एकोननवतितम (89) अध्याय: आश्वमेधिकपर्व (अनुगीता पर्व)
महाभारत: आश्वमेधिकपर्व: एकोननवतितम अध्याय: श्लोक 19-38 का हिन्दी अनुवाद
यह सुनकर कुरुश्रेष्ठ युधिष्ठिर भाइयों सहित बहुत प्रसन्न हुए और ब्राह्मणों को उन्होंने यज्ञ के लिये एक – एक करोड़ की तिगुनी दक्षिणा दी । महाराज मरुत्त के मार्ग का अनुसरण करने वाले राजा युधिष्ठिर ने उस समय जैसा महान् त्याग किया था, वैसा इस संसार में दूसरा कोई राजा नहीं कर सकेगा। विद्वान् महर्षि व्यास ने वह सुवर्ण राशि लेकर ब्राह्मणों को दे दी ओर उन्होंने चार भाग करके उसे आपस में बांट लिया।इस प्रकार पृथ्वी के मूल्य के रूप में वह सुवर्ण देकर राजा युधिष्ठिर अपने भाइयों सहित बहुत प्रसन्न हुए । उनके सारे पाप धुल गये और उन्होंने स्वर्ग पर अधिकार प्राप्त कर लिया।उस अन्नत सुवर्ण राशि को पाकर ऋत्विजों ने बड़े उत्साह और आनन्द के साथ उसे ब्राह्मणों को बांट दिया।यज्ञशाला में भी जो कुछ सुवर्ण या सोने के आभूषण, तोरण, यूप, घड़े, बर्तन और ईंटें थीं, उन सबको भी युधिष्ठिर की आज्ञा लेकर ब्राह्मणों ने आपस में बांट लिया।ब्राह्मणों के लेने के बाद जो धन पड़ा रह गया, उसे क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र तथा मलेच्छा जाति के लोग उठा ले गये।तदनन्तर सब ब्राह्मण प्रसन्नतापूर्वक अपने घरों को गये । बुद्धिमान धर्मराज युधिष्ठिर ने उन सबको उस धन के द्वारा पूर्णत: तृप्त कर दिया था।उस महान् सुवर्ण राशि में से महातेजस्वी भगवान् व्यास ने जो अपना भाग प्राप्त किया था, उसे उन्होंने बड़े आदर के साथ कुन्ती को भेंट कर दिया।श्वशुर की ओर से प्रेमपूर्वक मिले हुए उस धन को पाकर कुन्ती देवी मन – ही – मन बहुत प्रसन्न हुईं और उसके द्वारा उन्होंने बड़े – बड़े सामूहिक पुण्य – कार्य किये।यज्ञ के अन्त में अवभृथ स्नान करते पाप रहित हुए राजा युधिष्ठिर अपने भाइयों से सम्मानित हो इस प्रकार शोभा पाने लगे, जैसे देवताओं से पूजित देवराज इन्द्र सुशोभित होते हैं।महाराज ! वहां आये हुए समस्त भूपालों से घिरे हुए पाण्डव लोग ऐसी शोभा पा रहे थे, मानो तारों से घिरे हुए ग्रह सुशोभित हों।तदनन्तर पाण्डवों यज्ञ में आये हुए राजाओं को भी तरह – तरह के रत्न, हाथी, घोड़े, आभूषण, स्त्रियां, वस्त्र और सुवर्ण भेंट किये।राजन् ! उस अन्नत धन राशि को भूपाल मण्डल में बांटते हुए कुन्तीकुमार युधिष्ठिर कुबेर के समान शोभा पाते थे।तत्पश्चात् वीर राजा बभ्रुवाहन को अपने पास बुलाकर राजा ने उसे बहुत – सा धन देकर विदा किया।भरतश्रेष्ठ ! अपनी बहिन दु:शला की प्रसन्नता के लिये बुद्धिमान् युधिष्ठिर ने उसके बालक पौत्र को पिता के राज्य पर अभिषिक्त कर दिया।जितेन्द्रीय कुरुराज युधिष्ठिर ने सब राजाओं को अच्छी तरह धन दिया और उनका विशेष सत्कार करके उन्हें विदा कर दिया।महाराज ! इसके बाद महात्मा भगवान् श्रीकृष्ण, महाबली बलदेव तथा प्रद्युम्न आदि अन्यान्य सहस्त्रों वृष्णि वीरों की विधिवत् पूजा करके भाइयों सहित शत्रु दमन महातेजस्वी राजा युधिष्ठिर ने उन सबको विदा किया।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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