महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 25 श्लोक 1-24
पचंविंशो (25) अध्याय: द्रोणपर्व (संशप्तकवध पर्व )
कौरव पाण्डव सैनिकों के दन्द युद्ध
संजय कहते हैं - महाराज ! पाण्डव सैनिकों के लौटने पर जैसे बादलों से सूर्य ढक जाते हैं, उसी प्रकार उनके बाणों से द्रोणाचार्य आच्छादित होने लगे । यह देखकर हमलोगों ने उनके साथ बड़ा भयंकर संग्राम किया। उन सैनिक द्वारा उड़ायी हुई तीव्र धूल ने आपकी सारी सेना को ढक दिया । फिर तो हमारी दृष्टि का मार्ग अवरूद्ध हो गया और हमने समझ लिया कि द्रोण मारे गये। उन महाधनुर्धर शूरवीरों को क्रूर कर्म करने के लिये उत्सुक देख दुर्योधन ने तुरंत ही अपनी सेना को इस प्रकार आज्ञा दी। नरेश्वरों ! तुम सब लोग अपनी शक्ति, उत्साह और बल के अनुसार यथोचित उपाय द्वारा पाण्डवों की सेना को रोको। तब आपके पुत्र दुर्मर्षण ने भीमसेन को अपने पास ही देखकर उनके प्राण लेने की इच्छासे बाणों की वर्षा करते हुए उन पर आक्रमण किया। उसी क्रोध में भरी हुई मृत्यु के समान युद्धस्थल में बाणों द्वारा भीमसेन को ढक दिया । साथ ही भीमसेन ने भी अपने बाणों द्वारा उसे गहरी चोट पहॅुचायी । इस प्रकार उन दोनो में महाभयंकर युद्ध होने लगा। अपने स्वामी राजा दुर्योधन की आज्ञा पाकर वे प्रहार करने में कुशल बुद्धिमान् शूरवीर राज्यको और मृत्यु के भय को छोड़कर युद्धस्थल में शत्रुओं का सामना करने लगे। प्रजानाथ ! द्रोण को अपने वश में करने की इच्छा से आगे बढ़ते हुए संग्राम में शोभा पानेवाले शूरवीर सात्यकि को कृतवर्मा ने रोक दिया। तब क्रोधमें भरे हुए सात्यकि ने कुपित हुए कृतवर्मा को अपने बाण समूहों द्वारा आगे बढ़ने से रोका और कृतवर्मा ने सात्यकि को । ठीक उसी तरह, जैसे एक मतवाला हाथी दूसरे मतवाले गजराज को रोक देता है। भयंकर धनुष धारण करनेवाले सिंधुराज जयद्रथ ने महाधनुर्धर क्षत्रवर्मा को अपने तीखे बाणों द्वारा प्रयत्नपूर्वक द्रोणाचार्य की ओर से रोक दिया। क्षत्रवर्मा ने कुपित हो सिंधुराज जयद्रथ के ध्वज और धनुष काटकर दस नाराचों द्वारा उसके सभी मर्मस्थानों में चोट पहॅुचायी। तब सिंधुराज दूसरा धनुष लेकर सिद्धहस्त पुरूष की भॉति सम्पूर्णत: लोहे के बने हुए बाणों द्वारा रणक्षेत्र में क्षत्रवर्मा को घायल कर दिया। पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर के हित के लिये प्रयत्न करनेवाले भरतवंशी महारथी युयुत्सु को सुबाहु ने प्रयत्नपूर्वक द्रोणाचार्य की ओर आने से रोक दिया। तब युयुत्सु ने प्रहार करते हुए सुबाहु की परिघ के समान मोटी एवं धनुष बाणों से युक्त दोनो भुजाओं को अपने तीखे और पानीदारदो छूरों द्वारा काट गिराया। पाण्डव क्षेष्ठ धर्मात्मा राजा युधिष्ठिर को मद्रराज शल्य ने उसी प्रकार रोक दिया, जैसे क्षुब्ध महासागर को तट भूमि रोक देती है। धर्मराज युधिष्ठिर ने शल्य पर बहुत से मर्मभेदी बाणों की वर्षा की । तब मद्रराज भी चौंसठ बाणों द्वारा युधिष्ठिर को घायल करके जोर-जोर से गर्जना करने लगे। तब ज्येष्ठ पाण्डव युधिष्ठिर ने दो छूरों द्वारा गर्जना करते हुए राजा शल्य के ध्वज और धनुष को काट डाला । यह देख सबलोग हर्ष से कोलाहल कर उठे। इसी प्रकार अपनी सेना सहित राजा बाह्रिक ने सैनिकों के साथ धावा करते हुए राजा द्रुपद को अपने बाणों द्वारा रोक दिया। जैसे मद की धारा बहानेवाले दो विशाल गजयूथपतियों में लड़ाई होती है, उसी प्रकार सेनासहित उन दोनो वृद्ध नरेशों में बड़ा भयंकर युद्ध होने लगा। अवन्ती के राजकुमार विन्द और अनुविन्द ने अपनी सेनाओं को साथ लेकर विशाल वाहिनी सहित मत्स्यराज विराट पर उसी प्रकार धावा किया, जैसे पूर्वकाल में अग्नि और इन्द्र ने राजा बलिपर आक्रमण किया था। उस समय मत्स्यदेशीय सैनिकों का केकय देशीय योद्धाओं के साथ देवासुर-संग्राम के समान अत्यन्त घमासान युद्ध हुआ । उसमे हाथी, घोड़े और रथ सभी निर्भय होकर एक-दूसरे से लड़ रहे थे। नकुल का पुत्र शतानीक बाण समूहों की वर्षा करता हुआ द्रोणाचार्य की ओर बढ़ रहा था । उस समय भूतकर्मा सभापति ने उसे द्रोण की ओर आने से रोक दिया। तदनन्तर नकुल के पुत्र ने तीन तीखे भल्लों द्वारा युद्ध में भूतकर्मा की बाहु तथा मस्तक काट डाले। पराक्रमी वीर सुतसोम बाण समूहों की बौछार करता हुआ द्रोणाचार्य के सम्मुख आ रहा था । उसे विविंशति ने रोक दिया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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