महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 62 श्लोक 70-85

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित १२:२३, ३ जुलाई २०१५ का अवतरण ('==बासठवाँ अध्‍याय: अनुशासनपर्व (दानधर्मपर्व)== <div style="text-...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

बासठवाँ अध्‍याय: अनुशासनपर्व (दानधर्मपर्व)

महाभारत: अनुशासनपर्व: बासठवाँ अध्याय: श्लोक 55-82 का हिन्दी अनुवाद

बृहस्पति ने कहा- वृत्रासुर का वध करने वाले इन्द्र। सुवर्णदान, गौदान, भूमिदान, विद्यादान और कन्यादान- ये अत्यन्त पापहारी माने गये हैं। जो परम बुद्विमान पुरूष इन सब वस्तुओं का दान करता है वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है प्रभो। देवेन्द्र। जैसा कि मनीषी पुरूष कहते हैं मैं भूमिदान से बढकर दूसरे किसी दान को नहीं मानता हूं। जो ब्राह्माणों के लिये, गौओं के लिये, राष्ट्र के विनाश के अवसर पर स्वामी के लिये तथा जहां कुलांगनाओं का अपमान होता हो, वहां उन सबकी रक्षा के लिये युद्व में प्राण त्याग करते हैं वे ही भूमिदान करने वालों के समान पुण्य के भागी होते हैं।विबुधश्रेष्ठ। मन में युद्व के लिये उत्साह रखने वाले जो शूरवीर रणभूमि में मारे जाकर स्वर्गलोक में जाते हैं वे सब-के-सब भूमिदाता का उल्लंघन नहीं कर सकते।स्वामी की भलाई के लिये उद्यत हो रणभूमि में मारे जाकर अपने शरीर का परित्याग करने वाले पुरूष पापों से मुक्त हो ब्रह्मलोक में पहुंच जाते हैं; परन्तु वे भी भूमि दाता से आगे नहीं बढ़ पाते हैं। इस जगत में भूमि दान करने वाला मनुष्य अपनी पांच पीढ़़ी तक के पूर्वजों का और अन्य छः पीढियों तक पृथ्वी पर आने वाली संतानों का- इस प्रकार कुल ग्यारह पीढि़यों का उद्वार कर देता है । पुरंदर। जो रत्न युक्त पृथ्वी का दान करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर स्वर्गलोक में सम्मानित होता है। राजन। धन-धान्य से सम्पन्न तथा समस्त मन वांछित गुणों से युक्त पृथ्वी का दान करने वाला पुरूष दूसरे जन्म में राजाधिराज होता है; क्योंकि वह सर्वोत्तम दान है। इन्द्र। जो सम्पूर्ण भोगों से युक्त पृथ्वी का दान करता है, उसे सब प्राणी यही समझते हैं कि यह मेरा दान कर रहा है । सहस्त्राक्ष। जो सम्पूर्ण कामनाओं को देने वाली और समस्त मनावांछित गुणों से सम्पन्न कामधेनू- स्वरूपा पृथ्वी का दान करता है, वह मानव स्वर्गलोक में जाता है। देवन्द्र। यहां पृथ्वी दान करने वाले पुरूष को परलोक में मधु, घी, दूध और दही की धारा बहाने वाली नदियां तृप्त करती हैं । राजा भूमिदान करने से समस्त पापों से छुटकारा पा जाता है। भूमिदान से बढकर दूसरा कोई दान नहीं है । जो समुद्र पर्यन्त पृथ्वी को शस्त्रों से जीतकर दान देता है, उसकी कीर्ति संसार के लोग तब तक गाया करते हैं जब तक यह पृथ्वी कायम रहती है । पुरंदर। जो परम पवित्र और समृद्विरूपी रस से भरी हुट पृथ्वी का दान करता है, उसे उस भूदान सम्बन्धी गुणों से युक्त अक्षय लोक प्राप्त होते हैं। इन्द्र। जो राजा सदा एश्‍वर्य चाहता हो और सुख पाने की इच्छा रखता हो, वह विधि पूर्वक सुपात्र को भूमिदान दे । पाप करके भी यदि मनुष्य ब्राह्माण को भूमि दान कर देता है तो वह उस पाप को उसी प्रकार त्याग देता है, जैसे सर्प पुरानी कैचुल को। इन्द्र। मनुष्य पृथ्वी का दान करने के साथ ही समुद्र, नदी, पर्वत और सम्पूर्ण वन- इन सबका दान कर देता है (अर्थात इन सबके दान का फल प्राप्त कर लेता है)। इतना ही नहीं, पृथ्वी का दान करने वाला पुरूष तालाब, कुआं, झरना, सरोबर, स्नेह (घृत आदि) और सब प्रकार के रसों के दान का भी फल प्राप्त कर लेता है। पृथ्वी का दान करते समय मनुष्य शक्तिशाली औषधियों, फल और फूलों से भरे हुए वृक्षों, वन, प्रस्तर और पर्वतों का भी दान कर देता है। बहुत-सी दक्षिणाओं से युक्त अग्निष्टोम आदि यज्ञों द्वारा यजन करके भी मनुष्य उस फल को नहीं पाता, जो उसे भूमिदान से मिल जाता है। भूमि का दान करने वाला मनुष्य अपनी दस पीढि़यों का उद्वार करता है तथा देकर छीन लोने वाला अपनी दस पीढि़यों को नरक में ढकेलता है। जो पहले की दी हुई भूमि का अपहरण करता है वह स्वयं भी नरक में जाता है। जो देने की प्रतिज्ञा करके नहीं देता है तथा जो देकर भी फिर ले लेता है वह मृत्यु की आज्ञा से वरूण के पाष में बंधकर तरह-तरह के कष्ट भोगता है।जो प्रतिदिन अग्निहोत्र करता है, सदा यज्ञ के अनुष्ठान में लगा रहता और अतिथियों को प्रिय मानता है तथा जिसकी जीविका-वृति नष्ट हो गयी है, ऐसे श्रेष्ठ द्विज की सेवा करते हैं वे यमराज के पास नहीं जाते। पुरंदर। राजा को चाहिये कि वह ब्राह्माणों के प्रति उऋण रहे अर्थात उनकी सेवा करके उन्हें संतुष्ट रखे तथा अन्य वर्णों में भी जो लोग दीन-दुर्बल हैं; उनका संकट से उद्वार करें। सुरश्रेष्ठ। देवेश्‍वर। जिसकी जीविका वृति नष्ट हो गयी है, ऐसे ब्राह्माण को दूसरों के द्वारा दान में मिली हुई जो भूमि है, उसको कभी नहीं छीनना चाहिये। अपना खेत छिन जाने से दुःखी हुए दीन ब्राह्माण जो आंसू बहाते हैं वह छीनने वाले की तीन पीढि़यों का नाश कर देता है इन्द्र जो मनुष्य राज्य से भ्रष्ट हुए राजा को फिर राजसिंहासन पर बैठा देता है, उसका स्वर्गलोक में निवास होता है तथा वह वहां बड़ा सम्मान पाता है। जो भूमि गन्ने के वृक्षों से आच्छादित हो, जिस पर जौ और गेहूं की खेती लहलहा रही हो अथवा जहां बैल और घोड़े आदि वाहन भरे हों, जिसके नीचे खजाना गड़ा तथा जो सब प्रकार के रत्न में उपकरणों से अलंकृत हो, ऐसी भूमि को अपने बाहुबल से जीतकर जो राजा दान कर देता है, उसे अक्षलोक प्राप्त होते हैं। उसका वह दान भूमि यज्ञ कहलाता है।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख