महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 166 श्लोक 1-22
षटषष्टयधिकशततम अध्याय: उद्योग पर्व (उलूकदूतागमन पर्व)
भीष्मने उवाच—राजन् !काम्बोजदेशके राजा सुदक्षिण एक रथी माने जाते हैं। ये तुम्हारे कार्यकी सिद्धी चाहते हुए समरागंण में शत्रुओंके साथ युद्ध करेंगे।नृपश्रेष्ठ ! रथियोंमें सिंहके समान पराक्रमी ये काम्बोजराज तुम्हारे लिये युद्धमें इन्द्र के समान प्रकट करेंगे और समस्त कौरव इनके पराक्रम को देखेंगे। महाराज ! प्रचण्ड वेगसे प्रहार करनेवाले इन काम्बोजनरेशके रथियोंके समुदायमें कामबोजदेशीय सैनिकोंकी श्रेणी टिडिडयोंके दल-सी द्रष्टिगोचर होती है। माहिष्मतीपुरीके निवासी राजा नील भी तुम्हारे दलके एक रथी हैं। इन्होंने नीले रंगका कवच पहन रखा है । ये अपने रथसमूहद्वारा शत्रुओंका संहार कर डालेंगेकुरूनन्दन ! पूर्वकालमें सहदेव के साथ इनकी शत्रुता हो गयी थी । राजन् ! ये सदा तुम्हारे शत्रुओंके साथ युद्ध करेंगे। अवन्तीदेशके दोनों वीर राजकुमार बिन्द और अनुबिन्द श्रेष्ठ रथी माने गये हैं । तात् !वे युद्धकालके पण्डित तथा सुद्रढ बल एवं पराक्रमसे सम्पन्न हैं। ये दोनों पुरूषसिंह अपने हाथसे छुटे हुए गदा, प्राप्त, खंग, नाराच तथा तोमरोंद्वारा शत्रुसेनाका दग्ध् कर डालेंगे। महाराज ! जैसे दो यूथपति गजराज हाथियोंके झूंड में खेल-सा करते हुए विचरते हैं, उसी प्रकार युद्धकी अभिलाषा रखनेवाले बिन्द और अनुबिन्द समरांगण में यमराजके समना विचरण करते हैं। त्रिगर्तदेशीय पाँचों भ्रताओंको मैं उदार रथी मानता हूं। विराटनगरमें दक्षिणगोग्रह के युद्धके समय चार पाण्डवों के साथ इनका वैर बढ गया था। राजेन्द्र !जैसे ग्राहगण उत्ताल तरंगोवाली गंगाको मथ डालते हैं, उसी प्रकार ये त्रिगर्तदेशीय पाँचों क्षत्रिय वीर पाण्डवों केी सेनामे ंहलचल मचा देंगे। महाराज ! ये पाँचों भाई रथी हैं और सत्यरथ उनमें प्रधान है । भारत ! भीमसेनके छोटे भाई श्वेत घोडोंवाले पाण्डुनन्दन अर्जुनने दिग्विजय के समय जो त्रिगतोंका अप्रिय किया था, उस पहलेके वैरको याद रखते हुए ये पाँचों वीर संग्रामभूमिमें मन लगाकर युद्ध करें। ये पाण्डवों के बडे महारथियोंके पास जा कउन महाधनुर्धर क्षत्रियशिरोमणि वीरोंका संहार कर डालेंगे। तुम्हारा पुत्र लक्ष्मण और दु:शासन पुत्र—ये दोनों पुरूषसिंह युद्धसे पलायन करनेवाले नहीं हैं । कुरूश्रेष्ठ ! ये दोनों तरूण और सुकुमार राजपुत्र बडे वेगशाली हैं, अनेक युद्धोंके विशेष्ज्ञ हैं और सब प्रकारसे सेनानायक होने योग्य हैं। कुरूश्रेष्ठ ! ये दोनों रथी तो हैं ही, रथियोंमें श्रेष्ठ भी हैं। ये क्षत्रियधर्म में तत्पर होकर युद्धमें महान् पराक्रम करेंगे। महाराज ! नरश्रेष्ठ ! अपनी सेनामें दण्डधार भी एक रथी हैं, जो तम्हारे लिये संग्राममें अपनी सेनासे सुरक्षित होकर लडेंगे। तात ! महान वेग और पराक्रमसे सम्पन्न कोसलदेशके राजा बृहदबल भी मेरी द्रष्टिमें एक रथी हैं ओर रथियोंमें इनका स्थान बहुत ऊँचा है। ये ध्रतराष्ट्रपुत्रों के हितमें तत्पर हो भंयकर अस्त्र-शस्त्र तथा महान् धनुष धारण किये अपने बन्धुओंका हर्ष बढाते हुए समरांगण में बडे उत्साहसे युद्ध करेंगे। राजन् ! शरद्वान्के पुत्र क्रपाचार्य तो रथ्यूथपतियोंके भी यूथपति हैं। ये अपने प्यारे प्राणोंकी परवा न करके तुम्हारे शत्रओंको जला डालेंगे । गौतमवंशी महर्षि आचार्य शरद्वानके पुत्र कृपाचार्य कार्तिकेयकी भांति सरकण्डोंसे उन्पन्न् हुए हैं और उन्हींकी भांति अजेय भी हैं । तात ! ये नाना प्रकारके अस्त्र-शस्त्र एवं धनुष धारण करनेवाली बहुतसी सेनाओंको अग्निके समान दग्ध करते हुए समरभूमिमें विचरण करेंगे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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