एकोनशीतितमो (79) अध्याय :अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासनपर्व: एकोनशीतितमो अध्याय: श्लोक 1-27 का हिन्दी अनुवाद
- गौओं को तपस्या द्वारा अभीष्ट वर की प्राप्ति तथा उनके दान की महिमा, विभिन्न प्रकार के गौओं के दान से विभिन्न उत्तम लोकों में गमन का कथन
वसिष्ठजी कहते हैं- मानद परंतप। प्राचीन काल में जब गौओं की सृष्टि हुई थी, तब उन गौओं ने एक लाख वर्षों तक बड़ी कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या का उद्वेश्य यह था कि हम श्रेष्ठता प्राप्त करें। इस जगत में जितनी दक्षिणा देने योग्य वस्तुऐं हैं उन सब में हम उत्तम समझी जायें। किसी दोष से लिप्त न हों। हमारे गोबर से स्नान करने पर सदा सब लोग पवित्र हों। देवता और मनुष्य पवित्रता के लिये हमेशा हमारे गोवर का उपयोग करें। समस्त चराचर प्रणी भी हमारे गोबर से पवित्र हो जायें और हमारा दान करने वाले मनुष्य हमारे ही लोक (गोलोक धाम) में जायें। जब उनकी तपस्या समाप्त हुई, तब साक्षात् भगवान ब्रम्हा ने उन्हें वर दिया-‘गौ । ऐसा ही हो- तुम्हारे मन में जो संकल्प है, वह परिपूर्ण हो। तुम सम्पूर्ण जगत के जीवों का उद्वार करती रहो’। इस प्रकार अपनी समस्त कामनाऐं सिद्व हो जाने पर गौऐं तपस्या से उठी। वे भूत, भविष्य और वर्तमान- तीनों कालों की जननी हैं, अतः प्रतिदिन प्रातःकाल उठकर गौओं को प्रणाम करना चाहिये इससे मनुष्यों का पुष्टि प्राप्त होती है। महराज। तपस्या समाप्त होने पर गौऐं सम्पूर्ण जगत का आश्रय बन गयी; इसलिये वे महान सौभाग्यशालिनी गौऐं परम पवित्र बताई जाती हैं। यह समस्त प्राणियों के मस्तक पर स्थित है। (अर्थात सबसे श्रेष्ठ एवं वंदनीय है)। जो मनुष्य दूध देने वाली सुलक्षिणा कपिला गौ को वस़्त्र ओढ़ाकर कपिल रंग के बछड़े सहित दान करता है, वह ब्रह्म लोक में सम्मानित होता है। जो मनुष्य दूध देने वाली सुलक्षिणा लाल रंग की गौ को वस्त्र ओढ़ाकर लाल रंग के बछड़े सहित दान करता है, वह सूर्य लोक में सम्मानित होता है। जो पुरूष दूध देने वाली सुलक्षिणा चितकबरी गौओं को वस्त्र ओढ़ाकर चितकबरे बछड़े सहित दान करता है, वह चन्द्रलोक में पूजित होता है। जो मानव दूध देने वाली सुलक्षिणा स्वेत वर्ण की गौओं को वस्त्र ओढ़ाकर स्वेत वर्ण के बछड़े सहित दान करता है, उसे इन्द्रलोक में सम्मान प्राप्त होता है। जो मनुष्य दूध देने वाली सुलक्षिणा कृष्णवर्ण गौओं को वस्त्र ओढ़ाकर कृष्णवर्ण के बछड़े सहित दान करता है, वह अग्निलोक में प्रतिष्ठित होता है। जो पुरूष दूध देने वाली सुलक्षिणा धूऐं- जैसे रंग की गौ को वस्त्र ओढ़ाकर धूऐं के समान रंग के बछड़े सहित दान करता है, वह यमलोक में सम्मानित होता है। जो जल के फेन के समान रंग वाली गौ को वस्त्र ओढ़ाकर बछड़े और कांस्य के दुग्ध सहित दान करता है, वह वरुण लोक को प्राप्त होता है। जो हवा से उड़ी हुई धूल के समान रंग वाली गौ को वस्त्र ओढ़ाकर बछड़े और कांस्य के दुग्ध पात्र सहित दान करता है, उसकी वायुलोक में पूजा होती है। जो सुवर्ण के समान रंग तथा पिंगल वर्ण के नेत्र वाली गौ को वस्त्र ओढ़ाकर बछड़े और कांस्य के दुग्ध पात्र सहित दान करता है, वह कुबेर-लोक को प्राप्त होता है। जो पुआल के धूऐं के समान रंग वाली बछड़े सहित गौ को वस्त्र से आच्छादित करके कांस्य के दुग्ध पात्र सहित दान करता है, वह पितृ-लोक में प्रतिष्ठित होता है। जो लटकते हुए गल कंबल से युक्त मोटी ताजी सवसा गौ को अलंकृत करके ब्राह्माण को दान देता है, जब वह बिना किसी वाधा के विश्वेदेवों के श्रेष्ठ लोकों में पहुंच जाता है। जो गौर वर्ण वाली और दूध देने वाली शुभलक्षिणा गौओं को वस्त्र ओढ़ाकर समान रंग वाले बछड़े सहित दान करता है, वह बसुओं के लोक में जाता है। जो श्वेत कंबल के समान रंग सवत्सा गौ को वस्त्र से आच्छादित करके कांस्य के दुग्ध पात्र सहित दान करता है, वह साध्यों के लोक में जाता है। राजन। जो विशालविशाल पृष्ठ भाग को बैल को सब प्रकार के रत्नों ने अलंकृत करके उसका दान करता है, वह मरुद् गणोंकेलोकों में जाता है। जो मनुष्य यौवन से सम्पन्न और सुन्दर अंग वाले बैल को सम्पूर्ण रत्नों से विभूषित करके उसका दान करता है, वह गन्धर्बों और अप्सराओं के लोकों को प्राप्त करता है। जो लटकते हुए गल कंबल वाले तथा गाड़ी का बोझ ढ़ोने में समर्थ बैल को सम्पूर्ण रत्नों से अलंकृत करके ब्राह्माण को देता है, वह शोक रहित हो प्रजापति के लाकों में जाता है। राजन। गोदान में अनुराग पूर्वक तत्पर रहने वाला पुरूष सूर्य के समान देदीप्यमान विमान में बैठकर मेंघमंडल को भेदता हुआ स्वर्ग में जाकर सुशोभित होता है। उस गोदान परायण श्रेष्ठ मनुष्य को मनोहर वेष और सुन्दर नितम्ब वाली सहस्त्रों देवांगनाएं (अपनी सेवा से) रमण करती है। वह वीणा और वल्ल्लकी के मधुर गुंजन, मृगनयनी युवतियों के नुपुरों की मनोहर झनकारों तथा हास-परिहास के शब्दों को श्रवण करके नींद से जागता है। गौ के शरीर में जितने रोंए होते है, उतनें वर्षो तक वह स्वर्ग लोक में सम्मानपूर्वक रहता है। फिर पुण्य क्षीण होने पर जब वह स्वर्ग से नीचे उतरता है, तब इस मनुष्य लोंक में आकर सम्पन्न घर में जन्म लेता है।
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्व के अन्तगर्त दानधर्मपर्वमें गौओं की उत्पत्ति का गोदान विषयक उन्यासीवाँ अध्याय पूरा हुआ।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख