श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 79 श्लोक 29-34

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दशम स्कन्ध: एकोनाशीतितमोऽध्यायः(79) (उत्तरार्ध)

श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: एकोनाशीतितमोऽध्यायः श्लोक 29-34 का हिन्दी अनुवाद


भगवान् बलरामजी ने निश्चय किया की इनका प्रारब्ध ऐसा ही है; इसलिये उसके सम्बन्ध में विशेष आग्रह न करके वे द्वारका लौट गये। द्वारका में उग्रसेन आदि गुरुजनों तथा अन्य सम्बन्धियों ने बड़े प्रेम से आगे आकर उनका स्वागत किया । वहाँ से बलरामजी फिर नैमिषारण्य क्षेत्र में गये। वहाँ ऋषियों ने विरोधभाव से—युद्धादि से निवृत्त बलरामजी के द्वारा बड़े प्रेम से सब प्रकार के यज्ञ कराये। परीक्षित्! सच पूछो तो जितने भी यज्ञ हैं, वे बलरामजी के अंग ही हैं। इसलिये उनका यह यज्ञानुष्ठान लोकसंग्रह के लिये ही था । सर्वसमर्थ भगवान् बलराम ने उन ऋषियों को विशुद्ध तत्त्वज्ञान का उपदेश किया, जिससे वे लोग इस सम्पूर्ण विश्व को अपने-आप में और अपने-आपको सारे विश्व में अनुभव करने लगे । इसके बाद बलरामजी ने अपनी पत्नी रेवती के साथ यज्ञान्त-स्नान किया और सुन्दर-सुन्दर वस्त्र तथा आभूषण पहनकर अपने भाई-बन्धु तथा स्वजन-सम्बन्धियों के साथ इस प्रकार शोभायमान हुए, जैसे अपनी चन्द्रिका एवं नक्षत्रों के साथ चन्द्रदेव होते हैं । परीक्षित्! भगवान् बलराम स्वयं अनन्त हैं। उनका स्वरुप मन और वाणी के परे हैं। उन्होंने लीला के लिये ही यह मनुष्यों का-सा शरीर ग्रहण किया है। उन बलशाली बलरामजी के ऐसे-ऐसे चरित्रों की गिनती भी नहीं की जा सकती । जो पुरुष अनन्त, सर्वव्यापक, अद्भुतकर्मा भगवान् बलरामजी के चरित्रों का सायं-प्रातः स्मरण करता है, वह भगवान् का अत्यन्त प्रिय हो जाता है ।






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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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