कंक्रीट के पुल
कंक्रीट के पुल
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |
पृष्ठ संख्या | 345-347 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
लेखक | सी.एस. चीटो ऐंड एच.सी. ऐडम्स, एफ़.डब्ल्यू. टेलर, एस.ई. टामसन ऐंड ई. स्मल्सकी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1975 ईसवी |
स्रोत | जर्नल ऑव दि इंडियन रोड्स कांग्रेस, वॉल्यूम 12, 1९4७-4८; 'ब्रिजिंग इंडियाज़ रीवर्स', ऐन ऐकाउंट ऑव फ़िफ़्टी ब्रिजेज़ बिल्ट इन इंडिया ड्यूरिंग 1९4९-1९5९, इंडियन रोड्स, नई दिल्ली; सी.एस. चीटो ऐंड एच.सी. ऐडम्स : रिइन्फ़ोर्स्ड कंक्रीट ब्रिज डिज़ाइन, चैपमैन ऐंड हाल लि., लंदन; ए.डब्ल्यू. लेगाट, जी. डन ऐंड डब्ल्यू.ए. फ़ेयरहर्स्ट : डिज़ाइन ऐंड कंस्ट्रक्शन ऑव कंक्रीट ब्रिजेज़, काँस्टेबल ऐंड कंपनी लि., लंदन; एफ़. रिंग्स। रिइन्फ़ोर्स्ड कंक्रीट ब्रिजेज़, काँस्टेबल ऐंड कंपनी लि., लंदन; एफ़.डब्ल्यू. टेलर, एस.ई. टामसन ऐंड ई. स्मल्सकी : रिइन्फ़ोर्स्ड कंक्रीट ब्रिजेज़, जॉन विले ऐंड सन्स इंक., न्यूयॉर्क। |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | जगदीश मित्र त्रेहन |
कंक्रीट के पुल पुल बनाने के लिए कंक्रीट बहुत उपयुक्त वस्तु है, क्योंकि जब यह सुघट्यावस्था में रहती है, तब यह कहीं भी भरी जासकती है और किसी भी आकृति में ढाली जा सकती है। इसलिए पुलों के बनाने में इसका बहुत उपयोग किया जाता है।
प्राय: प्राचीनतम काल से पुल बनाने के लिए सादी कंक्रीट का उपयोग किया जाता रहा है। अनिवार्य रूप से ऐसा पुल कंक्रीट की मेहराब की आकृति का होता था। भारत में 1९वीं शताब्दी में पहाड़ी सड़कों पर कई पुल चूने की कंक्रीट से बनाए गए थे। कभी-कभी सादी कंक्रीट की मेहराबें पहले से ढाली गई कंक्रीट की ईटोंं से बनाई जाती हैं। छोटी पुलियों के लिए स्थल पर ही ढाली कंक्रीट की मेहराबें पूर्णतया उपुयक्त होती हैं। स्थल पर ढाली गई कंक्रीट के पुल का एक उत्तम उदाहरण ग्रेट ब्रिटेन में 1९2८ ई. में बना पुल है। इसमें दो पार्श्ववाले दर (स्पैन) 5०-5० फुट के हैं और बीचवाला दर 11० फुट का। संसार में सादी कंक्रीट का सबसे लंबा दर संयुक्त राज्य अमरीका, में क्लीवलैंड में रॉकी नदी पर बने पुल का मध्य दर है। इसकी लंबाई 12८ फुट है। अब अधिकतर इस्पात की छड़ों से प्रबलित (रिइन्फ़ोर्स्ड, reinforced) कंक्रीट का ही उपयोग होता है और पत्थर तथा सादी कंक्रीट की मेहराबों की अपेक्षा ये बहुत बड़े-बड़े दरों के बन सकती हैं। कुछ महत्तम लंबाईवाले, प्रबलित कंक्रीट की मेहराबवाले पुल निम्नलिखित हैं :
- सैंडों पुल-स्वीडने ८६६ फुट दर (पाट)
- एस्ला पुल-स्पेन ६45 फुट दर (पाट)
- प्लाउ गेस्टल पुल-फ्रांस ६12 फुट दर (पाट)
- ट्रानेबर्ग पुल-स्वीडेन 5९4 फुट दर (पाट)
4० फुट दर के पुलों के लिए सादी कंक्रीट की मेहराबवाले पुलों की मानक अभिकल्पनाएँ (डिज़ाइन) इंडियन रोड्स कांग्रेस ने बनाई है। 4 से लेकर 3० फुट तक की दरों के लिए चूने की कंक्रीट और 44० फुट तक की दर के लिए सीमेंट कंक्रीट उपयुक्त बताई गई है।
