एकत्रिंशो (31) अध्याय: द्रोणपर्व (संशप्तकवध पर्व )
महाभारत: द्रोणपर्व: एकत्रिंशो अध्याय: श्लोक 18-29 का हिन्दी अनुवाद
वहां द्रोणाचार्य और धृष्टधुम्न में अद्रुत युद्ध होने लगा, जिसकी कहीं कोई तुलना नही थी, यह मेरा निश्चित मत है। तदनन्तर अग्नि के समान कान्तिमान् नील बाणरूपी चिनगारियों तथा धनुषरूपी लपटों का विस्तार करते हुए कौरव सेना को दग्ध करने लगे, मानो आग घास-फूस के ढेर को जला रही हो। राजा नील को कौरव सेना का दहन करते देख प्रतापी द्रोणपुत्र अश्रत्थामा ने, जो पहले स्वयं ही वार्तालाप आरम्भ करनेवाला था, मुस्कराते हुए मधुर वचनों मे कहा। नील ! तुमको बाणों की ज्वाला से इन बहुत से योद्धाओं को दग्ध करने से क्या लाभ ? तुम अकेले मुझसे ही युद्ध करो और कुपित होकर मेरे ऊपर शीघ्र प्रहार करो। नील का मुख विकसित कमल के समान कान्तिमान था । उन्होंने पह्रा समूह की सी आकृति तथा कमल दल के सदृश नेत्रों वाले अश्रत्थामा को अपने बाणों से बींध डाला। उनके द्वारा घायल होकर अश्रत्थामा ने सहसा तीन तीखे भल्लों द्वारा अपने शत्रुनील के धनुष, ध्वज तथा छत्र को काट डाला। तब नील ढाल और सुन्दर तलवार हाथ मे लेकर उस रथ से कूद पड़े । जैसे पक्षी किसी मनचाही वस्तु को लेने के लिये झपट्टा मारता है, उसी प्रकार नील ने भी अश्रत्थामा के धड़ से उसका सिर उतार लेने का विचार किया। निष्पाप नरेश ! उस समय अश्रत्थामा ने मुस्कराते हुए से भल्ल मारकर उसके द्वारा नील के ऊँचे कंधों, सुन्दर नासिकाओं तथा कुण्डलों सहित मस्तक को धड़ से काट गिराया। पूर्ण चन्द्रमा के समान कान्तिमान् मुख और कमल दल के समान सुन्दर नेत्रवाले राजा नील बड़े ऊँचे कद के थे । उनकी अगकान्ति नील कमल दल के समान श्याम थी । वे अश्रत्थामा द्वारा मारे जाकर पृथ्वीपर गिर पड़े। आचार्य पुत्र के द्वारा प्रज्वलित तेजवाले राजा नील के मारे जाने पर पाण्डव सेना अत्यन्त व्याकुल और व्यथित हो उठी। आर्य ! उस समय समस्त पाण्डव महारथी यह सोचने लगे कि इन्द्रकुमार अर्जुन शत्रुओं के हाथ से हमारी रक्षा कैसे कर सकते है ? वे बलवान अर्जुन तो इस सेना के दक्षिण भाग में बचे-खुचे संशप्तकों और नारायणी सेना के सैनिकों का संहार कर रहे हैं। इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गत संशप्तकवधपर्व में नीलवध विषयक इकतीसवॉ अध्याय पूरा हुआ।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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