एक सौ बासठवाँ अध्याय: उद्योगपर्व (उलूकदूतागमनपर्व)
महाभारत: उद्योगपर्व: एक सौ बासठवाँ अध्याय: श्लोक 1-37 का हिन्दी अनुवाद
पाण्डव पक्ष की ओर से दुर्योधन को उसके संदेश का उत्तर
संजय कहते हैं—राजन! उलूकने विषधर सर्पके समान क्रोधमें भरे हुए अर्जुन को अपने वाग्बाणोंसे और भी पीडा देते हुए दुर्योधनकी कही हुई सारी बातें कह सुनायी। उसकी बात सुनकर पाण्डवोंको बड़ा रोष हुआ। एक तो वे पहलेसे ही अधिक क्रुद्ध थे, दूसरे जुआरी शकुनिके बेटेने भी उनका बडा तिरस्कार किया। वे आसनोंसे उठकर खडे़ हो गये और अपनी भुजाओंको इस प्रकार हिलाने लगे, मानो प्रहार करनेके लिये उद्यत हों। वे विषैले सर्पों के समान अत्यन्त कुपित हो एक-दूसरे की ओर देखने लगे। भीमसेनने फुफकारते हुए विषधर नागकी भांति लम्बी साँसें खींचते हुए सिर नीचे किये लाल नेत्रोंसे भगवान श्रीकृष्णकी ओर देखा। वायुपुत्र भीमको क्रोधसे अत्यन्त पीड़ित और आहत देख दशाईकुलभूषण श्रीकृष्णने उलूकसे मुस्कराते हुए से कहा- जुआरी शकुनिके पुत्र उलूक! तू शीघ्र लौट जा और दुर्योधन कह दे– पाण्डवों ने तुम्हारा संदेश सुना और उसके अर्थको समझकर स्वीकार किया । युद्धके विषय में जैसा तुम्हारा मत है, वैसा ही हो, नृपश्रेष्ठ ! ऐसा कहकर महाबाहु केशवने पुन: परम बुद्धिमान राजा युधिष्ठिरकी ओर देखा। फिर उलूकने भी समस्त सृंजयवंशी क्षत्रियसमुदाय, यश्स्वी श्रीकृष्ण तथा पुत्रोंसहित द्रुपद और विराटके समीप सम्पूर्ण राजाओंकी मण्डलीमें शेष बातें कहीं। उसने विषधर सर्पके सदृश कुपित हुए अर्जुनको पुन: अपने बाग्बाणोंसे पीड़ा देते हुए दुर्योधन की कही हुई सब बातें कह सुनायीं। साथ ही श्रीकृष्ण आदि अन्य सब लोगोंसे कहनेके लिये भी उसने जो-जो संदेश दिये थे, उन्हें भी उन सबको यथावत्रूपसे सुना दिया। उलूकके कहे हुए उस पापपूर्ण दारूण वचनको सुनकर कुन्तीपुत्र अर्जुनको बड़ा क्षोभ हुआ। उन्होंने हाथसे ललाटका पसीना पोंछा नरेश्वर ! अर्जुनको उस अवस्था में देखकर राजाओंकी वह सीमित तथा पाण्डव महारथी सहन न कर सके। राजन! महात्मा अर्जुन तथा श्रीकृष्णके प्रति आक्षेपपूर्ण वचन सुनकर वे पुरूषसिंह शूरवीर क्रोधसे जल उठे। धृष्टद्युम्न, शिखण्डी, महारथी सात्यकि, पाँच भाई केकयराजकुमार, राजा धृष्टकेतु, पराक्रमी भीमसेन तथा महारथी नकुल-सहदेव थे सबके सब क्रोधसे लाल आंखे किये अपने आसनोंसे उछलकर खडे़ हो गये और अंगद, पारिहार्य (मोतियोंके गुच्छों) तथा केयूरोंसे विभूषित एवं लाल चन्दनसे चर्चित अपनी सुन्दर भुजाओंको थमाकर दाँतोंपर दाँत रगड़ते हुए ओठोंके दोनों कोने चाटने लगे। उनकी आकृति और भावको जानकर कुन्तीपुत्र वृकोदर बडे़ बेगसे उठे और क्रोधसे जलते हुएके समान सहसा आँखे फाड़-फाड़कर देखते, कटकटाते और हाथसे हाथ रगड़ते हुए उलूकसे इस प्रकार बोले- ओ मूर्ख ! दुर्योधनने तुझसे जो कुछ कहा है, वह तेरा वचन हमने सुन लिया । मानो हम असमर्थ हों और तू हमें प्रोत्साहन देनेके निमित्त यह सब कुछ कह रहा हो। मूर्ख उलूक ! अब तू मेरी कही हुई दु:सह बातें सुन और समस्त राजाओंकी मण्डलीमें सूतपुत्र कर्ण और अपने दुरात्मा पिता शकुनिके सामने दुर्योधनको सुना देना-दुराचारी दुर्योधन ! हमलोगोंने सदा अपने बडे़ भाई को प्रसन्न रखनेकी इच्छासे तेरे बहुतसे अत्याचारोंको चुपचाप सह लिया है; परंतु तू इन बातोंको अधिक महत्व नहीं दे रहा है। बुद्धिमान धर्मराज ने कौरवकुलके हितकी इच्छासे शान्ति चाहने वाले भगवान श्रीकृष्ण को कौरवों के पास भेजा था। परंतु तू निश्चय ही कालसे प्रेरित हो यमलोकमें जाना चाहता है ( इसलिये संधिकी बात नहीं मान सका) । अच्छा, हमारे साथ युद्धमें चल । कल निश्चय ही युद्ध होगा। पापात्मन् ! मैंने भी जो तेरे और तेरे भाइयोंके वधकी प्रतिज्ञा की है, वह उसी रूपमें पूर्ण होगी। इस विषयमें तुझे कोई अन्यथा विचार नहीं करना चाहिये। वरूणालय समुद्र शीघ्र ही अपनी सीमाका उल्लंघन कर जाये और पर्वत जीर्ण-शीर्ण होकर बिखर जायें, परंतु मेरी कही हुई बात झूठी नहीं हो सकती। दुर्बुद्धे ! तेरी सहायताके लिये यमराज, कुबेर अथवा भगवान रूद्र ही क्यों न आ जाये, पाण्डव अपनी प्रतिज्ञाके अनुसार सब कार्य अवश्य करेंगे। मैं अपनी इच्छाके अनुसार दु:शासन का रक्त अवश्य पीऊँगा। उस समय साक्षात भीष्मको भी आगे करके जो कोई भी क्षत्रिय क्रोधपूर्वक मेरे ऊपर धावा करेगा, उसे उसी क्षण यमलोक पहुँचा दूँगा । मैंने क्षत्रियोंकी सभामें यह बात कही है, जो अवश्य सत्य होगी। यह मैं अपनी सौगन्ध खाकर कहता हूं। भीमसेनका वचन सुनकर सहदेवका भी अमर्ष जाग उठा। तब उन्होंने भी क्रोधसे आँखे लाल करके यह बात कही-ओ पापी ! मैं इन वीर सैनिकोंकी सभामें गर्वीले शूरवीरके योग्य वचन बोल रहा हूं। तू इसे सुन ले और अपने पिताके पास जाकर सुना दे। यदि धृतराष्ट्र तेरे साथ सम्बन्ध न होता, तो कभी कौरवोंके साथ हमलोगोंकी फूट नहीं होती। तू सम्पूर्ण जगत तथा धृतराष्ट्रकुलके विनाशके लिये पापाचारी मूर्तिमान वैरपुरूष होकर उत्पन्न हुआ है। तू अपने कुलका भी नाश करनेवाला है। उलूक !तेरा पापात्मा पिताजन्मसे ही हमलोगोंके प्रति प्रतिदिन क्रूरतापूर्ण अहितकर बर्ताव करना चाहता है। इसलिये मैं शकुनिमे देखते देखते सबसे पहले तेरा वध करके सम्पूर्ण धनुर्धरोंके सामने शकुनिको भी मार डालूँगा और इस प्रकार अत्यन्त दुर्गम शत्रुतासे पार हो जाऊँगा। भीमसेन और सहदेव दोनोंके वचन सुनकर अर्जुनने भीमसेनसे मुस्कराते हुए कहा—आर्य भीम ! जिनका आपके साथ वैर ठन गया है, वे घरमें बैठकर सुखका अनुभव करनेवाले मूर्ख कौरव कालके पाशमें बँध गये हैं (अर्थात उनका जीवन नहींके बराबर है)।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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