महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 97 श्लोक 25-36

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०८:०१, १० जुलाई २०१५ का अवतरण
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

सप्‍तनवतितम (97) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: सप्‍तनवतितम अध्याय: श्लोक 25-36 का हिन्दी अनुवाद

शुत्रुवीरों का संहार करने वाले धृष्‍टद्युम्र दुष्‍कर कर्म करना चाहते थे। अत: ईषादण्‍ड के सहारे अपने रथ को लांघकर द्रोणाचार्य के रथ पर जा चढ़े। वे एक पैर जूए के ठीक बीच में और दूसरा पैर उस जूए से सटे हुए (आचार्य) घोड़ों के पिछले आधे भागों पर रखकर खड़े हो गये । उनके इस कार्य की सभी सैनिकों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की। लाल घोड़ों पर खड़ें हो तलवार घुमाते हुए धृष्‍टद्युम्र के उपर प्रहार करने के लिये आचार्य द्रोण को थोड़ा-सा भी अवसर नहीं दिखायी दिया। वह अभ्‍दुत सी बात हुई। जैसे वन में मांस की इच्‍छा रखने वाला बाज झपटटा मारता है, उसी प्रकार द्रोण को मार डालने की इच्‍छा उन पर धृष्‍टद्युम्र का सहसा आक्रमण हुआ था। तदनन्‍तर द्रोणाचार्य ने सौ बाण मारकर द्रुपदकुमार की ढाल को, जिसमें सौ चन्‍द्राकार चिह बने हुए थे, काट गिराया और दस बाणों से उनकी तलवार के भी टुकड़े-टुकड़े कर दिये। बलवान् आचार्य ने चौसठ बाणों से धृष्‍टद्युम्र के चारों घोड़ों को मार डाला। फिर दो भल्‍लों से ध्‍वज और छत्र काटकर उनके दोनों पाशर्व रक्षकों को भी मार गिराया। तदनन्‍तर तुरंत ही एक दूसरा प्राणान्‍तकारी बाण कान तक खींचकर उनके उपर चलाया, मानो वज्रधारी इन्‍द्र ने वज्र मारा हो। उस समय सात्‍यकिने चौदह तीखे बाण मारकर उस बाण को काट डाला और इस प्रकार आचार्यप्रवर के चंगुल में फंसे हुए धृष्‍टद्युम्‍न को बचा लिया। पूजनीय नरेश। जैसे सिंह ने किसी मृग को दबोच लिया हो, उसी प्रकार नरसिंह द्रोणाचार्य ने धृष्‍टद्युम्‍न को ग्रस लिया था; परंतु शिनिप्रवर सात्‍यकि ने उन्‍हें छुड़ा लिया। उस महासमर में सात्‍य कि धृष्‍टद्युम्‍न के रक्षक हो गये, यह देखकर द्रोणाचार्य ने तुरंत ही उन पर छब्‍बीस बाणों से प्रहार किया। तब शिनि के पौत्र सात्‍यकि ने सृंजयों के संहार में लगे हुए द्रोणाचार्य की छाती में छब्‍बीस तीखे बाणों द्वारा गहरी चोट पहुंचायी। जब द्रोणाचार्य सात्‍यकि के साथ उलझ गये, तब विजया भिलाषी समस्‍त पाच्‍चाल रथी तुरंत ही धुष्‍टद्युम्‍न को अपने रथ पर बिठाकर दूर हटा ले गये।

इस प्रकार श्री महाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तर्गत जयद्रथवधपर्व में द्रोणाचार्य और धृष्‍टद्युम्‍न का युद्धविषयक सत्‍तानबेवां अध्‍याय पूरा हुआ



« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख