श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 6 श्लोक 25-40
दशम स्कन्ध: षष्ठ अध्याय (पूर्वाध)
पृश्निगर्भ तेरी बुद्धि की और परमात्मा भगवान् तेरे अहंकार की रक्षा करें। खेलते समय गोविन्द रक्षा करें, सोते समय माधव रक्षा करें । चलते समय श्रीपति तेरी रक्षा करें। भोजन के समय समस्त ग्रहों को भयभीत करने वाले यज्ञभोक्ता भगवान् तेरी रक्षा करें । डाकिनी, राक्षसी और कूष्माण्डा आदि बालग्रह; भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष, राक्षस और विनायक, कोटरा, रेवती, ज्येष्ठा, पूतना, मातृका आदि; शरीर, प्राण तथा इन्द्रियों का नाश करने वाले उन्माद (पागलपन) एवं अपस्मार (मृगी) आदि रोग; स्वप्न में देखे हुए महान् उत्पात, वृद्धग्रह और बालग्रह आदि—ये सभी अनिष्ट विष्णु का नामोच्चारण करने से भयभीत होकर नष्ट हो जायँ ।
श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित्! इस प्रकार गोपियों ने प्रेमपाश में बँधकर भगवान् श्रीकृष्ण की रक्षा की। माता यशोदा ने अपने पुत्र को स्तन पिलाया और फिर पालने पर सुला दिया । इसी समय नन्दबाबा और उनके साथी गोप मथुरा से गोकुल में पहुँचे। जब उन्होंने पूतना का भयंकर शरीर देखा, तब वे आश्चर्यचकित हो गये । वे कहने लगे—‘यह तो बड़े आश्चर्य की बात है, अवश्य ही वसुदेव के रूप में किसी ऋषि ने जन्म ग्रहण किया है। अथवा सम्भव है वसुदेवजी पूर्वजन्म में कोई योगेश्वर रहे हों; क्योंकि उन्होंने जैसा कहा था, वैसा ही उत्पात यहाँ देखने में आ रहा है । तब तक व्रजवासियों ने कुल्हाड़ी से पूतना के शरीर के टुकड़ें-टुकड़े कर डाला और गोकुल से दूर ले जाकर लकड़ियों पर रखकर जला दिया । जब उसका शरीर जलने लगा, तब उसमें से ऐसा धुँआ निकला, जिसमें से अगरकी-सी सुगन्ध आ रही थी। क्यों न हो—भगवान् ने जो उसका दूध पी लिया था—जिससे उसके सारे पाप तत्काल ही नष्ट हो गये थे । पूतना एक राक्षसी थी। लोगों के बच्चों को मार डालना और उनका खून पी जाना—यही उसका काम था। भगवान् को भी उसने मार डालने की इच्छा से ही स्तन पिलाया था। फिर भी उसे वह परमगति मिलीं, जो सत्पुरुषों को मिलती है । ऐसी स्थिति में जो परब्रम्हा परमात्मा भगवान् श्रीकृष्ण को श्रद्धा और भक्ति से माता के समान अनुरागपूर्वक अपनी प्रिय-से-प्रिय वस्तु और उनको प्रिय लगने वाली वस्तु समर्पित करते हैं उनके सम्बन्ध में तो कहना ही क्या । भगवान् के चरणकमल सबके वन्दनीय ब्रम्हा, शंकर आदि देवताओं के द्वारा भी वन्दित हैं। वे भक्तों के ह्रदय की पूँजी हैं। उन्हीं चरणों से भगवान् ने पूतना का शरीर दबाकर उनका स्तनपान किया था । माना कि वह राक्षसी थी, परंतु उसे उत्तम-से-उत्तम-गति—जो माता को मिलनी चाहिए—प्राप्त हई। फिर जिनके स्तन का दूध भगवान् ने बड़े प्रेम से पिया, उन गौओं और माताओं की बात ही क्या है । परीक्षित्! देवकीनन्दन भगवान् कैवल्य आदि सब प्रकार की मुक्ति और सब कुछ देने वाले हैं। उन्होंने व्रज की गोपियों और गौओं का वह दूध, जो भगवान् के प्रति पुत्र-भाव होने से वात्सल्य-स्नेह की अधिकता के कारण स्वयं ही झरता रहता था, भरपेट पान किया । राजन्! वे गौएँ और गोपियाँ, जो नित्य-निरन्तर भगवान् श्रीकृष्ण को अपने पुत्र के ही रूप में देखतीं थीं, फिर जन्म-मृत्युरूप संसार के चक्र में कभी नहीं पड़ सकतीं; क्योंकि यह संसार तो अज्ञान के कारण ही है ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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