महाभारत आश्रमवासिक पर्व अध्याय 1 श्लोक 19-27

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०५:४९, ८ जुलाई २०१५ का अवतरण ('==प्रथम (1) अध्याय: आश्रमवासिकापर्व (आश्रमवास पर्व)== <div s...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

प्रथम (1) अध्याय: आश्रमवासिकापर्व (आश्रमवास पर्व)

महाभारत: आश्रमवासिकापर्व: प्रथम अध्याय: श्लोक 19-27 का हिन्दी अनुवाद

राजा धृतराष्ट्र की सेवा में पहले की ही भाँति उक्त अवसरों पर भी रसोई के काम में निपुण आरालिक[१] सूपकार[२] और रागखण्डविक[३] मौजूद रहते थे। पाण्डव लोग धृतराष्ट्र को यथोचित रूप से बहुमूल्य वस्त्र और नाना प्रकार की मालाएँ भेंट करते थे। वे उनकी सेवा में पहले की ही भाँति सुखभोगप्रद फल के गूदे, हलके पानक (मीठे शर्बत) और अन्यान्य विचित्र प्रकार के भोजन प्रस्तुत करते थे। भिन्न भिन्न देशों से जो-जो भूपाल वहाँ पधारते थे, वे सब पहले की ही भाँति कौरवराज धृतराष्ट्र की सेवा में उपस्थित होते थे। पुरूषप्रवर ! कुन्ती, द्रौपदी, यशस्विनी सुभद्रा, नागकन्या उलूपी, देवी चित्रांगदा, धृष्टकेतु की बहिन तथा जरासंध की पुत्री - ये तथा कुरूकुल की दूसरी बहुत सी स्त्रियाँ दासी की भाँति सुबलपुत्री गान्धारी की सेवा में लगी रहती थीं। राजा युधिष्ठिर सदा भाईयों को यह उपदेश देते थे कि ‘बन्धुओ ! तुम ऐसा बर्ताव करो, जिससे अपने पुत्रों से बिछुड़े हुए इन राजा धृतराष्ट्र को किंचिन्मात्र भी दुःख न प्राप्त हो’। धर्मराज का यह सार्थक वचन सुनकर भीमसेन को छोड़ अन्य सभी भाई धृतराष्ट्र का विशेष आदर सत्कार करने थे। वीरवर भीमसेन के हृदय से कभी भी यह बात दूर नहीं होती थी कि जूए के समय जो कुछ भी अनर्थ हुआ था, वह धृतराष्ट्र की ही खोटी बुद्धि का परिणाम था।

इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्रमवासिकापर्व के अन्तर्गत आश्रमवासपर्व में पहला अध्याय पूरा हुआ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ‘अरा‘ नामक शस्त्र से काटकर बनाये जाने के कारण साग-भाजी आदि को ‘अरालू’ कहते हैं । उसको सुन्दर रीति से तैयार करने वाले रसोईये ‘आरालिक’ कहलाते हैं ।
  2. दाल आदि बनाने वाले सामान्यतः सभी रसोईयों को ‘सूपकार’ कहते हैं ।
  3. पीपल, सोंठ और चीनी मिलाकर मूँग का रसा तैयार करने वाले रसोईये ‘रागखाण्डविक’ कहलाते हैं।

संबंधित लेख