सप्तसप्तत्यधिकशततम (177) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्कचवध पर्व )
महाभारत: द्रोणपर्व: सप्तसप्तत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 20-40 का हिन्दी अनुवाद
राजन! राक्षसों का विनाश करने वाले भीम ने सहसा निकट जाकर सैनिक गणों सहित राक्षस राज अलायुध को अपने बाणों की वर्षा से ढक दिया। शत्रुओं का दमन करने वाले नरेश! उसी प्रकार अलायुध भी कुन्तीकुमार भीमसेन पर शिला पर तेज किये हुए बाणों की बारंबार वर्षा करने लगा। आपके पुत्रों की विजय चाहने वाले वे समस्त भयंकर राक्षस हाथों में नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्र लेकर भीमसेन पर टूट पड़े। बहुत से योद्धाओं की मार खाकर महाबली भीमसेन ने उन सबको पाँच-पाँच तीखे बाणों से घायल कर दिया। भीमसेन के बाणें की चोट खाकर वे क्रूरबुद्धि राक्षस भयंकर चीत्कार करने और दसों दिशाओं में भागने लगे। भीम के द्वारा उन राक्षसों को भयभीत होते देख महाबली राक्षस अलायुध ने बड़े वेग से भीमसेन पर धावा किया और उन्हें बाणों से ढक दिया। तब भीमसेन ने समरागंण में तीखी धारवाले बाणों से अलायुध को क्षत-विक्षत कर दिया। अलायुध ने भीमसेन के चलाये हुए कुछ बाणों को रणभूमि में काट दिया और कुछ बाणों को बड़ी शीघ्रता के साथ हाथ से पकड़ लिया। भयंकर पराक्रमी भीमसेन ने राक्षसराज अलायुध को ऐसा पराक्रम करते देख उस समय उसके ऊपर वज्रपात के समान अपनी भयंकर गदा बडे़ वेग से चलायी। ज्वाला से व्याप्त हुई उस गदा को वेग से आती देख अलायुध ने उस पर अपनी गदा से आघात किया। फिर वह गदा भीम के पास ही लौट आयी। फिर कुन्तीकुमार भीमसेन ने राक्षसराज अलायुध पर बाणों की झड़ी लगा दी, परंतु उस राक्षस ने अपने तीखे बाणों द्वारा उनके ये सभी बाण व्यर्थ कर दिये। उस रात में भयंकर रूपधारी सम्पूर्ण राक्षसों ने भी राक्षसराज अलायुध की आज्ञा से कितने ही रथों और हाथियों को नष्ट कर दिया। उन राक्षसों से अत्यन्त पीडि़त होकर पान्चाल और सृंजयवंशी क्षत्रिय तथा उनके घोड़े और बड़े-बड़े हाथी भी शान्ति न पा सके। उस महाभयंकर वर्तमान महायुद्ध को देखकर कमलनयन भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन से इस प्रकार कहा- ‘पाण्डुनन्दन! देखो, महाबाहु भीमसेन राक्षसराज अलायुध के वश में पड़ गये हैं। तुम शीघ्र उन्हीं के मार्ग पर चलो। कोई दूसरा विचार मन में न लाओ। ‘धृष्टद्युम्न, शिखण्डी, साथ रहने वाले युधामन्यु और उत्तमौजा तथा द्रौपदी के पाँचो पुत्र- ये सभी महारथी एक साथ होकर कर्ण पर धावा करें। ‘पाण्डु पुत्र! नकुल, सहदेव और पराक्रमी सात्यकि- ये तुम्हारे आदेश से अन्य राक्षसों का वध करें। ‘महाबाहु! तुम भी द्रोण जिसके अगुआ हैं, इस कौरव सेना को आगे बढ़ने से रोको, क्योंकि नरव्याघ्र! पाण्डव सेना पर महान् भय आ पहुँचा है’। श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर वे सभी महारथी उने आदेश के अनुसार रणभूमि में वैकर्तन कर्ण तथा उन राक्षसों का सामना करने के लिये चले गये। तदनन्तर प्रतापी राक्षसराज अलायुध ने धनुष को पूर्णतः खींचकर छोड़े गये विषधर सर्प के समान भयंकर बाणों द्वारा भीमसेन के धनुष को काट डाला। साथ ही, उस महाबली निशाचर ने युद्ध में भीमसेन के देखते-देखते पैने बाणों द्वारा उनके सारथि और घोड़ों को भी मार डाला।घोड़ों और सारथि के मारे जने पर रथ की बैठक से नीचे उतरकर गर्जते हुए भीमसेन ने उस राक्षस पर अपनी भारी एवं भयंकर गदा दे मारी।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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