महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 77 श्लोक 19-35

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सतहत्तरवाँ अध्‍याय: अनुशासनपर्व (दानधर्मपर्व)

महाभारत: अनुशासनपर्व: सतहत्तरवाँ अध्याय: श्लोक 19-35 का हिन्दी अनुवाद

जैसे नदियों की लहरों से फेन उत्पन्न होता है, उसी प्रकार चारों ओर दूध की धारा बहाती हुई अमृत (सुवर्ण) के समान वर्ण वाली उन गौओं के दूध से फेन उठने लगा। एक दिन भगवान शंकर पृथ्वी पर खड़े थे। उसी समय सुरभि के एक बछड़े के मुंह से फेन निकलकर उनके मस्तक पर गिर पड़ा इससे वे कुपित हो उठे और अपने ललाट जनित नेत्रों से, मानो रोहिणी को भस्म कर डालेंगे, इस तरह उसकी ओर देखने लगे। प्रजानाथ। रूद्र का वह भयंकर तेज जिन-जिन कपिलाओं पर पड़ा उनके रंग नाना प्रकार के हो गये। जैसे सूर्य बादलों को अपनी किरणों से बहुरंगा बना देते हैं, उसी प्रकार उस तेज ने उन सब को नाना वर्ण वाली कर दिया। परंतु जो गौऐं वहां से भागकर चन्द्रमा की ही शरण में चली गयीं, वे जैसे उत्पन्न हुई थीं वैस ही रह गयीं। उनका रंग नहीं बदला। उस समय क्रोध में भरे हुए महादेवजी से दक्ष प्रजापति ने कहा-प्रभो। आपके ऊपर अमृत का छींटा पड़ा है। गौओं का दूध बछड़ों क पीने से जूठा नहीं होता। जैसे चन्द्रमा अमृत का संग्रह करके फिर उसे बरसा देता है, उसी प्रकार ये रोहिणी गौऐं अमृत से उत्पन्न दूध देती हैं। ‘जैसे वायु, अग्नि, सुवर्ण, समुद्र और देवताओं का पीया हुआ अमृत- ये वस्तुऐं उच्छिष्ट नहीं होतीं, उसी प्रकार बछड़ों के पीने पर उन बछड़ों के प्रति स्नेह रखने वाली गौ भी दूषित या उच्छिष्ट नहीं होती। (तात्पर्य यह कि दूध पीते समय बछड़े के मुंह से गिरा हुआ झाग अशुद्व नहीं माना जाता) ये गौऐं अपने दूध और घी से इस सम्पूर्ण जगत का पालन करेंगे। सब लोग चाहते हैं कि इन गौओं के पास मंगलकारी अमृतमय दुग्ध की संपत्ति बनी रहे’। भरतनन्दन। ऐसा कहकर प्रजापति ने महादेवजी को बहुत-सी गौऐं और एक बैल भेंट किये तथा इसी उपाय के द्वारा उनके मन को प्रसन्न किया। महादेवजी प्रसन्न हुए। उन्होंने वृषभ को अपना वाहन बनाया और उसी की आकृति से अपनी ध्वजा को चिन्हित किया, इसलिये वे ‘वृषभध्वज’ कहलाये। तदनन्तर देवताओं ने महादेवजी को पशुओं का अधिपति बना दिया और गौओं के बीच में उन महेश्‍वर का नाम ‘वृषभांक’ रख दिया। इस प्रकार कपिला गौऐं अत्यन्त तेजस्विनी और शान्त वर्णवाली हैं। इसी से दान में उन्हें सब गौओं से प्रथम स्थान दिया गया है। गौऐं संसार की सर्वश्रेष्ठ वस्तु हैं। ये जगत् को जीवन देने के कार्य में प्रवृत हैं। भगवान शंकर सदा उनके साथ रहते हैं। वे चन्द्रमा से निकले हुए अमृत से उत्पन्न हुई हैं तथा शान्त, पवित्र, समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली और जगत् को प्राणदान देने वाली हैं; अतः गोदान करने वाला मनुष्य सम्पूर्ण कामनाओं का दाता माना गया है। गौओं क उत्पत्ति से सम्बन्ध रखने वाली इस उत्तम कथा का सदा पाठ करने वाला मनुष्य अपवित्र हो तो भी मंगलप्रिय हो जाता है और कलियुग के सारे दोषों से छूट जाता है। इतना ही नहीं, उसे पुत्र, लक्ष्मी, धन तथा पशु आदि की सदा प्राप्ति होती है। राजन। गोदान करने वाले को हव्य, कव्य, तर्पण और शान्ति कर्म का फल तथा वाहन, वस्त्र एवं बालकों और वृद्वों को संतोष प्राप्त होता है। इस प्रकार ये सब गोदान के गुण हैं। दाता इन सबको सदा पाता ही है।वैशम्पायनजी कहते हैं- राजन। पितामह भीष्म की ये बातें सुनकर अजमीढ वंशी राजा युधिष्ठिर और उनके भाईयों ने श्रेष्ठ ब्राह्माणों को सोने के समान रंग वाले बैलों और उत्तम गौओं का दान किया। इसी प्रकार यज्ञों की दक्षिणा के लिये, पुण्यलोकों पर विजय पाने के लिये तथा संसार में अपनी उत्तम कीर्ति का विस्तार करके के लिये राजा ने उन्हीं ब्राह्माणों को सैकड़ों और हजारों गौऐं दान की ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्व के अन्‍तगर्त दानधर्मपर्वमें गौओं की उत्पत्ति का वर्णनविषयक सतहत्तरवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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