महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 358 श्लोक 1-13

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तीन सौ अट्ठावनवाँ अध्याय: शान्तिपर्व (मोक्षधर्मपर्व)

महाभारत: शान्तिपर्व : तीन सौ अट्ठावनवाँ अध्याय: श्लोक 1-13 का हिन्दी अनुवाद

अष्टपन्चाशदधिकत्रिशततमोऽध्यायःनागराज के दर्शन के लिये ब्राह्मण की तपस्या तथा नागराजके परिवार वालों का भोजन के लिये ब्राह्मण से आग्रह करना भीष्मजी कहते हैं - नरश्रेष्ठ ! तदनन्तर गोमती के तटपर रहता हूआ वह ब्राह्मण निराहार रहकर तपस्या करने लगा। उसके भोजन न करने से वहाँ रहने वाले नागों को बड़ा दुःख हुआ। तब नागराज के भाई-बन्धु, स्त्री-पुत्र सब मिलकर उस ब्राह्मण के पास गये। उन्होंने देखा, ब्राह्मण गोमती के तट पर एकान्त प्रदेश में व्रत और नियम के पालन में ततपर हो निराहार बैठा हुआ है और मन्त्र का जप कर रहा है। अतिथि-सत्कार के लिये प्रसिद्ध हुए नागराज के सब भाई-बन्धु ब्राह्मण के पास जा उसकी बारंबार पूजा करके संदेह रहित वाणी से बोले-। ‘धर्मवत्सल तपोधन ! आपको यहाँ आये आज छः दिन हो गये; किन्तु अभी तक आप कुछ भेजन लाने के लिये हमें आाा नहीं दे रहे हैं। ‘आप हमारे घर अतिथि के रूप में आये हैं और हम आपकी सेवा में उपस्थित हुए हैं। आपका आतिथ्य करना हमारा कर्तव्य है; क्योंकि हम सब लोग गृहसथ हैं।। द्विजश्रेष्टठ ब्राह्मणदेव ! आप क्षुधा की निवृत्ति के लिये हमारे लाये हुए फल-मूल, साग्, दूध अथवा अन्न को अवश्य ग्रहण करने की कृपा करें। ‘इस वन में रहकर आने भोजन छोड़ दिया है। इससे हमारे धर्म में बाधा आती है। बालक से लेकर वृद्ध तक हम सब लोगों को इस बात से बड़ा कष्ट हो रहा है। ‘हमारे इस कुल में कोई भी ऐसा नहीं है, जिसने कभी भ्रूणहत्या की हो, जिसकी संतान पैदा होकर मर गयी हो, जिसने मिथ्या भाषण किया हो अथवा जो देवता, अतिथि एवं बन्धुओं को अनन देने के पहले ही भोजन कर लेता हो’।

ब्राह्मण ने कहा - नागगण ! आप लोगों के इस उपदेश से ही मैं तृप्त हो गया। आप लोग ऐसा समझें के मैंने यह आहार ही प्रापत कर लिया। नागराज के आने में केवल आइ रातें बाकी हैं। यदि आठ रात बीत जाने पर भी नागराज नहीं आयेंगे तो मैं भेजन कर लूँगा। उनके आगमन के लिये ही मैंने यह व्रत लिया है। आप लोगों को इसके लिये संताप नहीं करना चाहिये। आप जैसे आये हैं, वैसे ही घर लौट जाइये। नागराज के दर्शन के लिये ही मेरा यह सारा व्रत और नियम है। अतः आप लोग इसे भंग न करें। नरश्रेठ ! उस ब्राह्मण के इस प्रकार आदेश देने पर वे नाग अपने प्रयत्न में असफल हो घर को ही लौट गये।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शानितपर्व के अन्तर्गत मोक्षधर्मपर्व में उन्छवृत्ति का उपाख्यान विषयक तीन सौ अट्ठावनवाँ अध्याय पूरा हुआ।




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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