महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 32 श्लोक 1-19

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०९:२२, ५ जुलाई २०१५ का अवतरण ('==द्वात्रिंशो (32) अध्याय: द्रोणपर्व (संशप्‍तकवध पर्व )==...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

द्वात्रिंशो (32) अध्याय: द्रोणपर्व (संशप्‍तकवध पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: द्वात्रिंशो अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद

कौरव-पाण्‍डव सेनाओं का घमासान युद्ध, भीमसेन का कौरव महारथियो के साथ संग्राम, भयंकर संहार,पाण्‍डवों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण, अर्जुन और कर्ण का युद्ध

संजय कहते है – महाराज ! अपनी सेनाका वह विनाश भीमसेन से नहीं सहा गया । उन्‍होंने गुरूदेव को साठ और कर्ण को दस बाणों से घायल कर दिया। तब द्रोणाचार्य ने सीधे जाने वाले, तीखीधार से युक्‍त पैनेबाणों द्वारा शीघ्रतापूर्वक भीमसेन मर्मस्‍थानों पर आघात किया । वे भीमसेन के प्राणों का अन्‍त कर देना चाहते थे। इस आघात-प्रतिघात को निरन्‍तर जारी रखने की इच्‍छा से द्रोणाचार्य ने भीमसेन को छब्‍बीस, कर्ण ने बारह और अश्रत्‍थामा ने सात बाण मारे। तदनन्‍तर राजा दुर्योधन ने उनके ऊपर छ:बाणों द्वारा प्रहार किया । फिर महाबली भीमसेन ने उन सबको अपने बाणों द्वारा घायल कर दिया। उन्‍होंने द्रोण को पचास, कर्ण को दस, दुर्योधन को बारह और अश्‍वत्‍थामा को आठ बाण मारे। तत्‍पश्‍चात भयंकर गर्जना करते हुए भीमसेन रणक्षेत्र में उन सबका सामना किया । भीमसेन मृत्‍यु के तुल्‍य अवस्‍था में पहॅुच गये थे और अपने प्राणों का परित्‍याग करना चाहते थे । उसी समय अजातशत्रु युधिष्ठिर ने अपने योद्धाओं को यह कहकर आगे बढ़ने की आज्ञा दी कि तुम सब लोग भीमसेन की रक्षा करो । यह सुनकर वे अमित तेजस्‍वी वीरभीमसेन के समीप चले। सात्‍यकि आदि महारथी तथा पाण्‍डुकुमार माद्रीपुत्र नकुल-सहदेव– ये सभी पुरूषश्रेष्‍ठ वीर परस्‍पर मिलकर एक साथ अत्‍यन्‍त क्रोध में भरकर बड़े-बड़े धनुर्धरों से सुरक्षित हो द्रोणाचार्य की सेना को विदीर्ण कर डालने की इच्‍छा से उसपर टूट पडे़ । वे भीम आदि सभी महारथी अत्‍यन्‍त पराक्रमी थे। उस समय रथियों में श्रेष्‍ठ आचार्य द्रोणने घबराहट छोड़कर उन अत्‍यन्‍त बलवान समरभूमि में युद्ध करनेवाले महारथी वीरों को रोक दिया। परंतु पाण्‍डववीर मौतके भय को बाहर छोड़कर आपके सैनिकों पर चढ़ आये । घुड़सवार घुड़सवारों को तथा रथारोही योद्धा रथियों को मारने लगे। उस युद्ध में शक्ति और खगो के घातक प्रहार हो रहे थे । फरसो से मार-काट हो रही थी । तलवार खींचकर उसके द्वारा ऐसा भयंकर युद्ध हो रहा था कि उसका कटु परिणाम प्रत्‍यक्ष सामने आ रहा था। हाथियोंके संघर्ष मे अत्‍यन्‍त दारूण संग्राम होने लगा । कोई हाथी से गिरता था तो कोई घोड़े से ही औधे सिर धराशायी हो रहा था। आर्य ! उस युद्ध में कितने मनुष्‍य बाणों से विदीर्ण होकर रथ से नीचेगिर जते थे । कितने ही योद्धा कवचशून्‍य हो धरतीपर गिर पड़ते थे और सहसा कोई हाथी उनकी छातीपर पैर रखकर उनके मस्‍तकको भी कुचल देता था। दूसरे हाथियोंने भी दूसरे बहुत से गिरे हुए मनुष्‍यों को अपने पैरोंसे रौंद डाला । अपने दॉतों से धरती पर आघात करके बहुत से रथियोंको चीर डाला। कितने ही गजराज अपने दॉतों मेलगी हुई मनुष्‍यों की ऑतें लिये समरभूमि में सैकड़ों योद्धाओं को कुचलते हुए चक्‍कर लगा रहे थे। काले रंग के लोहमय कवच धारण करके रणभूमि में गिरे हुए कितने ही मनुष्‍यों, रथों, घोड़ो और हाथियों को बड़े-बड़े गजराजों ने मोटे नरकुलों के समान रौद डाला। बड़े-बड़े राजा काल संयोग से अत्‍यन्‍त दु:खदायिनी तथा गीध की पॉखरूपी बिछौनों से युक्‍त शययाओं पर लज्‍जापूर्वक सो रहे थे। वहां पिता रथ के द्वारा युद्ध के मैदान में आकर पुत्र का ही वध कर डालता था तो पुत्र भी मोहवश पिता के प्राण ले रहा था । इस प्रकार वहां मर्यादाशून्‍य युद्ध हो रहा था।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख