महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 179 श्लोक 18-35

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Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०५:४३, ७ जुलाई २०१५ का अवतरण
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एकोनाशीत्यधिकशततम (179) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्‍कचवध पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: एकोनाशीत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 18-35 का हिन्दी अनुवाद


संजय कहते हैं- राजन्! जब अस्त्रवेत्ताओं में श्रेष्ठ कर्ण घटोत्कच से अपनी विशेषता न दिखा सका, तब उसने एक भयंकर अस्त्र प्रकट किया। उस अस्त्र के द्वारा उसने घटोत्कच के रथ को घोड़े और सारथिसहित नष्ट कर दिया।। रथहीन होने पर घटोत्कच शीघ्र ही वहाँ से अदृश्य हो गया। धृतराष्ट्र ने पूछा- संजय! बताओ, माया युद्ध करने वाले उस राक्षस के तत्काल अदृश्य हो जाने पर मेरे पुत्रों ने क्या सोचा और क्या किया।

संजय ने कहा- महाराज! राक्षसराज घटोत्कच को अदृश्य हुआ जानकर समस्त कौरव योद्धा चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगे ‘मायाद्वारा युद्ध करने वाला यह निशाचर जब रणभूमि में स्वयं दिखायी ही नहीं देता है, तब कर्ण को कैसे नहीं मार डालेगा’। तब शीघ्रतापूर्वक विचित्र रीति से अस्त्रयुद्ध करने वाले कर्ण ने अपने बाणों के समूह से सम्पूर्ण दिशाओं को ढक दिया। उस समय बाणों से आकाश में अँधेरा छा गया था तो भी वहाँ कोई प्राणी ऊपर से मरकर गिरा नहीं। सूतपुत्र कर्ण जब शीघ्रतापूर्वक बाणों द्वारा समूचे आकाश को आच्छादित कर रहा था, उस समय यह नहीं दिखायी देता था कि वह कब अपने हाथ की अंगुलियों से तरकस को छूता है, कब बाण निकालता है और कब उसे धनुष पर रखता है। तदनन्तर हमने अन्तरिक्ष में उस राक्षस द्वारा रची गयी घोर, दारूण एवं भयंकर माया देखी। पहले तो वह लाल रंग के बादलों के रूप में प्रकाशित हुई, फिर आग की भयंकर लपटों के समान प्रज्वलित हो उठी। कौरवराज! तत्पश्चात् उससे बिजलियाँ प्रकट हुई और जलती हुई उल्काएँ गिरने लगी। साथ ही, हजारों दुन्दुभियों के बजने के समान बड़ी भयानक आवाज होने लगी। फिर उससे सोने के पंखवाले बाण गिरने लगे। शक्ति, ऋष्टि, प्रास, मुसल आदि आयुध, फरसे, तेल में साफ किये गये खडगए चमचमाती हुई धारवाले तोमर, पट्टिश, तेजस्वी परिघ, लोहे से बँधी हुई विवित्र गदा, तीखी धारवाले शूल, सोने के पत्र से मढी गयी भारी गदाएँ और शतध्नियाँ चारों ओर प्रकट हाने लगी। जहाँ-तहाँ हजारों बड़ी-बड़ी शिलाएँ गिरने लगीं, बिजलियों सहित वज्र पड़ने लगे और अग्नि के समान दीप्तिमान् कितने ही चक्रों तथा सैकड़ों छुरों का प्रादुर्भाव होने लगा। शक्ति, प्रस्तर, फरसे, प्रास, खडग, वज्र, बिजली और मुद्ररों की गिरती हुई उस ज्वालापूर्ण विशाल वर्षा को कर्ण अपने बाणसमूहों द्वारा नष्ट न कर सका। बाणों से घायल होकर गिरते हुए घोड़ों, वज्र से आहत होकर धराशायी होते हुंए हाथियों तथा शिलाओं की मार खाकर गिरते हुए महारथियों का महान् आर्तनाद वहाँ सुनायी देता था। घटोत्कच के द्वारा चलाये हुए अत्यन्त भयंकर एवं नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों के प्रहार से हताहत हुई दुर्योधन की सेना आर्त होकर चारों ओर घूमती और चक्कर काटती दिखायी देने लगी। साधारण सैनिक विषाद की मूर्ति बनकर हाहाकार करते हुए सब ओर भाग-भागकर छिपने लगे, परंतु जो पुरूषों में श्रेष्ठ वीर थे, वे आर्यपुरूषों के धर्म पर स्थित रहने के कारण उस समय भी युद्ध से विमुख नहीं हुए। राक्षस द्वारा की हुई बड़े-बड़े अस्त्र-शस्त्रों की वह अत्यन्त घोर एवं भयानक वर्षा तथा अपने सैन्यसमूहों का विनाश देखकर आपके पुत्रों के मन में बड़ा भारी भय समा गया। नरेन्द्र! अग्नि के समान जलती हुई जीभ और भयंकर शब्दवाली सैकड़ों गीदड़ियों को चीत्कार करते तथा राक्षस-समूहों को गर्जते देखकर आपके सैनिक व्यथित हो उठे। पर्वत के समान विशाल शरीर वाले और प्रज्वलित जिव्हा से आग उगलने वाले तीखी दाढ़ों से युक्त भयानक राक्षस हाथों में शक्ति लिये आकाश में पहुँचकर मेघों के समान कौरवदल पर शस्त्रों की उग्र वर्षा करने लगे।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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