्म करेगा। श्रीकृष्ण ! जो श्रौत यज्ञके आरम्भमें आरम्भमें ही साक्षात अग्नि-कुण्डसे प्रकट हुआ था, वह प्रतापी वीर धृतघुम्न इस यज्ञकी दक्षिणाका कार्य सम्पादन करेगा। श्रीकृष्ण ! मैंने जो धृतराष्ट्रपुत्र दुर्योधनका प्रिय करने के लिये पाण्डवोंको बहुतसे कटुवचन सुनाये है, उस अयोग्य कर्मके कारण आज मुझे बड़ा पश्चाताप हो रहा है । श्रीकृष्ण ! जब आप सव्यसाची अर्जुनके हाथसे मुझे मारा गया देखेंगे, उस समय इस यज्ञका पुनश्रिति-कर्म (यज्ञके अनन्तर किया जानेवाला चयनारम्भ) सम्पन्न होगा। जब पाण्डुनन्दन भीमसेन सिंहनाद करते हुए दु:शासनका रक्तपान करेंगे, उस समय इस यज्ञका सुत्य (सोमाभिषव) कर्म पूरा होगा। जनार्दन ! जब दोनो पांचाल राजकुमार धृष्टघुम्न और शिखण्डी द्रोणाचार्य और भीष्मको मार गिरायेंगे, उस समय इस रणयज्ञका अवसान (बीच-बीच में होने वाला विराम) कार्य सम्पन्न होगा। माधव ! जब महाबली भीमसेन दुर्योधनका वध करेंगे उस समय धृतराष्ट्रपुत्रका प्रारम्भ किया हुआ यह यज्ञ समाप्त हो जायेगा। केशव ! जिनके पति, पुत्र और संरक्षक मार दियेगये होंगे, वे धृतराष्ट्रके पुत्रों और पौत्रोंकी बहुएँ जब गान्धारीके साथ एकत्र होकर कुतों, गीधों और कुरर पक्षियोंसे भरे हुए समरांगणमे रोती हुई विचरेंगी, जनार्दन ! वही उस यज्ञका अवभृथस्नान होगा। क्षत्रियशिरोमणी मधुसूदन ! तुम्हारे इस शान्तिस्थापनके प्रयत्नसे कहीं ऐसा न हो कि विद्यावृद्ध और वयोवृद्ध क्षत्रियगण व्यर्थ मृत्युको प्राप्त हों (युद्धमें शस्त्रोंसे होने-वाली मृत्यु से वंचित रह जाये) । केशव ! कुरूक्षेत्र तीनों लोकोंके लिये परम पुण्यतम तीर्थ है । यह समृद्धिशाली क्षत्रियसमुदाय वही जाकर शस्त्रोंके आघातसे मृत्युको प्राप्त हो। कमलनयन वृष्णिनन्दन ! आप भी इसकी सिद्धिके लिये ही ऐसा मनोवाच्छित प्रयत्न करें, जिससे यह सारा-का-सारा क्षत्रियसमूह स्वर्गलोक में पहुंचजाये। जनार्दन ! जब तक ये पर्वत और सरिताएँ रहेंगी, तब-तक इस युद्धकी कीर्ति-कथा अक्षय बनी रहेगी । वार्ष्णेय ! ब्राह्राणलोग क्षत्रियोंके समाज में इस महाभारतयुद्धका, जिसमें राजाओंके सुयशरूपी धनका संग्रह होनेवाला है, वर्णन करेंगे। शत्रुओंको संताप देनेवाले केशव ! आप इस मन्त्रणाको सदा गुप्त रखते हुए ही कुन्तीकुमार अर्जुनको मेरे साथ युद्ध करने के लिये ले आवें ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्वके अन्तर्गत भगवाद्यानपर्व में कर्णके द्वारा अपने निश्चित विचार का प्रतिपादनविषयक एक सौ इकतालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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