श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 39 श्लोक 1-13

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दशम स्कन्ध: एकोनचत्वरिंशोऽध्यायः (39) (पूर्वाध)

श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: एकोनचत्वरिंशोऽध्यायः श्लोक 1-13 का हिन्दी अनुवाद

श्रीशुकदेवजी कहते हैं—भगवान् श्रीकृष्ण और बलरामजी ने अक्रूरजी का भलीभाँति सम्मान किया। वे आराम से पलँग पर बैठ गये। उन्होंने मार्ग में जो-जो अभिलाषाएँ की थी, वे सब पूरी हो गयीं । परीक्षित्! लक्ष्मी के आश्रयस्थान भगवान् श्रीकृष्ण के प्रसन्न होने पर ऐसी कौन-सी वस्तु है, जो प्राप्त नहीं हो सकती ? फिर भी भगवान् के परमप्रेमी भक्तजन किसी भी वस्तु की कामना नहीं करते ।

देवकीनन्दन भगवान् श्रीकृष्ण ने सायंकाल का भोजन करने के बाद अक्रूरजी के पास जाकर अपने स्वजन-सम्बन्धियों के साथ कंस के व्यवहार और उसके अगले कार्यक्रम के सम्बन्ध में पूछा ।

भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा—चाचाजी! आपका ह्रदय बड़ा शुद्ध है। आपको यात्रा में कोई कष्ट तो नहीं हुआ ? स्वागत है। मैं आपकी मंगलकामना करता हूँ। मथुरा के हमारे आत्मीय सुहृद्, कुटुम्बी तथा अन्य सम्बन्धी सब सकुशल और स्वस्थ हैं न ? हमारा नाममात्र का मामा कंस तो हमारे कुल के लिये एक भयंकर व्याधि है। जब तक उनकी बढ़ती हो रही है, तबतक हम अपने वंशवालों और उनके बाल-बच्चों का कुशल-मंगल क्या पूछें । चाचाजी! हमारे लिये यह बड़े खेद की बात है कि मेरे ही कारण मेरे निरपराध और सदाचारी माता-पिता को अनेकों प्रकार की यातनाएँ झेलनी पड़ी—तरह-तरह के कष्ट उठाने पड़े। और तो क्या कहूँ, मेरे ही कारण उन्हें हथकड़ी-बेड़ी से जकड़कर जेल में डाल दिया गया तथा मेरे ही कारण उनके बच्चे भी मार डाले गये । मैं बहुत दिनों से चाहता था कि आप-लोगों में से किसी-न-किसी का दर्शन हो। यह बड़े सौभाग्य की बात है कि आज मेरी वह अभिलाषा पूरी हो गयी। सौम्य-स्वभाव चाचाजी! अब आप कृपा करके यह बतलाइये कि आपका शुभागमन किस निमित्त हुआ ?

श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित्! जब भगवान् श्रीकृष्ण ने अक्रूरजी से इस प्रकार प्रश्न किया, तब उन्होंने बतलाया कि ‘कंस ने तो सभी यदुवंशियों से घोर वैर ठान रखा है। वह वसुदेवजी को मार डालने का भी उद्दम कर चुका है’ । अक्रूरजी ने कंस का सन्देश और जिस उद्देश्य से उसने स्वयं अक्रूरजी को दूत बनाकर भेजा था और नारदजी ने जिस प्रकार वसुदेवजी के घर श्रीकृष्ण के जन्म लेने का वृतान्त उनको बता दिया था, सो सब कह सुनाया । अक्रूरजी की यह बात सुनकर विपक्षी शत्रुओं का दमन करने वाले भगवान् श्रीकृष्ण और बलरामजी हँसने लगे और इसके बाद उन्होंने अपने पिता नन्दजी को कंस की आज्ञा सुना दी । तब नन्दबाबा ने सब गोपों को आज्ञा दी कि ‘सारा गोरस एकत्र करो। भेंट की सामग्री ले लो और छकड़े जोड़ो । कल प्रातःकाल ही हम सब मथुरा की यात्रा करेंगे और वहाँ चलकर राजा कंस को गोरस देंगे। वहाँ एक बहुत बड़ा उत्सव हो रहा है। उसे देखने के लिये देश की सारी प्रजा इकट्ठी हो रही है। हमलोग भ उसे देखेंगे।’ नन्दबाबा ने गाँव के कोतवाल के द्वारा यह घोषणा सारे व्रज में करवा दी ।

परीक्षित्! जब गोपियों ने सुना कि हमारे मनमोहन श्यामसुन्दर और गौरसुन्दर बलरामजी को मथुरा ले जाने के लिये अक्रूरजी व्रज में आये हैं तब उनके ह्रदय में बड़ी व्यथा हुई। वे व्याकुल हो गयीं ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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