कंक्रीट के पुलों में कंक्रीट के कारण कई एक गुण होते हैं। उदाहरणत: चटपट निर्माण और तदनंतर मरम्मत तथा देखभाल की कम आवश्यकता। इन पुलों में न आग लगने का डर रहता है और न पानी से मोरचा खाने का। इस्पात के पुलों को समय-समय पर रँगते रहना नितांत आवश्यक है, परंतु कंक्रीट के पुलों को रँगना नहीं पड़ता। इस्पात के पुलों का, वायु और जल के प्रभाव से मोरचा खाकर, क्षय होता रहता है, परंतु प्रबलित कंक्रीट के पुल समय पाकर अधिकाधिक पुष्ट होते जाते हैं। यदि अच्छी अभिकल्पना की जाए तो ये सुंदर लगते हैं और इनपर वास्तुकला के नियमों के अनुसार अलंकरण किया जा सकता है। इनपर घड़घड़ाहट नहीं होती, इस्पात के पुलों के बनाने में सब काम बड़ी कुशलता से करना पड़ता है और कारीगरों के काम की देखभाल बराबर करनी पड़ती है। दूसरा दोष यह है कि दुल के लिए ढोला (सेंटरिंग, centering) बाँधने में बहुत खर्च हो जाता है।
1९वीं शताब्दी के अंत में प्रबलित सीमेंट कंक्रीट का प्रयोग होने लगा और तब से इसमें तीव्र गति से प्रगति हुई है। प्रबलित कंक्रीट से पुल बनाने की रीतियों का विकास हुआ है जिनमें से किसी एक का चुनाव स्थल की परिस्थितियों पर निर्भर है। मोटे हिसाब से सीमेंट के पुल 13 प्रमुख प्रकार के होते हैं। इनमें से अधिकांश कई विधियों से बन सकते हैं, जो पुल की अनुप्रस्थ (ट्रांसवर्स) आकृति पर निर्भर करती हैं।
किसी विशेष स्थल के लिए, संभव है, पूर्वोंक्त 13 प्रकारों में से कई एक उपयुक्त पाए जाएँ। परंतु अंत में महत्तम कार्यक्षमता, मितव्ययता और पुष्टतावाले पुल का चुनाव अत्यंत जटिल समस्या है। उचित चुनाव के लिए, मोटे हिसाब से गणना करके अनुमानों की तुलना करनी पड़ती है। पूर्वकथित 13 प्रकार और वे पाट (दर) जिनके लिए वे उपयुक्त हैं, निम्नोक्त हैं :
- एक पाट (दर) का, धरन और पट्टवाला (बीम ऐंड स्लैब टाइप, (beam and slab type) अथवा केवल पट्टवाला 2०-4० फुट
- कई दरों का, धरन और पट्टवाला अथवा केवल पट्टवाला 2०-4० फुट
- एक दर का कैंचीदार चौखटे पट्टवाला (पोर्टल फ्रेम स्लैब टाइप, portal frame slab type) अथवा धरन और पट्टवाला (स्लैब ऐंड बीम टाइप) 15-3० फुट
- कई दरों का, कैंचीदार चौखटे पट्ट और पसलीवाला (पोर्टल फ्रेम स्लैब ऐंड रिब टाइप, portal frame slab and rib type) अथवा पट्टवाला 2०-4० फुट
- आवश्यकतानुसार परिवर्तिनीय जड़ता घूर्ण का गर्डर (गर्डर विद वेरिइंग मोमेंट ऑव इनर्शिया, girder with varying moment of inertia) 5०-12० फुट
- दोहरे बाहुधरन (कैंटिलीवर, cantilever) और एक अनबद्ध (फ्ऱी, free) मध्य दरवाला (डबल कैंटिलीवर टाइप विद फ्ऱी सेंटर स्पैन, ड्डouble cantilever type with free center span) ६०-1०० फुट
- दोहरे बाहुधरनवाला (डबल कैंटिलीवर टाइप, double cantilever type) 1००-12० फुट
- आबद्ध लंबी मेहराबवाला (फिक्स्ड बैरल आर्च टाइप, fixed barrel arch type) एक या अधिक दरों का (सिंगल ऑर मल्टिपल स्पैन, single or multiple span) 3०-1०० फुट
