महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 349 श्लोक 1-16

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित १३:५८, ३ जुलाई २०१५ का अवतरण
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

तीन सौ उनचासवाँ अध्याय: शान्तिपर्व (मोक्षधर्मपर्व)

महाभारत: शान्तिपर्व : तीन सौ उनचासवाँ अध्याय: श्लोक 1-24 का हिन्दी अनुवाद


व्यासजी का सृष्टि के प्रारम्भ में भगवान् नारायण के अंश से सरस्वतीपुत्र अपान्तरतमा के रूप में जनम होने की और उनके प्रभाव की कथा

जनमेजय ने पूछा - ब्रह्मर्षे ! सांख्य, योग, पान्चरात्र और वेदों के आरण्यकभाग - ये चार प्रकार के ज्ञान सम्पूर्ण लोकों में प्रचलित हैं।मुने ! क्या ये सब एक ही लक्ष्य का बोध कराने वाले हैं अथवा पृथक-पृथक लक्ष्य के प्रतिपादक हैं ? मेरे इस प्रश्न का आप यथावत् उत्तर दें और प्रवृत्ति का भी क्रमशः वर्णन करें।

वैशम्पायनजी ने कहा - राजन् ! देवी सत्यवती ने यमुनातटवर्ती द्वीप में पराशर मुनि से अपने शरीर का संयोग करके जिन बहुज्ञ और अत्यन्त उदार महर्षि को पुत्ररूप में उत्पन्न किया था, अज्ञानरूपी अन्धकार को दूर करने वाले ज्ञानसूर्य स्वरूप उन गुरुदेव व्यासजी को मेरा नमस्कार है। रह्माजी के आदिपुरुष जो नारायण हैं, उनके स्वरूपभूत जिन महर्षि को पूर्वपुरुष नारायण से छठी पीढ़ी में[१] उत्पन्न बताते हैं, जो ऋषियों के सम्पूर्ण ऐश्वर्य से सम्पन्न हैं, नारायण के अंश से उत्पन्न होने के कारण द्वैपायन कहलाते हैं, उन वेदों के महान् भण्डाररूप व्यासजी को मैं प्रणाम करता हूँ। प्राचीनकाल में उदार तेजस्वी, महान् वैभवसम्पन्न भगवान् नारायण ने वैदिक ज्ञान की महानिधिरूप महात्मा अजन्मा और पुराणपुरुष व्यासजी को अपने पुत्ररूप से उत्पन्न किया था।

जनमेजय ने कहा - द्विजश्रेष्ठ ! आपही ने पहले आदिपर्व की कथा सूनाते समय कहा था कि वसिष्ठ के पुत्र शक्ति, शक्ति के पुत्र पराशर और पराशर के पुत्र मुनिवर श्रीकृष्णद्वैपायन व्यास हैं और अब पुनः आप इन्हें नारायण का पुत्र बतला रहे हैं। श्रेष्ठ बुद्धि वाले मुनीश्वर ! क्या अमित तेजस्वी व्यासजी का इससे पहले भी कोई जन्म हुआ था ? नारायण से व्यासजी का जन्म कब और कैसे हुआ ? यह बताने की कृपा करें।

वैशम्पायनजी ने कहा - राजन् ! मेरे धर्मिष्ठ गुरु वेदव्यास तपस्वी निधि और ज्ञाननिष्ठ हैं। पहले वे वेदों के अर्थ का वास्तविक ज्ञान प्राप्त करने की इचछा से हिमालय के एक शिखर पर रहते थे। ये महाभारत नामक इतिहास की रचना करके तपस्या करते-करते थक गये थे। उन दिनों इन बुद्धिमान् गुरु की सेवा में तत्पर हम पाँच शिष्य उनके साथ रहते थे। सुमन्तु, जैमिनि, दृढ़तापूर्वक उत्तम धर्मका पालन करनेवाले पैल, चैथा मैं और पाँचवें व्यासपुत्र शुकदेव थे। इन पाँच उत्तम शिष्यों से घिरे हुए व्यासजी हिमालय के शिखर पर भूतों से परिवेष्टित भूतनाथ भगवान् शिव के समान शोभा पाते थे। वहाँ व्यासजी अंगों सहित सब वेदों तथा महाभारत के अर्थों की आवृत्ति करते और हम सब शिष्यो को पढ़ाते थे एवं हम सब लोग सदा उद्यत रहकर उन एकाग्रचित्त एवं जितेनिद्रय गुरु की सेवा करते थे। एक दिन किसी बातचीत के प्रसंग में हम लोगों ने द्विजश्रेष्ठ व्यासजी से वेदों और महाभारत का अर्थ तथा भगवान् नारायण से उनके जन्म होने का वृत्तान्त पूछा। तत्त्वज्ञानी व्यासजी ने पहले हमें वेदों और महाभारत का अर्थ बताया। उसके बाद भगवान् नारायण से अपने जन्म का वृत्तन्त इस प्रकार बताना आरम्भ किया-। ‘विप्रवर ! ऋषि सम्बन्धी यह उत्तम आख्यान सुनो। प्राचीन काल का यह वृत्तान्त मैंने तपस्या के द्वारा जाना है।‘जब सातवें कल्प के आरम्भ में सातवीं बार ब्रह्माजी के कमल से जन्म ग्रहण करने का अवसर आया, तब शुभ और अशुभ से रहित अमित तेजसवी महायोगी भगवान् नारायण ने सबसे पहले अपने नाभिकमल से ब्रह्माजी को उत्पन्न किया। जब ब्रह्माजी प्रकट हो गये, तब उनसे भगवान् ने यह बात कही-। ‘ब्रह्मन् ! तुम मेरी नाभि से प्रजावर्ग की सुष्टि करने के लिये उत्पन्न हुए हो और इस कार्य में समर्थ हो; अतः जड़-चेतन सहित नाना प्रकार की प्रजाओं की सृष्अि करो’। ‘भगवान् के इस प्रकार आदेश होने पर ब्रह्माजी का मन चिन्ता से व्यकुल हो उठा। वे सुष्टिकार्य से विमुख हो वरदायक देवता सर्वेश्वर श्रीहरि को प्रणाम करके इस प्रकार बोले-। ‘देवेश्वर ! मुझमें प्रजा की सृष्टि करने की क्या शक्ति है ? आपको नमस्कार है। देव ! मैं सुष्टि विषयक बुद्धि से सर्वथा रहित हूँ- यह जानकर अब आपको जो उचित जान पड़े, वह कीजिये’। ‘ब्रह्माजी के ऐसा कहने पर बुद्धिमानों में श्रेष्ठ देवेश्वर भगवान् विष्णु ने अदृश्य होकर बुद्धि का चिन्तन किया। ‘उनके चिन्तन करते ही मूर्तिमती बुद्धि उन सामथ्र्यशाली श्रीहरि की सेवा में उपस्थित हो गयी। तदनन्तर जिनपर दूसरो का वश नहीं चलता, उन भगवान् नारायण ने स्वयं ही उस बुद्धि को उस समय यागशक्ति से सम्पन्न कर दिया। ‘अविनाशी प्रभु नारायणदेव ने ऐश्वर्ययोग में स्थित हुई उस सती-साध्वी प्रगतिशील बुद्धि से कहा-।


« पीछे आगे »


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1नारायण, 2 ब्रह्मा 3 वसिष्ठ, 4 श्क्ति, 5 पराशर, 6 व्यास- इस प्रकार छठी पीढ़ी में उत्पन्न हुए हैं।

संबंधित लेख