महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 365 श्लोक 1-9

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तीन सौ पैंसठवाँ अध्याय: शान्तिपर्व (मोक्षधर्मपर्व)

महाभारत: शान्तिपर्व : तीन सौ पैंसठवाँ अध्याय: श्लोक 9 का हिन्दी अनुवाद

नागराज से विदा ले ब्राह्मण का च्यवनमुनि से उन्छवृत्ति की दीक्षा लेकर साधनपरायण होना और इस कथा की परम्परा का वर्णन

भीष्मजी कहते हैं - युधिष्ठिर ! इस प्रकार नागराज की अनुमति लेकर वह दृढ़ निश्चय वाला ब्राह्मण उन्छव्रत की दीक्षा लेने के लिये भृगुवंशी च्यवन ऋषि के पास गया। उन्होंने उसका दीक्षा-संस्कार सम्पन्न किया और वह धर्म का ही आश्रय लेकर रहने लगा। राजन् ! उसने उन्छवृत्ति की महिमा से सम्बन्ध रखने वाली इस कथा को च्यवन मुनि से कहा। राजेन्द्र ! च्यवन न भी राजा जनक के दरबार में महात्मा नारदजी से यह पवित्र कथा कही। नृपश्रेष्ठ ! भरतभूषण ! फिर अनायास ही उत्तम कर्म करने वाले नारदजी ने भी देवराज इन्द्र के भवन में उनके पूछने पर यह कथा सुनायी। पुथ्वीनाथ ! तत्पश्चात् पूर्वकाल में देवराज इन्द्र ने सभी श्रेष्ठब्राह्मणों के समक्ष यह शुभ कथा कही। राजन् ! जब परशुरामजी के साथ मेरा भयंकर युद्ध हुआ था, उस समय वसुओं ने मुझे यह कथा सुनायी थी।। धर्मात्माओं में श्रेष्ठ युधिष्ठिर ! इस समय जब तुमने परम धर्म के समबन्ध में मुझसे प्रश्न किया है, तब उसी के उत्तर में मेंने यथार्थ रूप से यह पुण्यमयी धर्म सम्मत श्रेष्ठ कथा तुमसे कही। भरतनन्दन नरेश्वर ! तुमने जिसके विषय में मुझसे पूछा था, वह श्रेष्ठ धर्म यही है। चह धीर ब्राह्मण निष्कामभाव से धर्म और अर्थ सम्बन्धी कार्य में संलग्न रहता था।। नागराज के उपदेश के अनुसार अपने कर्तव्य को समझकर उस ब्राह्मण ने उसके पालन का दृढ़ निश्चय कर लिया और दूसरे वन में जाकर उन्छशिवृत्ति से प्राप्त हुए परिमित अन्न का भोजन करता हुआ यम-नियम का पालन करने लगा। इस प्रकार श्रीमहाभारत शांतिपर्व के अन्तर्गत मोक्षधर्मपर्व में उन्छवृत्ति का उपाख्यान विषयक तीन सौ पैंसठवाँ अध्याय पूरा हुआ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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