महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 26 श्लोक 88-96

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छब्‍बीसवां अध्‍याय: अनुशासनपर्व (दानधर्मपर्व)

महाभारत: अनुशासनपर्व: छब्‍बीसवां अध्याय: श्लोक 74-96 का हिन्दी अनुवाद

स्वर्गवासी देवताओं जैसे सूर्यका तेज श्रेष्ठ है, जैसे पितरोंमें चन्द्रमा तथा मनुष्योंमें राजाधिराज श्रेष्ठ है, उसी प्रकार समस्त सरिताओंमें गंगाजी उत्‍तम हैं। (गंगाजीमें भक्ति रखनेवाले पुरूषको) माता, पिता, पुत्र, स्त्री और धनका वियोग होनेपर भी उतना दुःख नहीं होता, जितना गंगाके बिछोहसे होता हैं। इसी प्रकार उसे गंगाजीके दर्शनसे जितनी प्रसन्नता होती है, उतनी वनके दर्शनोंसे, अभीष्ट विषयसे, पुत्रोंसे तथा धनकी प्राप्तिसे भी नहीं होती। जैसे पूर्ण चन्द्रमाका दर्शन करके मनुष्योंकी दृष्टि प्रसन्न हो जाती है, उसी तरह त्रिपथगा गंगाका दर्शन करके मनुष्योंके नेत्र आनन्दसे खिल उठते हैं। जो गंगाजीमें श्रद्धा रखता, उन्हींमें मन लगाता, उन्हींके पास रहता, उन्हींका आश्रय लेता तथा भक्तिभावसे उन्हींका अनुसरण करता हैं वह भगवती भागीरथीका स्नेह-भाजन होता है। पृथ्वी, आकाश तथा स्वर्ग में रहनेवाले छोटे-छोटे सभी प्राणियोंको चाहिये कि वे निरन्तर गंगाजीमें स्नान करें। यही सत्पुरूषोंका सबसे उत्‍तम कार्य है। सम्पूर्ण लोकोंमें परम पवित्र होनेके कारण गंगाजीका यश विख्यात है; क्योंकि उन्होंने भस्मीभूत होकर पडे हुए सगरपुत्रोंको यहांसे स्वर्गमें पहुंचा दिया। वायुसे प्रेरित हो बड़े वेगसे अत्यन्त उंचे उठनेवाले गंगाजीकी परम मनोहर एवं कान्तिमयी तरंगमालाओं से नहाकर प्रकाशित होने वाले पुरूष परलोकमें सूर्यके समान तेजस्वी होते हैं। दुग्धके समान उज्ज्वल और घृतके समान स्निग्ध जलसे भरी हुई, परम उद्धार, समृद्धिशालिनी, वेगवती तथा अगाध जलराशिवाली गंगाजीके समीप जाकर जिन्होंने अपना शरीर त्याग दिया है वे धीर पुरूष देवताओंके समान हो गये। इन्द्र आदि देवता, मुनि और मनुष्य जिनका सदा सेवन करते हैं वे यशस्विनी, विशालकलेवरा, विश्वरूपा गंगादेवी अपनी शरणमें आये हुए अन्धों, जडों और धनहीनोंको भी सम्पूर्ण मनोवांछित कामनाओं से सम्पन्न कर देती है। गंगाजी ओजस्विनी, परम पुण्यमय, मधुर जलराशिसे परिपूर्ण तथा भूतल, आकाश और पाताल-इन तीन मार्गोंपर विचरनेवाली है। जो लोग तीनों लोकोंकी रक्षा करनेवाली गंगाजीकी शरणमें आये हैं, वे स्वर्गलोकको चले गये। जो मनुष्य गंगाजीके तटपर निवास और उनका दर्शन करता है उसे सब देवता सुख देते हैं उन्हें गंगाजीके स्पर्श और दर्शनसे पवित्र हो गये है। उन्हें गंगाजीसे ही महत्वको प्राप्त हुए देवता मनोवाछित गति प्रदान करते है। गंगा जगत् का उद्धार करने में समर्थ हैं। भगवान् पृष्निगर्भकी जननी पृष्निके तुल्य हैं, विशाल हैं, सबसे उत्कृष्ट हैं, मंगलकारिणी हैं, पुण्यराशिसे समृद्ध हैं, शिवजीके द्वारा मस्तकपर धारित होनेके कारण सौभाग्यशालिनी तथा भक्तोंपर अत्यन्त प्रसन्न रहनेवाली हैं। इतना ही नहीं, पापोंका विनाश करनेके लिये वे कालरात्रिके समान हैं तथा सम्पूर्ण प्राणियोंकी आश्रयभूत हैं। जो लोग गंगाजीकी शरणमें गये हैं वे स्वर्गलोकमें जा पहुंचे हैं। आकाश, स्वर्ग, पृथ्वी, दिशा और विदिशाओंमे भी जिनकी ख्याति फैली हुई है, सरिताओंमें श्रेष्ठ उन भगवती भागीरथीके जलका सेवन करके सभी मनुष्य कृतार्थ हो जाते हैं। ये गंगाजी है-ऐसा कहकर जो दूसरे मनुष्योंको उनका दर्शन कराता है, उसके लिये भगवती भागीरथी सुनिश्चित प्रतिष्ठा (अक्षय पद प्रदान करनेवाली) हैं। वे कार्तिकेय और सुवर्णको अपने गर्भमें धारण करनेवाली, पवित्र जलकी धारा बहानेवाली और पाप दूर करनेवाली हैं। वे आकाशसे पृथ्वीपर उतरी हुई हैं। उनका जल सम्पूर्ण विश्वके लिये पीने योग्य है। उनमें प्रातःकाल स्नान करनेसे धर्म, अर्थ और काम तीनों वर्गोंकी सिद्धि होती है।।