महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 167 श्लोक 22-38

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०५:४४, १० जुलाई २०१५ का अवतरण ('==सप्‍तटषष्‍टयधिकशततम अध्‍याय: उद्योग पर्व (उलूकदूत...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

सप्‍तटषष्‍टयधिकशततम अध्‍याय: उद्योग पर्व (उलूकदूतागमन पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: सप्‍तटषष्‍टयधिकशततम अध्याय: श्लोक 22-38 का हिन्दी अनुवाद

राजेन्‍द्र ! उनके सैनिक विचित्र कवच और अस्‍त्र–शस्‍त्र धारण करके तुम्‍हारे शत्रुओंका संहार करते हुए संग्राम भूमिमें विचरण करेंगे। कर्णका पुत्र वृषसेन तुम्‍हारे वैरियोंकी विशाल वाहिनी को भस्‍म कर डालेगा। राजन्‍ ! शत्रुवीरोंका संहार करनेवाले मधुवंशी महातेजस्‍वी जलसंध तुम्‍हारी सेनामें श्रेष्‍ठ रथी हैं । ये तुम्‍हारे लिये युद्धमें प्राणतक दे डालेंगे। महाबाहु जलसंध रथ अथवा पीठपर बैठकर युद्ध करनेमें कुशल है । ये संग्राममें शत्रुसेनाका संहार करते हुए लडेंगे। महाराज ! नृपश्रेष्‍ठ ! ये मेरे रथी ही हैं और इस महायुद्धमें तुम्‍हारे लिये अपनी सेनासहित प्राणत्‍याग करेंगे । राजन्‍ ! ये समरांगणमें महान्‍ पराक्रम प्रकट करते हुए‍ विचित्र ढंगसे युद्ध करनेवाले हैं । ये तुम्‍हारे शत्रुओंके साथ निर्भय होर युद्ध करेंगे । वाह्रीक अतिरथी वीर हैं । ये युद्धसे कभी पीछे नहीं हटते हैं । राजन्‍ ! मैं समरभूमिमें इन्‍हें यमराजके समान शूरवीर मानता हूं। ये रणक्षेत्रमें पहुंचकर किसी तरह पीछे पैर नहीं हटा सकते । राजन्‍ ! ये वायुके समान वेगसे रणभूमिमें शत्रुओंको मारेंगे। माहराज ! रथारूढ हो युद्धमें अद्भूत पराक्रम दिखाने और शत्रुपक्षके रथियोंको मार भगानेवाले तुम्‍हारे सेनापति सत्‍यवान्‍ भी महारथी हैं। युद्ध देखकर इनके मनमें किसी प्रकार भी भ्‍य एवं दुख नहीं होता । ये रथके मार्गमें खडे हुए शत्रुओंपर हंसते-हंसते कूद पडते हैं। पुरूषश्रेष्‍ठ सत्‍यवान्‍ शत्रुओंपर महान्‍ पराक्रम दिखाते हैं । ये युद्धमें तुम्‍हारे लिये श्रेष्‍ठ पुरूषोंके योग्‍य महान्‍ कर्म करेंगे।क्रूरकर्मा राक्षसराज अलम्‍बुष भी महारथी हैं । राजन्‍ ! यह पहलेके वैरको याद करके शत्रुओं का संहार करेगा। मायावी, वैरभावको द्रढतापूर्वक सुरक्षित रखनेवाला तथा समस्‍त सैनिकोंमें श्रेष्‍ठ रथी यह अलम्‍बुष संग्रामभूमिमें (निर्भय होकर) विचरेगा ।प्रान्‍ज्‍योतिषपुर के राजा भगदत्‍त बडे वीर-वीर और प्रतापी हैं । हाथमे अंकुश लेकर हाथियोंको काबूमें रखनेवाले वीरोंमें इनका सबसे ऊँचा स्‍थान है । ये रथयुद्ध में भी कुशल हैं। राजन्‍ ! पहले इनके साथ गाण्‍डीवधारी अर्जुनका युद्ध हुआ था । उस संग्राममें दोनों अपनी-अपनी विजय चाहते हुए बहुत दिनोंतक लडते रहे। गान्‍धारीकुमार ! कुछ दिनों बाद भगदत्‍त ने अपने सखा इन्‍द्रका सम्‍मान करते हुए महात्‍मा पाण्‍डून्‍न्‍दन अर्जुनके साथ संधि कर ली थी। राजा भगदत्‍त हाथीकी पीठपर बैठकर युद्ध करनेमें अत्‍यन्‍त कुशल हैं। ये ऐरावतपर बैठे हुए देवराज इन्‍द्रके समान संग्राम में तुम्‍हारे शत्रुओंके साथ युद्ध करेंगे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योग पर्व के अन्‍तर्गत रथातिरथसंख्‍यान पर्वमें एक सौ सडसठवां अध्‍याय पूरा हुआ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख