एकोननवतितम (89) अध्याय: आश्वमेधिकपर्व (अनुगीता पर्व)
महाभारत: आश्वमेधिकपर्व: एकोननवतितम अध्याय: श्लोक 39-44 का हिन्दी अनुवाद
इस प्रकार बुद्धिमान धर्मराज युधिष्ठिर का वह यज्ञ पूर्ण हुआ । उसमें अन्न, धन और रत्नों के ढेर लगे हुए थे । देवताओं के मन में अतिशय कामना उत्पन्न महाराज युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ में एक नेवले का आगमन करने वाली वस्तुओं का सागर लहराता था। कितने ही ऐसे तालाब थे, जिनमें घी की कीचड़ जमी हुई थी और अन्न के तो पहाड़ ही खड़े थे । भरतभूषण ! रस से भरी कीचड़ रहित नदियां बहती थीं।( पीपल और सोंठ मिलाकर जो मूंग का जूस तैयार किया जाता है, उसे ‘खाण्डव’ कहते हैं । उसी में शक्कर मिला हुआ हो तो वह ‘खाण्डवराग’ कहा जाता है । ) भक्ष्य-भोज्य पदार्थ और खाण्डवराग कितनी मात्रा में बनाये और खाये जाते हैं तथा कितने पशु वहां बांधें हुए थे, इसकी कोई सीमा वहां के लोगों को नहीं दिखायी देती थी। उस यज्ञ के भीतर आये हुए सब लोग मत्त-प्रमत्त और आन्नद विभोर हो रहे थे । युवतियां बड़ी प्रसन्नता के साथ वहां विचरण करती थीं । मृदंगों और शंखों की ध्वनियों से उस यज्ञ शाला की मनोरमता और भी बढ़ गयी थी।‘जिसकी जैसी इच्छा हो, उसको वही वस्तु दी जाय । सबको इच्छानुसार भोजन कराया जाय’ – यह घोषणा दिन – रात जारी रही थी – कभी बन्द नहीं होती थी । ह्ष्ट – पुष्ट मनुष्यों से भरे हुए उस यज्ञ – महोत्सव की चर्चा नाना देशों के निवासी मनुष्य बहुत दिनों तक करते रहे।भरतश्रेष्ठ राजा युधिष्ठिर ने उस यज्ञ में धन की मूसलाधार वर्षा की । सब प्रकार की कामनाओं, रत्नों और रसों की भी वर्षा की । इस प्रकार पाप रहित और कृतार्थ होकर उन्होंने अपने नगर में प्रवेश किया ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत अश्वमेधिक पर्व के अन्तर्गत अनुगीता पर्व में अश्वमेध की समाप्ति विषयक नवासींवा अध्याय पूरा हुआ।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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