चतुश्चत्वारिंश (44) अध्याय: कर्ण पर्व
महाभारत: कर्ण पर्व: चतुश्चत्वारिंश अध्याय: श्लोक 41-47 का हिन्दी अनुवाद
विपाशा (व्यास),नदी में दो पिशाच रहते हैं। दक का नाम है बहि और दूसरे का नाम है हीक। इन्हीं दोनों की संतानें बाहीक कहलाती हैं। ब्रह्माजी ने इनकी सृष्टि नहीं की है। वे नीच योनि में उत्पन्न हुए मनुष्य नाना प्रकार के धर्मों को कैसे जानेंगे ? कारस्कर, माहिषक, कुरंड, केरल, कर्कोटक और वीरक-इन देशों के धर्म (आचार-व्यवहार) दूषित हैं;अतः इनका त्याग कर देना चाहिये। विशाल ओखलियों की मेखला (करधनी) धारण करने वाली किसी राक्षसी ने किसी तीर्थयात्री के घर में एक रात रहकर उससे इस प्रकार कहा था। जहाँ ब्रह्माजी के समकालीन (अत्यन्त प्राचीन) वेद-विरुद्ध आचरण वाले नीच ब्राह्मण निवास करते हैं,वे आरट्ट नामक देश हैं और वहाँ के जल का नाम बाहीक है। उन अधम ब्राह्मणों को न तो वेदों का ज्ञान है,न वहाँ यज्ञ की वेदि याँ हैं और न उनके यहाँ यज्ञ-याग ही कोते हैं। वे संस्कारहीन एवं दासों से समागम करने वाली कुलटा स्त्रियों की संतानें हैं;अतः देवता उनका अन्न ग्रहण नहीं करते हैं। प्रस्थल,मद्र,गान्धार,आरट्ट,खस,वसाति,सिंधु तथा सौवीर-ये देश प्रायः अत्यन्त निन्दित हैं।
इस प्रकार श्रीमहाभारत में कर्णपर्व में कर्ण और शल्य का संवाद विषयक चौंवालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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