द्वितीय (2) अध्याय: मौसल पर्व
महाभारत: मौसल पर्व: द्वितीय अध्याय: श्लोक 18-24 का हिन्दी अनुवाद
इस तरह काल का उलट-फेर प्राप्त हुआ देख और त्रयोदशी तिथि को अमावास्या का संयोग जान भगवान् रीकृष्ण ने सब लोगों से कहा- ‘वीरो ! इस समय राहुने फिर चतुर्दशी को ही अमावास्या बना दिया है। महाभारत युद्ध के समय जैसा योग था वैसा ही आज भी है । यह सब हम लोगों के विनाश का सूचक है’। इस प्रकार समय का विचार करते हुए केशिहन्ता श्रीकृष्ण ने जब उस का विशेष चिन्तन किया, तब उन्हें मालूम हुआ कि महाभारत युद्ध के बाद यह छत्तीसवाँ वर्ष आ पहुँचा। वे बोले-‘बन्धु-बान्धवों के मारे जाने पर पुत्र शोक से संतप्त हुई गान्धारी देवी ने अत्यन्त व्यथित होकर हमारे कुल के लिये जो शाप दिया था उस के सफल होने का यह समय आ गया है। ‘पूर्व काल में कौरव-पाण्डवों की सेनाएँ जब व्यूहबद्ध होकर आमने-सामने खड़ी हुई, उस समय भयानक उत्पातों को देखकर युधिष्ठिर ने जो कुछ कहा था, वैसा ही लक्षण इस समय भी उपस्थित है ’ । ऐसा कहकर शत्रुदमन भगवान् श्रीकृष्ण ने गान्धारी के उस कथन को सत्य करने की इच्छा से यदुवंशियों को उस समय तीर्थ यात्रा के लिये आज्ञा दी। भगवान् श्रीकृष्ण के आदेश से राजकीय पुरूषों ने उस पुरी में यह घोषणा कर दी कि ‘पुरूष प्रवर यादवो ! तुम्हें समुद्र में ही तीर्थ यात्रा के लिये चलना चाहिये। अर्थात् सब को प्रभास क्षेत्र में उपस्थित होना चाहिये’।
इस प्रकार श्रीमहाभारत मौसल पर्व में उत्पात दर्शन विषयक दूसरा अध्याय पूरा हुआ।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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