महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 18 श्लोक 1-19

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अष्टाविंशों (18) अध्याय: द्रोणपर्व (संशप्‍तकवध पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: अष्टाविंशों अध्याय: श्लोक 1-31 का हिन्दी अनुवाद

संशप्‍तक सेनाओं के साथ अर्जुन का युद्ध और सुधन्‍वा का वध

संजय कहते हैं – राजन् ! तदनन्‍तर संशप्‍तक योद्धा रथों द्वारा ही सेना का चन्‍द्राकार व्‍यूह बनाकर समतल प्रवेश में प्रसन्‍नतापूर्वक खड़े हो गये। आर्य ! किरीटधारी अर्जुन को आते देख पुरूषसिंह संशप्‍तक हर्षपूर्वक बड़े जोर-जोर से गर्जना करने लगे। उस सिंहनाद ने सम्‍पूर्ण दिशाओं, विदिशाओं तथा आकाश मो व्‍याप्‍त कर लिया । इस प्रकार सम्‍पूर्ण लोक व्‍याप्‍त हो जाने से वहॉ दूसरी कोई प्रतिध्‍वनि नही होती थी। अर्जुन ने उन सबको अत्‍यन्‍त हर्ष में भरा हुआ देख किंचित मुस्‍कराते हुए भगवान श्रीकृष्‍ण से इस प्रकार कहा। देवकीनन्‍दन ! देखिये तो सही, ये त्रिगर्तदेशीय सुशर्मा आदि सब भाई मृत्‍यु के निकट पहॅुचे हुए है । आज युद्धस्‍थल में जहां इन्‍हें रोना चाहिये, वहॉ से हर्ष से उछल रहे हैं। अथवा इसमें संदेह नही कि यह इन त्रिगतों के लिये हर्ष का अवसर है; क्‍योंकि ये उन परम उत्‍तम लोकों में जायॅगे, जो दुष्‍ट मनुष्‍यों के लिये दुर्लभ है। भगवान हृषीकेश से ऐसा कहकर महाबाहु अर्जुन ने युद्ध में त्रिगतों की व्‍यूहाकार खड़ी हुई सेनापर आक्रमण किया। उन्‍होंने सुवर्ण जटित देवदत नामक शंख लेकर उसकी ध्‍वनि से सम्‍पूर्ण दिशाओं को परिपूर्ण करते हुए उसे बड़े वेग से बजाया। उस शंखनाद से भयभीत हो वह संशप्‍तक सेना युद्ध भूमि मे लोहे की प्रतिमा के समान निश्‍चेष्‍ट खड़ी हो गयी। भरतश्रेष्‍ठ ! वह निश्‍चेष्‍ट हुई सेना ऐसी सुशोभित हुई, मानो कुशल कलाकारों द्वारा चित्रपट में अंकित की गयी हो ।। सम्‍पूर्ण आकाश में फैले हुए उस शंखनाद ने समूची पृथ्‍वी और महासागर को भी प्रतिध्‍वनित कर दिया । उस ध्‍वनि से सम्‍पूर्ण सैनिकों के कान बहरे हो गये ।। उनके घोड़े ऑखे फाड़-फाड़कर देखने लगे । उनके कान और गर्दन स्‍तब्‍ध हो गये, चारों पैर अकड़ गये और वे मूत्र के साथ-साथ रूधिर भी त्‍याग करने लगे। थोड़ी देर मे चेत होने पर संशप्‍तको ने अपनी सेना को स्थिर किया और एक साथ ही पाण्‍डुपुत्र अर्जुन पर कंकपक्षी की पॉखवाले बाणों की वर्षा आरम्‍भ कर दी। परंतु पराक्रमी अर्जुन ने पंद्रह शीघ्रगामी बाणों द्वारा उनके सहस्‍त्रों बाणों को अपने पास आने से पहले ही शीघ्रतापूर्वक काट डाला। तदनन्‍तर संशप्‍तकों ने दस-दस तीखे बाणों से पुन: अर्जुन को बींध डाला, यह देख उन कुन्‍तीकुमार ने भी तीन-तीन बाणों से संशप्‍तकों को घायल कर दिया। राजन ! फिर उनमे से एक-एक योद्धा ने अर्जुन को पॉच-पॉच बाणों से बींध डाला और पराक्रमी अर्जुन ने भी दो-दो बाणों द्वारा उन सबको घायल करके तुरंत बदला चुकाया। तत्‍पश्‍चात् अत्‍यन्‍त कुपित हो संशप्‍तकों ने पुन: श्रीकृष्‍ण सहित अर्जुन को पैने बाणों द्वारा उसी प्रकार परिपूर्ण करना आरम्‍भ किया, जैसे मेघ वर्षा द्वारा सरोवर को पूर्ण करते हैं। तत्‍पश्‍चात् अर्जुन पर एक ही साथ हजारो बाण गिरे, मानो वनमें फूले हुए वृक्षपर भौंरो के समूह आ गिरे हों। तदनन्‍तर सुबाहुने लोहें के बने हुए तीस बाणों द्वारा अर्जुन के किरीट में गहरा आघात किया। सोनेके पंखोसे युक्‍त सीधे जानेवाले वे बाण उनके किरीट में चारो ओर से धॅस गये ।उन बाणो द्वारा किरीटधारी अर्जुन की वैसीही शोभा हुई जैसे स्‍वर्णमय मुकुट से मण्डित भगवान सूर्य उदित एवं प्रकाशित हो रहे हों। तब पाण्‍डुनन्‍दन अर्जुन ने भल्‍ल का प्रहार करके युद्ध में सुबाहु के दस्‍ताने को काट दिया औश्र उसके उपर पुन: बाणों की वर्षा आरंभ कर दी। यह देख सुशर्मा, सुरथ, सुधर्मा, सुधन्‍वा और सुबाहु ने दस-दस बाणों से किरीटधारी अर्जुन को घायल कर दिया। फिर कपिध्‍वज अर्जुन ने भी पृथक-पृथक बाण मारकर उन सबको घायल कर दिया । भल्‍लों द्वारा उनकी ध्‍वजाओं तथा सायकों को भी काट गिराया। सुधन्‍वा का धनुष काटकर उसके घोड़ों को भी बाणों से मार डाला । फिर शिरस्‍त्राण सहित उसके मस्‍तक को भी काटकर धड़ से नीचे गिरा दिया। वीरवर सुधन्‍वा के धराशायी हो जाने पर उसके अनुगामी सैनिक भयभीत हो गये, वे भय के मारे वहीं भाग गये, जहां दुर्योधन की सेना थी। तब क्रोध में भरे हुए इन्‍द्रकुमार अर्जुन ने बाण-समूहों की अविच्छिन्‍न वर्षा करके उस विशाल वाहिनी का उसी प्रकार संहार आरम्‍भ किया, जैसे सूर्यदेव अपनी किरणों द्वारा महान अधंकार का नाश करते है। तदनन्‍तर जब संशप्‍तकों की सारी सेना भागकर चारों ओर छिप गयी और सव्‍यसाची अर्जुन अत्‍यन्‍त क्रोधमें भर गये, तब उन त्रिगर्तदेशीय योद्धाओं के मन में भारी भय समा गया। अर्जुन के झुकी हुई गॉठवाले बाणों की मार खाकर वे सभी सैनिक वहॉ भयभीत मृगों की भॉति मोहित हो गये। तब क्रोध में भरे हुए त्रिगर्तराज ने अपने उन महारथियों से कहा- शूरवीरों ! भागने से कोई लाभ नहीं है । तुम भय न करो। सारी सेना के सामने भयंकर शपथ खाकर अब यदि दुर्योधन की सेना में जाओगे तो तुम सभी श्रेष्‍ठ महारथी क्‍या जवाब दोगे ? हमें युद्ध में ऐसा कर्म करके किसी प्रकार संसार में उपहास का पात्र नहीं बनना चाहिये । अत: तुम सब लोग लौट आओ । हमें यथा शक्ति एक साथ संगठित होकर युद्ध भूमि में डटे रहना चाहिये। राजन ! त्रिगर्तराज के ऐसा कहने पर वे सभी वीर बारंबार गर्जना करने और एक-दूसरे में हर्ष एवं उत्‍साह भरते हुए शंख बजाने लगे। तब वे समस्‍त संशप्‍तकगण और नारायणी सेना के ग्‍वाले मृत्‍यु को ही युद्ध से निवृति का अवसर मानकर पुन: लौट आये।

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तर्गत संशप्‍तकवधपर्व में सुधन्‍वा का वध विषयक अठारहवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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