- खुले कंधोंवाली पसलीदार मेहराब (ओपन स्पैंड्रल रिब्ड आर्च, open spandrel ribbed arch) वाला 1००-2०० फुट
- तीन-कब्जी लंबी मेहराबवाला, एक या अधिक दरों का (्थ्राी हिंज्ड बैरल आर्च टाइप, सिंगल ऑर मल्टीपल स्पैन, three hinged barrel arch type, single or multiple span) 5०-1०० फुट
- दो-कब्जी लंबी मेहराबवाला, एक या अधिक का (टू हिंज्ड बैरल टाइप, सिंगल ऑर मल्टिपल स्पैन, two hinged harrel arch type, single or multiple span) 5०-1०० फुट
- प्रत्यंचा (बोस्ट्रिंग, bowstring) रूपी गर्डर वाला 1००-15० फुट
- पसलीदार मेहराब और आंशिक लटके फर्शवाला (आर्च रिब्ड टाइप विद पार्शियली हंग डेकिंग, arch ribbed type with partially hung decking) 1८०-25० फुट
जैसा ऊपर बताया गया है, किसी विशेष स्थान पर कई प्रकार की रचनाएँ स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार उपयुक्त होंगी। अंतिम निर्णय दो कारणसमूहों पर निर्भर है। पहले समूह के कारणों को प्राकृतिक कहा जा सकता है। ये स्थान की परिस्थितियों पर पूर्णत: निर्भर हैं, जैसे नींव, खदान या अन्य हलचल, पुल के ऊपर अपेक्षित खाली जगह (अर्थात् उसपर या उसके नीचे कितनी ऊँची गाड़ियाँ जाएँगी) और पुल की लंबाई। कारणों का दूसरा समूह वह है जिसमें कृत्रिम कारण हों, यथा, पुल पर महत्तम भार कितना पड़ेगा। उसकी चौड़ाई कितनी हो, उसकी रूपरेखा कैसी हो और उसकी आकृति कैसी हो, और इन सबसे अधिक महत्वपूर्ण है उसकी लागत। साधारणत: अनबद्ध, आश्रित संरचना सबसे महँगी पड़ती है, यद्यपि इसी की अभिकल्पना सरलतम है। जहाँ अचल नींव मिल सकती है, वहाँ अनम्य ढाँचेवाला पुल सबसे सस्ता पड़ता है। पूर्वप्रतिबलित (प्रीस्ट्रेस्ड, prestressed) कंक्रीट सुलभ हो जाने के कारण इंजीनियरों को एक नई शक्ति प्राप्त हुई है, जिससे कंक्रीट के पुलों की अभिकल्पना में विस्तृत अनुपातों के पुल का निर्माण संभव हो गया है। साधारण प्रबलित कंक्रीट के पुलों की अपेक्षा पूर्वप्रतिबलित कंक्रीट के पुल 1०-15 प्रतिशत तक सस्ते पड़ते हैं। इनसे सामग्री की बचत होती है, क्योंकि बड़े पाट (दर) बनाए जा सकते हैं और उनको अपेक्षाकृत हलका रखा जा सकता है।
संतोषजनक संरचना के लिए तीन आवश्यकताएँ हैं जिनकी पूर्ति होनी चाहिए। प्रथम यह कि योग्य इंजीनियर पहले पूर्ण और ब्योरेवार संरचनात्मक आलेखन तैयार करे। फिर, यह कि कंक्रीट बनाने के लिए सामग्री को सावधानी से चुना जाए और उसकी पूरी जाँच की जाए कि वह आवश्यक गुणों के अनुसार ही है, और अंत में यह कि कारीगरों के काम की उचित देखरेख हो। उचित देखरेख और अनुपातों के नियतंत्रण का महत्व इसी से प्रत्यक्ष है कि किसी भी विशेष अनुपात की कंक्रीट की पुष्टता और टिकाऊपन सामग्री को भली प्रकार मिलाने, उचित ढंग से ढालने तथा ठीक तरह से कूटने (संघनन, कंपैक्शन) और फिर उसे उचित रीति से नियमानुसार गीला रखने पर ही निर्भर है। यह आवश्यक है कि ढोला ठीक प्रकार से और पूर्णतया दृढ़ बनाया जाए तथा इस्पात की छड़ों को ठीक से मोड़ा जाए एवं कंक्रीट ढालने से पूर्व उचित स्थान में रखकर बाँध दिया जाए। इस्पात पृष्ठ के बहुत निकट न रखा जाए, अन्यथा उसमें मोरचा लगना आंरभ हो जाएगा। और तब संरचना कुछ दिनों में उखड़ने लगेगी। संरचना में कहाँ-कहाँ संधियाँ डाली जाएँ, इसका निर्णय इंजीनियर ही करे। इसे ठेकेदार पर नहीं छोड़ना चाहिए।
आजकल निर्माण अधिकतर मशीनों से होता है। इसके लिए यह आवश्यक है कि यंत्र पुल के स्थान पर लाए जाएँ। किन यंत्रों की आवश्यकता पड़ेगी, यह पुल के प्रकार पर निर्भर है। मुख्य यंत्र कंक्रीट मिश्रक (मिक्सर्स, mixers), बोझ उठानेवाले क्रेन (डेरिक क्रेन, Derrick crane) कंपनोत्पादक (बाइब्रेटर, vibrator), सामग्री नापने के साँचे, पंप, संपीडक (कंप्रेसर, compressor), छड़ मोड़ने की मशीनें इत्यादि हैं।
पुल आकल्पन में सौंदर्यदृष्टि को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता मिलने के कारण, आकल्पन का ध्यान अब रेखा, आकृति, अनुपात तथा सामग्री की गठन पर रखना आवश्यक हो गया है। पुल का प्रकार और वास्तुकला के दृष्टिकोण से उसका औचित्य केवल इंजीनियर का ही काम नहीं है। इन दिनों डिज़ाइन को अंतिम रूप देते समय इंजीनियर के साथ कोई वास्तुकलाविद् भी रख दिया जाता है।
पुल की रेखाएँ, अनुपात और संतुलन सुंदर हों तथा सामग्री का रंग और गठन (टेक्स्चर) सुरुचिपूर्ण होना चाहिए। पुल का अलंकरण और रूप इसके पदार्थों के अनुरूप और पास पड़ोस के अनुकूल होना चाहिए। इन बातों में कई विधियों से विभिन्नता लाई जा सकती है, उदाहरणत: पृष्ठ को न्यूनाधिक चिकना या खुरदरा रखकर, आकृतियों को स्थूलकाय अथवा कृषांगी रखकर, रंगों को बदलकर, पलस्तर करके अथवा तैल रंगों से उन्हें ऊपर से रँगकर।
भारत में अब अधिकतर पुल प्रबलित कंक्रीट या पूर्वप्रतिबलित कंक्रीट के ही बनाए जाते हैं। कुछ मुख्य नए बने पुल ये हैं :
- मद्रास में कोलरून पुल : लंबाई 2,1०० फुट, 14 दरें, प्रत्येक 15० फुट की। असंतुलित बाहुधरन, पूर्वप्रतिबलित, पूर्वरचित धरन। लागत 34.5० लाख रुपए।
- उत्तर प्रदेश में रामगंगा पुल : लंबाई 2,21० फुट, पूर्वप्रतिबलित कंक्रीट, 14 दरें, प्रत्येक 15० फुट की। लागत ६० लाख रुपए।
- उत्तर प्रदेश में गढ़मुक्तेश्वर में गंगा पर पुल : 2,3०८ फुट लंबा, 13 दरें, प्रत्येक 1७७ फुट 1० इंच, पूर्वप्रतिबलित कंक्रीट। लागत ७९ लाख रुपए।
- बिहार में उत्तरी कोयल पुल : प्रबलित कंक्रीट, 2७ दरें, बीच की दर 5६ फुट 5 इंच की और दो अंतिम दरें प्रत्येक 4६ फुट 1ह इंच की, लंबाई 1,६15 फुट। लागत 1८.5 लाख रुपए।
- केरल में कुप्पम पुल : 525 फुट लंबाई, धनुषाकार धरन के ढंग की 5 दरें, प्रत्येक 1०० फुट। लागत 1०.६० लाख रुपए।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
“खण्ड 2”, हिन्दी विश्वकोश, 1975 (हिन्दी), भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी, 342-344।