महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 145 श्लोक 22-41

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पंचत्वारिंशदधिकशततम (145) अध्याय: द्रोणपर्व (जयद्रथवध पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: पंचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 22-41 का हिन्दी अनुवाद


मानद ! बहुत से शुरवीर युद्ध कर रहे हैं, उधर सूर्य भी अस्ताचल पर जा रहे हैं। अतः मुझे संदेह यह होता है कि अर्जुन जयद्रथ तक नहीं पहुंच पायेंगे। कर्ण ! तुम मेरे, अश्वत्थामा के, मद्रराज शल्य के, कृपाचार्य के तथा अन्य शूरवीर महारथियों के साथ पूरा प्रयत्न करके रणक्षेत्र में अर्जून के साथ युद्ध करो। आर्य ! आप के पुत्र के ऐसा कहने पर राधानन्दन कर्ण ने कुरुश्रेष्ठ दुर्योधन से इस प्रकार कहा-। मानद ! सुदृढ़ लक्ष्य वाले वीर धनुर्धर भीमसेन ने संग्राम में अपने बाण समूहों द्वारा अनेक बार मेरे शरीर को अत्यन्त क्षत-विक्षत कर दिया है। मुझे खड़ा रहना चाहिये (भागना नहीं चाहिये), यह सोचकर ही इस समय मैं रणभूमि में ठहरा हुआ हूं। इस समय मेरा कोई भी अंग किसी प्रकार की चेष्टा नहीं कर रहा है। मैं बड़े-बड़े बाणों की आग से संतप्त हूं, तथापि यथाशक्ति युद्ध करूंगा; क्योंकि यह मेरा जीवन तुम्हारे लिये ही है। पाण्डवों के प्रधान वीर अर्जुन जैसे भी किसी तरह सिंधुराज को नहीं मार सकेंगे, वैसा प्रयत्न करूंगा। जब तक मैं युद्ध में तत्पर होकर पैने बाण छोड़ता रहूंगा, तब तक सव्य साची वीर धनंजय सिंधुराज को नहीं पा सकेंगे। कुरुनन्दन ! सदा मित्र का हित चाहने वाले भक्तिमान पुरुष को जो कार्य करना चाहिये, वह मैं करूंगा। विजय की प्राप्ति तो दैव के अधीन है। महाराज ! आज युद्धस्थल में आपका प्रिय करने के लिये मैं सिंधुराज की रक्षा के निमित्त पूरा प्रयत्न करूंगा। विजय तो दैव के अधीन है। पुरुषसिंह ! आज मैं अपने पुरुषार्थ का भरोसा करके तुम्हारे हित के लिये अर्जुन के साथ युद्ध करूंगा। विजय की प्राप्ति तो दैव के अधीन है। कुरुश्रेष्ठ ! आज सारी सेनाएं मेरे और अर्जुन दोनों के भयंकर एवं रोमान्चकारी युद्ध को देखें। जब रणक्षेत्र में कर्ण और दुर्योधन इस तरह वार्तालाप कर रहे थे, उस समय अर्जुन ने अपने पैने बाणों द्वारा आपकी सेना का संहार आम्भ किया। उन्होंने तीखे बाणों से रणभूमि में कभी पीठ न दिखाने वाले शूरवीरों की परिध के समान सुदृढ़ तथा हाथी की सूंड़ के समान मोटी भुजाओं को काट डाला। महाबाहु अर्जुन ने सब ओर अपने तीखे बाणों से शत्रुओं के मस्तक, हाथियों के शुण्डदण्डों, घोड़ों की गर्दनों तथा रथ के धुरों को भी खण्डित कर दिया। अर्जुन ने हाथों में प्रास और तोमर लिये खून से रंगे हुए घुड़सवारों में से प्रत्येक के अपने छुरों द्वारा दो-दो और तीन-तीन टुकड़े कर डाले। बड़े-बड़े हाथी और घोड़े सब ओर धराशायी होने लगे। ध्वज, छत्र, धनुष, चंवरतथा योद्धाओं के मस्तक कट-कट कर गिरने लगे। जैसे प्रचण्ड अग्नि घास-फूस के जंगल को जला डालती है, उसी प्रकार अर्जुन ने आपकी सेना को दग्ध करते हुए थोड़ी ही देर में वहां की भूमि को रक्त से आप्लावित कर दिया। सत्यपराक्रमी, बलवान एवं दुर्धर्ष वीर अर्जुन ने आपकी सेना के अधिकांश योद्धाओं को मारकर सिंधुराज पर आक्रमण किया। भरतश्रेष्ठ ! भीमसेन और सात्यकि से सुरक्षित अर्जुन उस समय प्रज्वलित अग्नि के समान प्रकाशित हो रहे थे। अर्जुन को इस प्रकार बल पराक्रम की सम्पत्ति से युक्त होकर युद्ध के लिये डटा हुआ देख आपकी सेना के श्रेष्ठ पुरुष एवं महाधनुर्धर वीर सहन न कर सके।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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