महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 99 श्लोक 56-63

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०९:११, १० जुलाई २०१५ का अवतरण ('== नवनवतितम (99) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व) == <div style="...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

नवनवतितम (99) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: नवनवतितम अध्याय: श्लोक 56-63 का हिन्दी अनुवाद

अर्जुन ने अकेले ही पृथ्‍वी पर खड़े रहकर भी रथ पर बैठै हुए समस्‍त पृथ्‍वीपतियों को उसी प्रकार रोक दिया, जैसे लोभ सम्‍पूर्ण गुणों का निवारण कर देता है। तदनन्‍तर सम्‍भ्रमरहित महाबाहु भगवान् श्री कृष्‍ण ने युद्ध स्‍थल में अपने प्रिय सखा पुरुष प्रबर अर्जुन से यह बात कही। ‘अर्जुन । यहां घोड़ों के पानी के लिये पर्याप्‍त जल नहीं है ये पीने योग्‍य जल चाहते हैं। इन्‍हें स्‍नान की इच्‍छा नहीं है,। ‘यह रहा इन के पीने के लिये जल’ ऐसा कहकर अर्जुन ने बिना किसी घबराहट के अस्‍त्र द्वारा पृथ्‍वी पर आघात करके घोड़ों के पीने योग्‍य जल से भरा हुआ सुन्‍दर सरोवर उत्‍पन्‍न कर दिया। उस में हंस और कारण्‍डव आदि जल पक्षी भरे हुए थे, चक्रवाक उसकी शोभा बढ़ा रहे थे। स्‍वच्‍छ जल से युक्‍त उस विशाल सरोवर में सुन्‍दर कमल खिले हुए थे। वह अगाध जलाशय कछुओं और मछलियों से भरा था । ऋषिगण उसका सेवन करते थे । तत्‍काल प्रकट किये हुए ऐसी योग्‍यता वाले उस सरोवर का दर्शन करने के लिये देवर्षि नारदजी वहां आये। विश्रवकर्मा के समान अभ्‍दूत कर्म करनेवाले अर्जुन ने वहां बाणों का एक अभ्‍दूत घर बना दिया था, जिन में बाणों के ही बांस, बांणों के ही खम्‍भे और बांणों की ही छाजन थी। महामना अर्जुन के द्वारा वह बाणमय ग्रह निर्मित हो जाने पर भगवान्‍ श्री कृष्‍ण हंसकर कहा-‘शाबास अर्जुन, शाबास’।

इसी प्रकार श्री महाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तगर्त जयद्रथवध पर्व में विन्‍द और अनुविन्‍द का वध तथा अर्जुन के द्वारा जलाशयका निर्माण विषयक निन्‍यानबेवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।



« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख