श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 89 श्लोक 47-57
दशम स्कन्ध: एकोननवतितमोऽध्यायः(89) (उत्तरार्ध)
सर्वशक्तिमान् भगवान् श्रीकृष्ण इस प्रकार समझा-बुझाकर अर्जुन के साथ अपने दिव्य रथ पर सवार हुए और पश्चिम दिशा को प्रस्थान किया । उन्होंने सात-सात पर्वतों वाले सात द्वीप, सात समुद्र और लोकालोक-पर्वत को लाँघकर घोर अन्धकार में प्रवेश किया ।
परीक्षित्! वह अन्धकार इतना घोर था कि उसमें शौब्य, सुग्रीव, मेघपुष्प और बलाहक नाम के चारों घोड़े अपना मार्ग भूलकर इधर-उधर भटकने लगे। उन्हें कुछ सूझता ही न था । योगेश्वरों के भी परमेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण ने घोड़ों की यह दशा देखकर अपने सहस्त्र-सहस्त्र सूर्यों के समान तेजस्वी चक्र को आगे चलने की आज्ञा दी ।
सुदर्शन चक्र अपने ज्योतिर्मय तेज से स्वयं भगवान् के द्वारा ऊत्पन्न उस घने एवं महान् अन्धकार को चीरता हुआ मन के समान तीव्र गति से आगे-आगे चला। उस समय वह ऐसा जान पड़ता था, मानो भगवान् राम का बाण धनुष से छूटकर राक्षसों की सेना में प्रवेश कर रहा हो ।
इस प्रकार सुदर्शन चक्र के द्वारा बतलाये हुए मार्ग से चलकर रथ अन्धकार की अन्तिम सीमा पर पहुँचा। उस अन्धकार के पार सर्वश्रेष्ठ पारावाररहित व्यापक परम ज्योति जगमगा रही थी। उसे देखकर अर्जुन की आँखें चौंधिया गयीं और उन्होंने विवश होकर अपने नेत्र बंद कर लिये ।
इसके बाद भगवान् के रथ ने दिव्य जलराशि में प्रवेश किया। बड़ी तेज आँधी चलने के कारण उस जल में बड़ी-बड़ी तरंगें उठ रही थीं, जो बहुत ही भली मालूम होती थीं। वहाँ एक बड़ा सुन्दर महल था। उसमें मणियों के सहस्त्र-सहस्त्र खंभे चमक-चमक कर उसकी शोभा बढ़ा रहे थे और उसके चारों ओर बड़ी उज्ज्वल ज्योति फैल रही थी । उसी महल में भगवान् शेषजी विराजमान थे। उनका शरीर अत्यन्त भयानक और अद्भुत था। उनके सहस्त्र सिर थे और प्रत्येक फण पर सुन्दर-सुन्दर मणियाँ जगमगा रही थीं। प्रत्येक सिर में दो-दो नेत्र थे और वे बड़े ही भयंकर थे। उनका सम्पूर्ण शरीर कैलास के समान श्वेतवर्ण का था और गला तथा जीभ नीले रांग की थी । परीक्षित्! अर्जुन ने देखा कि शेष भगवान् की सुखमयी शय्या पर सर्वव्यापक महान् प्रभावशाली परम पुरुषोत्तम भगवान् विराजमान हैं। अत्यन्त शरीर की कान्ति वर्षाकालीन मेघ के समान श्यामल है। अत्यन्त सुन्दर पीला वस्त्र धारण किये हुए हैं। मुख पर प्रसन्नता खेल रही है और बड़े-बड़े नेत्र बहुत ही सुहावने लगते हैं । बहुमूल्य मणियों से जटित मुकुट और कुण्डलों की कान्ति से सहस्त्रों घुँघराली अलकें चमक रही हैं। लंबी-लंबी, सुन्दर आठ भुजाएँ हैं; गले में कौस्तुभ मणि हैं; वक्षःस्थल पर श्रीवत्स का चिन्ह है और घुटनों तक वनमाला लटक रही है । अर्जुन ने देखा कि उनके नन्द-सुनन्द आदि अपने पार्षद, चक्र-सुदर्शन आदि अपने मूर्तिमान् आयुध तथा पुष्टि, श्री, कीर्ति और अजा—ये चारों शक्तियाँ एवं सम्पूर्ण ऋद्धियाँ ब्रम्हादि लोकपालों के अधीश्वर भगवान् की सेवा कर रही हैं ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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