त्रिनवतितम (93) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
महाभारत: द्रोण पर्व: त्रिनवतितम अध्याय: श्लोक 41-58 का हिन्दी अनुवाद
क्रोध में भरे हुए धनंजय ने वज्रोपम बाणों द्वारा पृथ्वी को रक्त से आप्लावित करते हुए कौरवी सेना में प्रवेश किया। उस समय सेना के भीतर जाते हुए अर्जुन को श्रुतायु तथा अम्बष्ठ ने रोका। मान्यवर। तब अर्जुन ने कंक की पंखों वाले तीखे बाणों द्वारा विजय के लिये प्रयत्न करने वाले अम्बष्ठ के घोड़ों को शीघ्र ही मार गिराया। फिर दूसरे बाणों से उसके धनुष को भी काटकर पार्थ ने विशेष बल विक्रम का परिचय दिया। तब अम्बष्ठ की आंखें क्रोध से व्याप्त हो गयीं। उसने गदा लेकर रणक्षैत्र में महारथी श्री कृष्ण और अर्जुन पर आक्रमण किया। भारत। तदनन्तर वीर अम्बष्ठ ने प्रहार करने के लिये उधत हो गदा उठाये आगे बढ़कर अर्जुन के रथ को रोक दिया और भगवान् श्री कृष्ण पर गदा से आघात किया। भरतनन्दन। शत्रुवीरों का संहार करने वाले अर्जुन भगवान् श्री कृष्ण को गदा से आहत हुआ देख अम्बष्ठ के प्रति अत्यन्त कुपित हो उठे। फिर तो जैसे बादल उदित हुए सूर्य को ढक लेता है, उसी प्रकार अर्जुन ने समरागड़ण में सोने के पंखवाले बाणों द्वारा गदासहित रथियों में श्रेष्ठ अम्बष्ठ को आच्छादित कर दिया। तत्पचात् दूसरे बहुत से बाण मारकर अर्जुन ने महामना अम्बष्ठ की उस गदा को उसी समय चूर-चूर कर दिया। वह अभ्दुत –सी घटना हुई। उस गदा को गिरी हुई देख अम्बष्ठ ने दूसरी विशाल गदा ले ली और श्री कृष्ण तथा अर्जुन पर बारंबार प्रहार किया। तब अर्जुन ने उसकी गदा सहित, इन्द्रध्वज के समान उठी दोनों भुजाओं को क्षुरप्रों से काट डाला और पंख युक्त दूसरे बाण से उसके मस्तक को भी काट गिराया। राजन्। यन्त्र द्वारा बन्धन मुक्त होकर गिरे हुए इन्द्रध्वज- के समान वह मरकर पृथ्वी पर धमाक्रेकी आवाज करता हुआ गिर पड़ा। उस समय रथियों की सेना में घुसकर सैकड़ों हाथियों और घोड़े से घिरे हुए कुन्तीकुमार अर्जुन बादलों में छिपे हुए सूर्य के समान दिखायी देते थे।
इस प्रकार श्री महाभारत द्रोणपर्व के अन्तगर्त जयद्रथवधपर्व में अम्बष्ठ विषयक तिरानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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