द्वितीय अध्याय: आदिपर्व (पर्वसंग्रह पर्व)
महाभारत: आदिपर्व: द्वितीय अध्याय: श्लोक 249-282 का हिन्दी अनुवाद
साथ ही सब शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ गाण्डीवधन्वा अर्जुन को युद्ध भूमि में भगवान श्रीकृष्ण ने व्यगंय वाक्य के चाबुक से मार्मिक चोट पहँचायी। तब महाधर्नुधर अर्जुन ने शिखण्डी को सामने करके तीखे बाणों से घायल करते हुए भीष्म पितामह को रथ से गिरा दिया। जब कि भीष्म पितामह शरशय्यापर शयन करने लगे। महाभारत में यह छठा पर्व विस्तार पूर्वक कहा गया है। वेद के मर्मज्ञ विद्वान श्रीकृष्ण द्वैपायन व्यास ने इस भीष्म पर्व में एक सौ सत्रह अध्याय रखे है। श्लोकों की संख्या पाँच हजार आठ सौ चौरासी (5884) कही गयी है। तदनन्तर अनेक वृत्तान्तों से पूर्ण अदभुत द्रौणपर्व की कथा आरम्भ होती है, जिसमें परम प्रतापी आचार्य द्रोण के सेनापति पद पर अभिषिक्त होने का वर्णन है। वहीं यह भी कहा गया है कि अस़्त्र-विद्या के परमाचार्य द्रौण ने दुर्योधन को प्रसन्न करने क लिये बुद्धिमान धर्मराज युधिष्ठिर को पकड़ने की प्रतिज्ञा कर ली। इसी पर्व में यह बताया गया है कि संशप्तक योद्धा अर्जुन को रणांग से दूर हटा ले गये। वहीं यह कथा भी आयी है कि ऐरावतवंशीय सुप्रतीक नामक हाथी के साथ महाराज भगदत्त भी, जो युद्ध में इन्द्र के समान थे, किरीटधारी अर्जुन के द्वारा मौत के घाट उतार दिये गये। इसी पर्व में यह भी कहा गया है कि शूरवीर बालक अभिमन्यु को, जो कभी जवान भी नहीं हुआ था और अकेला था, जयद्रथ आदि बहुत से विख्यात महारथियों ने मार डाला। अभिमन्यु के वध से कुपित होकर अर्जुन ने रणभूमि में सात अक्षौहिणी सेनाओं का संहार करके राजा जयद्रथ को भी मार डाला। उसी अवसर पर महाबाहु भीमसेन और महारथी सात्यकि धर्मराज युधिष्ठिर की आज्ञा से अर्जुन को ढूँढ़ने के लिये कौरवों की उस सेना में घुस गये, जिसकी मोर्चेबन्दी बड़े-बड़े देवता भी नहीं तोड़ सकते थे। अर्जुन ने, संशप्तकों में से जो बच रहे थे, उन्हें भी यु़द्ध भूमि में निःशेष कर दिया। महामना संशप्तक वीरो की संख्या नौ करोड़ थी, परन्तु किरीटधारी अर्जुन ने आक्रमण करके अकेले ही उन सबको यमलोक भेज दिया। धृतराष्ट्र पुत्र, बड़े-बड़े पाषाण खण्ड लेकर युद्ध करने वाले म्लेच्छ-सैनिक, समरांगण में युद्ध के विचित्र कला कौशल का परिचय देने वाले नारायण नामक गोप, अलम्बुप, श्रुतायु, पराक्रमी जलासन्ध, भूरिश्रवा, विराट, महारथी, द्रुपद तथा घटोत्कच आदि जो बड़े-बड़े वीर मारे गये हैं, वह प्रसंग भी इसी पर्व में है। इसी पर्व में यह बात भी आयी है कि युद्ध में जब पिता द्रोणाचार्य मार गिराये गये, तब अश्वत्थामा ने भी शत्रुओं के प्रति अमर्ष में भरकर ‘नारायण’ नामक भयानक अस्त्र को प्रकट किया था। इसी में आग्नेयास्त्र तथा भगवान रूद्र के उत्तम माहात्म्य का वर्णन किया गया है। व्यास जी के आगमन तथा श्रीकृष्ण और अर्जुन के माहात्म्य की कथा भी इसी में है। महाभारत में यह सातवाँ महान पर्व बताया गया है। कौरव-पाण्डव युद्ध में जो नरश्रेष्ठ नरेश शूरवीर बताये गये हैं, उनमें से अधिकांश में मारे जाने का प्रसंग इस द्रोण पर्व में ही आया है। तत्वदर्शी पराशरनन्दन मुनिवर व्यास ने भली- भाँति सोच विचार कर द्रोण पर्व में एक सौ सत्तर अध्यायों और आठ हजार नौ सौ नौ (8909) श्लोकों की रचना एवं गणना की है। इसके बाद अत्यन्त अद्भत कर्णपर्व का परिचय दिया गया है। इसी में परम बुद्धिमान मद्रराज शल्य को कर्ण के सारथि बनाने का प्रसंग है, फिर त्रिपुर के संहार की पुराण प्रसिद्ध कथा आयी है। युद्ध के लिये जाते समय कर्ण और शल्य में जो कठोर संवाद हुआ है, उसका वर्णन भी इसी पर्व में है। तदनन्तर हंस और कौए का आक्षेपपूर्ण उपाख्यान है। उसके बाद महात्मा अश्वत्थामा के द्वारा राजा पाण्डय के वध की कथा है। फिर दण्डसेन और दण्ड के वध का प्रसंग है। इसी पर्व में कर्ण के साथ युधिष्ठिर द्वैरथ (द्वन्द्व) युद्ध का वर्णन है, जिसमें कर्ण ने सब धर्नुधर वीरों के देखते-देखते धर्मराज युधिष्ठिर के प्राणों को संकट में डाल दिया था। तत्पश्चात युधिष्ठिर और अर्जुन के एक दूसरे के प्रति क्रोधयुक्त उद्रार हैं, जहाँ भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझा-बुझाकर शान्त किया है। इसी पर्व में यह बात भी आयी है कि भीमसेन ने पहले की हुई प्रतिज्ञा के अनुसार दु:शासन का वक्षस्थल विदीर्ण करके रक्त पीया था। तदनन्तर द्वन्द्व युद्ध में अर्जुन ने महारथी कर्ण को जो मार गिराया, वह प्रसंग भी कर्णपर्व में ही है। महाभारत का विचार करने वाले विद्वानों ने इस कर्णपर्व को आठवाँ पर्व कहा है। कर्णपर्व में उनहत्तर अध्याय कहे गये हैं और चार हजार नौ सौ चौसठ (4964) श्लोकों का पाठ इस पर्व में किया गया है। तत्पश्चात विचित्र. अर्थयुक्त विषयों से भरा हुआ शल्य पर्व कहा गया है। इसी में यह कथा आयी है कि जब कौरव सेना के सभी प्रमुख वीर मार दिये गये, तब मद्रराज शल्य सेनापति हुए। वहीं कुमार कार्तिकेय का उपाख्यान और अभिषेक कर्ण कहा गया है। साथ ही वहाँ रथियों के युद्ध का भी विभाग पूर्वक वर्णन किया गया है। शल्यपर्व में ही कुरुकुल के प्रमुख वीरों के विनाश का तथा महात्मा धर्मराज द्वारा शल्य के वध का वर्णन किया गया है। इसी में सहदेव के द्वारा युद्ध में शकुनि के मारे जाने का प्रसंग है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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