88।। भगवती गंगा पूर्वकालमें अविनाशी भगवान् नारायणसे प्रकट हुई हैं। वे भगवान् विष्णुके चरण, शिशुमार चक्र, ध्रुव, सोम, सूर्य तथा मेरूरूप विष्णुसे अवतरित हो भगवान् शिवके मस्तकपर आयी हैं और वहांसे हिमालय पर्वतपर गिरी हैं। ग्ंगाजी गिरिराज हिमालयकी पुत्री, भगवान् शंकरकी पत्नी तथा स्वर्ग और पृथ्वीकी शोभा हैं। राजन्! वे भूमण्डलपर निवास करनेवाले प्राणियोंका कल्याण करनेवाली, परम सौभाग्यवती तथा तीनों लोकोंको पुण्य प्रदान करनेवाली हैं। श्रीभागीरथी मधुका स्त्रोत एवं पवित्र जलकी धारा बहाती है। जलती हुई घीकी ज्वालाके समान उनका उज्ज्वल प्रकाश है। वे अपनी उताल तरंगों तथा जलमें स्नान-संध्या करनेवाले ब्राह्माणोंसे सुशोभित होती है। वे जब स्वर्गसे नीचेकी ओर चलीं तब भगवान् शिवनें उन्हें अपने सिर पर धारण किया। फिर हिमालय पर्वतपर आकर वहां से इस पृथ्वीपर उतरी है। श्रीगंगाजी स्वर्गलोककी जननी हैं। सबका कारण, सबसे श्रेष्ठ, रजोगुणरहित, अत्यन्त सूक्ष्म, मरे हुए प्राणियोंके लिये सुखद शया, तीव्र वेग से बहेनवाली, पवित्र जलका स्त्रोत बहानेवाली, यश देनेवाली, जगत् की रक्षा करनेवाली, सत्स्वरूपा तथा अभीष्टको सिद्ध करनेवाली भगवती गंगा अपने भीतर स्नान करनेवालोंके लिये स्वर्गका मार्ग बन जाती है। क्षमा, रक्षा तथा धारण करनेमें पृथ्वीके समान और तेजमें अग्नि एवं सूर्यके समान शोभा पानेवाली गंगाजी ब्राह्मण जातिपर सदा अनुग्रह करनेके कारण सुब्रह्मण्य कार्तिकेय तथा ब्राह्माणोंके लिये भी प्रिय एवं सम्मानित हैं। ऋषियोंद्वारा जिनकी स्तुति होती हैं, जो भगवान् विष्णुके चरणोंसे उत्पन्न, अत्यन्त प्राचीन तथा परम पावन जलसे भरी हुई हैं, उन गंगाजीकी जगत् में जो लोग मनके द्वारा भी सब प्रकारसे शरण लेते हैं वे देहत्यागके पश्चात् ब्रह्मलोकमें जाते हैं। जैसे माता अपने पुत्रों को स्नेहभरी दृष्टिसे देखती है और उनकी रक्षा करती है, उसी प्रकार गंगाजी सर्वात्मभावसे अपने आश्रयमें आये हुए सर्वगुणसम्पन्न लोकोंको कृपादृष्टिसे देखकर उनकी रक्षा करती है; अतः जो ब्रह्मलोकको प्राप्त करनेकी इच्छा रखते हैं उन्हें अपने मनको वशमें करके सदा मातृभावसे गंगाजीकी उपासना करनी चाहिये। जो अमृतमय दूध देनेवाली, गौके समान सबको पुष्ट करनेवाली, सब कुछ देखनेवाली, सम्पूर्ण जगत् के उपयोग में आनेवाली, अन्न देनेवाली तथा पर्वतोंको धारण करनेवाली हैं, श्रेष्ठ पुरूष जिनका आश्रय लेते हैं और जिन्हें ब्रह्माजी भी प्राप्त करना चाहते हैं; तथा जो अमृतस्वरूप हैं, उन भगवती गंगाजीका सिद्धिकामी जितात्मा पुरूषोंको अवष्य आश्रय लेना चाहिये। राजा भगीरथ अपनी उग्र तपस्यासे भगवान् शंकरसहित सम्पूर्ण देवताओंको प्रसन्न करके गंगाजीको इस पृथ्वीपर ले आये। उनकी शरणमें जानेसे मनुष्यको इहलोक और परलोकमें भय नहीं रहता।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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