चौंसठवाँ अध्याय: अनुशासनपर्व (दानधर्मपर्व)
महाभारत: अनुशासनपर्व: चौंसठवाँ अध्याय: श्लोक 1-36 का हिन्दी अनुवाद
विभिन्न नक्षत्रों के योग में भिन्न-भिन्न वस्तुओं के दान का माहात्म्य
युधिष्ठिर ने पूछा- पितामह। मैंने आपका उपदेश सुना। अन्नदान का जो विधान है, वह ज्ञात हुआ। अब मुझे यह बताइये कि किस नक्षत्र का योग प्राप्त होने पर किस-किस वस्तु का दान करना उत्तम है ।भीष्मजी ने कहा- युधिष्ठिर । इस विषय में जानकार मनुष्य देवकी देवी और महर्षि नारद के संवाद रूप प्राचीन इतिहास का उदाहरण दिया करते हैं । एक समय की बात है, धर्मदर्शी देवर्षि नारदजी द्वारका में आये थे। उस समय वहां देवकी देवी ने उनके सामने यही प्रश्न उपस्थित किया। प्रजानाथ। देवकी के इस प्रकार पूछने पर देवर्षि नारद ने उस समय विधि पूर्वक सब बातें बतायीं। वे ही बातें मैं तुमसे कहता हूं सुनो। नारदजी ने कहा- महाभागे। कृत्तिका नक्षत्र आने पर मनुष्य घृतयुक्त खीरे के द्वारा श्रेष्ठ ब्राह्माणों को तृप्त करे। इससे वह सर्वोत्तम लोकों को प्राप्त होता है।रोहिणी नक्षत्र में पके हुए फल के गूदे, अन्न, घी, दूध तथा पीने योग्य पदार्थ ब्राह्माण को दान करने चाहिये। इससे उनके ऋण से छुटकारा मिलता है । मृगशिरा नक्षत्र में दूध देने वाली गौ का बछड़े सहित दान करके दाता मृत्यु के पश्चात इस लोक से सर्वोत्म स्वर्ग लोक में जाते हैं। आद्रा नक्षत्र में उपवास पूर्वक तिल मिश्रित खिचड़ी दान करने वाला मनुष्य बड़े-बड़े दुर्गम संकटों से तथा क्षुरकी-सी धार वाले पर्वतों से भी पार हो जाता है। शोभने। पुनर्वसु नक्षत्र में पूआ और अन्न-दान करके मनुष्य उत्तम कुल में जन्म लेता है तथा वहां यशस्वी, रूपवान एवं प्रचुर अन्न से सम्पन्न होता है।पुष्य नक्षत्र में सोने का आभूषण अथवा केवल सोना ही दान करने से दाता प्रकाश शून्य लोकों में भी चन्द्रमा के समान प्रकाशित होता है । जो आश्लेषा नक्षत्र में चांदी अथवा बैल दान करता है वह इस जन्म में सब प्रकार के भय से मुक्त हो दूसरे जन्म उत्तम कुल में जन्म लेता है। जो मनुष्य मघा नक्षत्र में तिल से भरे हुए वर्धमान पात्रों का दान करता है वह इहलोक में पुत्रों और पशुओं से सम्पन्न हो परलोक में भी आनन्द का भागी होता है। पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में उपवास करके जो मनुष्य ब्राह्माणों को मक्खन मिश्रित भक्ष पदार्थ देतो है, वह सौभाग्यशाली होता है। उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में विधि पूर्वक घृत और दुग्ध से युक्त साठी के चावल के भात का दान करने से मनुष्य स्वर्गलोक में सम्मानित होता है। उत्तरा नक्षत्र में मनुष्य जो-जो दान देते हैं, वह महान फल से युक्त एवं अनन्त होता है- यह शास्त्रों का निश्चय है। हस्थ नक्षत्र में उपवास करके ध्वजा, पताका, चंदोवा और किंकिणीजाल- इन चार वस्तुओं से युक्त हाथी जुते हुए रथ का दान करने वाला मनुष्य पवित्र कामनाओं से युक्त उत्तम लोकों में जाता है । भारत। जो लोग चित्रा नक्षत्र में वृषभ एवं पवित्र गंध का दान करते हैं वे अप्सराओं के लोक में विचरते और नंद वन में रमण करते हैं ।स्वाती नक्षत्र में अपनी अधिक-से-अधिक प्रिय वस्तु का दान करके मनुष्य शुभ लोकों में जाता है और इस जगत में भी महान यश का भागी होता है । जो विशाखा नक्षत्र में गाड़ी ढाने वाले बैल, दुध देने वाली गाय, धान्य, वस्त्र और प्रासंग सहित सकट दान करत है, वह देवता और पितरों को तृप्त कर देता है तथ मृत्यु के पश्चात अक्षय सुख का भागी होता है। वह जीते जी कभी संकट में नहीं पड़ता और मरने के बाद स्वर्गलोक में जाता है। पूर्वोक्त वस्तुओं का ब्राह्माणों का दान करके मनुष्य इच्छित जीविका-वृत्ति पा लेता है और नकर आदि के कष्ट भी कभी नहीं भोगता ऐसा शास्त्रों का निश्चय है।।जो मनुष्य अनुराधा नक्षत्र में उपवास करके ओढने का वस्त्र और उत्तम अन्न दान करता है, वह सौ युगों तक स्वर्गलोक में सम्मान पूर्वक रहता है । जो मनुष्य ज्येष्ठा नक्षत्र में ब्राह्माणों को समयोचित शाक और मूली दान करता है, वह अभीष्ट समृद्वि और सदगति को प्राप्त होता है। मूल नक्षत्र में एकाग्रचित हो ब्राह्माणों को मूल-फल दान करने वाला मनुष्य पितरों को तृप्त करता और अभीष्ट गति को पाता है । पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में उपवास करके कुलीन, सदाचारी एवं वेदों के पारंगत विद्वान ब्राह्माण को दही से भरे हुए पात्र का दान करने वाला मनुष्य मृत्यु के पश्चात ऐसे कुल में जन्म लेता है, जहां गौधन की अधिकता होती है।।जो उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में जलपूर्ण कलष सहित सत्तू की बनी हुई खाद्य वस्तु, घी और प्रचुर माखन दान करता है, वह सम्पूर्ण मनोवांछित भोगों को प्राप्त कर लेता है।।जो नित्य धर्मपरायण पुरूष अभिजिल नक्षत्र के योग में मनीषी ब्राह्माणों को मधु और घी से युक्त दूध देता है, वह स्वर्गलोक में सम्मानित होता है। जो श्रवण नक्षत्र में वस्त्रवेष्टित कम्बल दान करता है, वह स्वेत विमान के द्वारा खुले हुए स्वर्गलोक में जाता है।।जो धनिष्टा नक्षत्र में एकाग्रचित होकर बैलगाड़ी, वस्त्र-समूह तथा धन दान करता है, वह मृत्यु के पश्चात शीघ्र ही राज्य पाता है।जो शतभिषा नक्षत्र के योग में अगुरू और चन्दन के सहित सुगन्धित पदार्थों का दान करता है वह परलोक में अप्सराओं के समुदाय तथा अक्षय गंध को पाता है। पूर्वाभाद्रपदा नक्षत्र के योग में बड़ी उड़द या सफेद मटर का दान करके मनुष्य परलोक में सब प्रकार की खाद्य वस्तुओं से सम्पन्न हो सुखी होता है। जो उत्तरा भाद्रपदा नक्षत्र के योग में औरभ्र फल का गूदा दान करता है वह पितरों को तृप्त करता और परलोक में अक्षय सुख का भागी होता है । जो रेवती नक्षत्र में कांस के दुग्ध पात्र से युक्त धेनू का दान करता है वह धेनू परलोक में सम्पूर्ण भोगों को लेकर उस दाता की सेवा में उपस्थित होती है। जो नरेश्रेष्ठ अष्विनि नक्षत्र में घोड़े जुते हुए रथ का दान करता है वह हाथी, घोड़े और रथ से सम्पन्न कुल में तेजस्वी पुत्र रूप से जन्म लेता है। जो भरनी नक्षत्र में ब्राह्माणों को तिलमयी धेनू का दान करता है, वह इस लोक में बहुत सी गौओं का तथा परलोक में महान यश को प्राप्त करता है। भीष्मजी कहते हैं- राजन। इस प्रकार नक्षत्रों के योग में किये जाने वाले विविध वस्तुओं के दान का संक्षेप से यहां वर्णन किया गया है। नारद जी ने देवकी से और देवकीजी ने अपनी पुत्रबधुओं से यह विषय सुनाया था।
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्व के अन्तगर्त दानधर्मपर्वमें नक्षत्रयोगसम्बन्धी दाननामक चौंसठवाँ अध्याय पूरा हुआ।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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