महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 92 श्लोक 59-76
द्विनवतितम (92) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
गिरते समय पर्णाशा के प्रिय श्रुतायुध आंधी के उखाड़े हुए अनेक शाखा ओंवाले वृक्ष के समान प्रतीत हो रहे थे। शत्रुसूदन श्रुतायुध को इस प्रकार मारा गया देख सारे सैनिक और सम्पूर्ण सेनापति वहां से भाग खड़े हुए। तत्पश्रात् काम्बोजराज का शूरवीर पुत्र सुदक्षिण वेग-शाली अश्रों द्वारा शत्रुसूदन अर्जुन का सामना करने के लिये आया। भारत। अर्जुन ने उसके उपर सात बाण चलाये। वे बाण उस शूरवीर के शरीर को विदीर्ण करके धरती में समा गये। गाण्डीव धनुष द्वारा छोड़े हुए तीखे बाणों से अत्यन्त घायल होने पर सुदक्षिण ने उस रण क्षैत्र में कंक की पांख वाले दस बाणों द्वारा अर्जुन को क्षत विक्षत कर दिया। वसुदेवनन्दन श्री कृष्ण को तीन बाणों से घायल करके उसने अर्जुन पर पुन: पांच बाणों का प्रहार किया। आर्य। तब अर्जुन ने उसका धनुष काटकर उसकी ध्वजा के टुकड़े-टुकड़े कर दिये। इसके बाद पाण्डुकुमार अर्जुन ने दो अत्यन्त तीखे भल्लों से सुदक्षिण को बींध डाला। फिर सुदक्षिण भी तीन बाणों से पार्थ को घायल करके सिंह के समान दहाड़ने लगा। शूरवीर सुदक्षिण ने कुपित होकर पूर्णत: लोहे की बनी हुई घण्टा युक्त भयंकर शक्ति गाण्डीवधारी अर्जुन पर चलायी। वह बड़ी भारी उल्का के समान प्रज्वलित होती और चिनगारियां बिखेरती हुई महारथी अर्जुन के पास जा उनके शरीर को विदीर्ण करके पृथ्वी पर गिर पड़ी। उस शत्ति के द्वारा गहरी चोट खाकर महातेजस्वी अर्जुन मूर्छित हो गये, फिर धीरे-धीरे सचेत हो अपने मुख के दोनों कानों को जीभ से चाटते हुए अचिन्त्य पराक्रमी पार्थ ने कंक के पांखवाले चौदह नाराचों द्वारा घोड़े, ध्वज, धनुष और सारथि सहित सुदक्षिण को घायल कर दिया। फिर दूसरे बहुत-से बाणों द्वारा उसके रथ को टूक-टूक कर दिया और काम्बोजराज सुदक्षिण के संकल्प एवं पराक्रम को व्यर्थ करके पाण्डु पुत्र अर्जुन ने मोटी धारवाले बाण से उसकी छाती छेद डाली। इससे उसका कवच फट गया, सारे अड़ शिथिल हो गये, मुकुट और बाजूबंद गिर गये तथा शूरवीर सुदक्षिण मशीन से फेंके गये ध्वज के समान मुंह के बल गिर पड़ा। जैसे सर्दी बीतने के बाद पर्वत के शिखर पर उत्पन्न हुआ सुन्दर शाखाओं से युक्त, सुप्रतिष्ठित एवं शोभासम्पन्न कनेर का वृक्ष वायु के वेगगे टूटकर गिर जाता है, उसी प्रकार काम्बोज-देश के मुलायम बिछौनों पर शयन करने के योग्य सुदक्षिण वहां मारा जाकर पृथ्वी पर सो रहा था। बहुमूल्य आभूषणों से विभूषित एवं शिखर युक्त पर्वत के समान सुदर्शनीय अरुण नेत्रों वाले काम्बोज राजकुमार सुदक्षिण को अर्जुन ने एक ही बाण से मार गिराया था। अपने मस्तक पर अग्नि के समान दमकते हुए सुवर्णमय हार को धारण किये महाबाहु सुदक्षिण यद्यपि प्राणशून्य करके पृथ्वी पर गिराया गया था, तथापि उस अवस्था में भी उसकी बड़ी शोभा हो रही थी। तदनन्तर श्रुतायुध तथा काम्बोज राजकुमार सुदक्षिण को मारा गया देख आप के पुत्र की सारी सेनाएं वहां से भागने लगी।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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