श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 72 श्लोक 38-48
दशम स्कन्ध: द्विसप्ततितमोऽध्यायः(72) (उत्तरार्ध)
इस प्रकार जब गदाएँ चूर-चूर हो गयीं, तब दोनों वीर क्रोध में भरकर अपने घूँसों से एक-दूसरे को कुचल डालने की चेष्टा करने लगे। उनके घूँसे ऐसी चोट करते, मानो लोहे का घन गिर रहा हो। एक-दूसरे पर खुलकर चोट करते हुए दो हाथियों की तरह उनके थप्पड़ों और घूँसों का कठोर शब्द बिजली की कड़-कड़ाहट के समान जान पड़ता था । परीक्षित्! जरासन्ध और भीमसेन दोनों की गदा-युद्ध में कुशलता, बल और उत्साह समान थे। दोनों की शक्ति तनिक भी क्षीण नहीं हो रही थी। इस प्रकार लगातार प्रहार करते रहने पर भी दोनों में से किसी की जीत या हार न हुई । दोनों वीर रात के समय मित्र के समान रहते और दिन में छूटकर एक-दूसरे पर प्रहार करते और लड़ते। महाराज! इस प्रकार उनके लड़ते-लड़ते सत्ताईस दिन बीत गये ।
प्रिय परीक्षित्! अट्ठाईसवें दिन भीमसेन ने अपने ममेरे भाई श्रीकृष्ण से कहा—‘श्रीकृष्ण! मैं युद्ध में जरासन्ध को जीत नहीं सकता । भगवान् श्रीकृष्ण जरासन्ध के जन्म और मृत्यु का रहस्य जानते थे और यह भी जानते थे कि जरा राक्षसी ने जरासन्ध के शरीर के दो टुकड़ों को जोड़कर इन्हें जीवन-दान दिया है। इसलिये उन्होंने भीमसेन के शरीर में अपनी शक्ति का संचार किया और जरासन्ध के वध का उपाय सोचा । परीक्षित्! जब भगवान् का ज्ञान अबाध है। अब उन्होंने उसकी मृत्यु का उपाय जानकर एक वृक्ष की डाली को बीचोबीच से चीर दिया और इशारे से भीमसेन को दिखाया ।वीरशिरोमणि एवं परम शक्तिशाली भीमसेन ने भगवान् श्रीकृष्ण का अभिप्राय समझ लिया और जरासन्ध के पैर पकड़कर उसे धरती पर दे मारा । फिर उसके एक पैर को अपने पैर के नीचे दबाया और दूसरे को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया। इसके बाद भीमसेन ने उसे गुदा की ओर से इस प्रकार चीर डाला, जैसे गजराज वृक्ष की डाली चीर डाले । लोगों ने देखा कि जरासन्ध के शरीर के दो टुकड़े हो गये हैं, और इस प्रकार उनके एक-एक पैर, जाँघ, अण्डकोश, कमर, पीठ, स्तन, कंधा, भुजा, नेत्र, भौंह और कान अलग-अलग हो गये हैं ।
मगधराज जरासन्ध की मृत्यु हो जाने पर वहाँ की प्रजा बड़े जोर से ‘हाय! हाय!’ पुकारने लगी। भगवान् श्रीं श्रीकृष्ण और अर्जुन ने भीमसेन का आलिंगन करके उनका सत्कार किया । सर्वशक्तिमान् भगवान् श्रीकृष्ण के स्वरुप और विचारों को कोई समझ नहीं सकता। वास्तव में वे ही समस्त प्राणीयों के जीवनदाता हैं। उन्होंने जरासन्ध के राजसिंहासन पर उसके पुत्र सहदेव का अभिषेक कर दिया और जरासन्ध ने जिन राजाओं को कैदी बना रखा था, उन्हें कारागार से मुक्त कर दिया ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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